पेरिस जलवायु समझौते पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान के क्या हैं मायने?

पेरिस जलवायु समझौते पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान के क्या हैं मायने?

कोझिकोड में बीजेपी की बैठक में भाषण देते पीएम मोदी

खास बातें

  • भारत 2 अक्टूबर को पेरिस समझौते की पुष्टि कर देगा.
  • कम से कम 55 देशों को पेरिस समझौते की पुष्टि करनी है
  • पिछले 50 सालों के कार्बन उत्सर्जन में अमेरिका की ज़िम्मेदारी सबसे अधिक
नई दिल्ली:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को कोझिकोड में कहा कि पिछले साल पेरिस में हुए समझौते के तहत किए गए वादों को भारत इस साल 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन रेटिफाइ (पुष्टि) कर देगा. ऐसा करने का मतलब होगा कि भारत संयुक्त राष्ट्र से अपने लिखित वादे के मुताबिक जलवायु परिवर्तन से निबटने के लिए उठाए गए कदमों की पुष्टि कर रहा है.

क्या है पेरिस समझौता?
पेरिस में पिछले साल हुए जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन में सभी देशों ने धरती का तापमान बढ़ने से रोकने के लिए किए गए दस्तावेज पर सहमति बनाई. धरती पर बढ़ते कार्बन की वजह से तापमान बढ़ रहा है और दो डिग्री से अधिक की बढ़ोतरी तबाही ला सकती है. जानकार मानते हैं कि अभी से जलवायु परिवर्तन के खतरनाक असर अचानक आ रही बाढ़, तूफान और सूखे के रूप में दिखाई दे रहा है.

कैसे लागू होगा समझौता?
सभी देशों ने पेरिस में वादा किया है कि वह अपने देश में कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए क्या-क्या कदम उठाएंगे. पेरिस समझौते के तहत कम से कम 55 देशों को ये समझौता रेटिफाइ करना है और इन 55 देशों का कार्बन उत्सर्जन कुल इमीशन का 55 प्रतिशत होना चाहिए. इस लक्ष्य को हासिल करने के 30 दिन बाद पेरिस समझौता सक्रिय रूप से लागू माना जाएगा.

अभी क्या स्थिति है?
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट के मुताबिक अभी 60 देशों ने इस समझौते की पुष्टि कर दी है, लेकिन कुल उत्सर्जन अभी करीब 48% ही है. भारत के साथ जर्मनी और फ्रांस जैसे देश अगर समझौते की पुष्टि कर दें, तो ये आंकड़ा 55 प्रतिशत हो जाएगा. ब्रिटेन ने कहा है कि वह साल के अंत तक समझौते की पुष्टि करेगा.

कौन हैं कार्बन उत्सर्जन के बड़े गुनहगार?
कार्बन उत्सर्जन करने के मामले में चीन अभी सबसे बड़ा गुनहगार है, लेकिन अगर पिछले 50 सालों के कार्बन उत्सर्जन को देखें तो अमेरिका की ज़िम्मेदारी सबसे अधिक है. इसके बाद यूरोपियन यूनियन के देशों का हिस्सा है. भारत दुनिया के कार्बन उत्सर्जन का केवल 4 प्रतिशत ही करता है, लेकिन आने वाले दिनों में उसका कार्बन उत्सर्जन बढ़ेगा.

भारत का लक्ष्य क्या है?
भारत ने कहा है कि वह अपने कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता को 2030 तक 33-35% कम कर देगा. इसके लिए उसने 2022 तक ही करीब 175 गीगावॉट (1,75,000 मेगावॉट) सौर और पवन ऊर्जा के प्रयोग का वादा किया है. भारत का कहना है कि 2030 तक उसकी कुल बिजली का 40 प्रतिशत साफ सुथरी ऊर्जा होगी.

कब तक लागू होना है समझौता?
जो लक्ष्य तय किया गया है उसके मुताबिक पेरिस समझौता 2020 तक लागू क्या जाना है लेकिन अगर इसी साल 55 देश और 55 प्रतिशत इमीशन के हिसाब से पेरिस समझौते की पुष्टि हो जाती है तो यह बहुत पहले ही लागू हो जाएगा, जो कि एक उपलब्धि होगी. कहा जा रहा है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा अपना कार्यकाल खत्म होने से पहले इसे लागू होते देखना चाहते हैं, इसलिए अमेरिका सभी देशों पर दबाव डाल रहा है.

क्या यह समझौता पर्याप्त है?
नहीं, पेरिस समझौता नाकाफी है. धरती का तापमान 2 डिग्री से कम बढ़ने का लक्ष्य हासिल करने के लिए सभी देशों को अधिक महत्वाकांक्षी योगदान करने होंगे. एक्शन एड के अंतरराष्ट्रीय नीति प्रबंधक हरजीत सिंह कहते हैं, 'सभी देशों के मौजूदा लक्ष्य मिलकर भी दुनिया के तापमान को तीन डिग्री बढ़ने से नहीं रोक सकते, लेकिन एक अहम शुरुआत है जिस पर आगे का रास्ता तय किया जा सकता है.'


Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com