जब भारतीय नेवी ने कराची पर दुनिया के बेहद साहसिक युद्धक अभियान को आजमाया...

जब भारतीय नेवी ने कराची पर दुनिया के बेहद साहसिक युद्धक अभियान को आजमाया...

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

1971 का भारत-पाक युद्ध इन देशों के इतिहास की अहम तारीख होने के साथ दक्षिण एशिया के भूगोल के लिहाज से भी बेहद अहम है. दरअसल इसी युद्ध का नतीजा था कि दक्षिण एशिया के क्षितिज पर एक नया मुल्‍क बांग्‍लादेश क्षितिज पर उदित हुआ.

इस युद्ध में भारतीय पताका फहराने और पाकिस्‍तान के हथियार डालने के पीछे हमारी सेना के रणबांकुरों और वायुसेना के साथ नेवी की अहम भूमिका रही. उसने अब तक वैश्विक सैन्‍य इतिहास के सबसे जोखिम भरे अभियानों में गिने जाने वाली रणनीति के तहत आज के दिन ही यानी आठ दिसंबर 1971 को ऑपरेशन पायथन के तहत कराची पर धावा बोला.

मास्‍टर प्‍लान
दरअसल जब भारतीय सेना और वायुसेना और अपने-मोर्चों पर डटी थीं तो पूर्वी और पश्चिमी तट को ब्‍लॉक करने का मास्‍टर प्‍लान नेवी ने बनाया. उसके तहत पश्चिमी क्षेत्र में जिस अभियान को अंजाम दिया गया, उसको ऑपरेशन ट्राइडेंट कहा गया.

ऑपरेशन ट्राइडेंट
इसके तहत नेवी ने कराची बंदरगाह पर मिसाइल बोटों से हमला करने का निर्णय लिया. ऐसा इसलिए किया गया क्‍योंकि कराची बंदरगाह पाकिस्‍तान के लिए बेहद मायने रखता था. वह सिर्फ पाकिस्‍तान नेवी का हेडक्‍वार्टर ही नहीं था बल्कि तेल भंडारण का भी एक प्रमुख केंद्र था. इन वजहों से वह पाकिस्‍तान के समुद्री व्‍यापार का सबसे बड़ा केंद्र था.

इस‍ लिहाज से इस पर हमले से पाकिस्‍तान की नेवी को नुकसान होने के साथ उसकी अर्थव्‍यवस्‍था पर भी बुरा असर पड़ना तय था. इस लिहाज से चार दिसंबर 1971 को ऑपरेशन ट्राइडेंट के तहत हमला बोला गया. इस हमले में पहली बार इस क्षेत्र में युद्ध रोधी मिसाइलों का उपयोग किया गया. भारतीय अभियान बेहद कामयाब रहा लेकिन मुख्‍य लक्ष्‍य तेल भंडारण को नष्‍ट करने में नाकाम रहा. इसलिए उसकी अगली कड़ी के तहत ऑपरेशन पायथन को अंजाम दिया गया.  

ऑपरेशन पायथन
इसके तहत आठ दिसंबर 1971 की रात को मिसाइल बोट आईएनएस विनाश और दो मल्‍टीपर्पज फ्रिगेट आईएनएस तलवार और आईएनएस त्रिशूल ने हमला बोला. यह अभियान पूर्णतया कामयाब रहा और इसने पाक के कई युद्धपोतों को नष्‍ट करने के साथ तेल और आयुध भंडारों को नष्‍ट करने में कामयाबी पाई. वायुसेना के सहयोग से इन हमलों के चलते कराची जोन के 50 प्रतिशत से भी अधिक ईंधन क्षमताएं नष्‍ट हो गईं. इसका पाकिस्‍तान की अर्थव्‍यवस्‍था बुरी तरह प्रभावित हुई और उसका तकरीबन तीन अरब डॉलर का नुकसान हुआ.

 


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