जब कलाम ने कहा 'तुम सारे लोग एक जैसे सवाल पूछते हो इसलिए मैंने..

जब कलाम ने कहा 'तुम सारे लोग एक जैसे सवाल पूछते हो इसलिए मैंने..

डॉ कलाम, मीडिया से बड़े ही सहज तरीके से मुखातिब होते थे

नई दिल्ली:

सोमवार को डॉ कलाम के निधन के बाद सोशल मीडिया पर उनसे जुड़ी कई दिलचस्प बातें शेयर की जा रही हैं। भारत के सबसे सक्रिय राष्ट्रपति कलाम का सहज होना ही उन्हें बाकियों से अलग बनाता है। आम तौर पर जहां राजनीतिक हस्तियां मीडिया से कन्नी काटती दिखती हैं, वहीं कलाम साहब, पत्रकारों को शायद बच्चों से कम नहीं समझते थे। डॉ कलाम की बातों में बचपन की कहानी 'बैगपाइपर' वाला जादू था जिनकी बजाई धुन को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता था।

एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार ने अपने कार्यक्रम 'प्राइम टाइम' में कलाम साहब को याद करते हुए बताया था कि किस तरह प्रेस कॉंफ्रेंस शुरु होने से पहले वह सब पत्रकारों को इस तरह बैठ जाने की हिदायत देते थे जैसे स्कूल में बच्चों को बोला जाता है "बैठ जाओ, सब लोग चुपचाप बैठ जाओ।"

अंतरराष्ट्रीय मामलों पर नज़र रखने वाले पत्रकार विवेक राज ने फेसबुक पर कलाम की पहली प्रेस कांफ्रेस को याद करते हुए लिखा "राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार बनने के बाद ये कलाम की पहले प्रेस कांफ्रेंस थी। उनसे एक सवाल पूछा गया जिसका जवाब दिए बगैर उन्होंने कहा 'अगला सवाल।' माजरा किसी को समझ में नहीं आया। फिर हमने देखा कि दरअसल वह सारे सवाल नोट कर रहे थे। उन्होंने कहा 'मैंने टीवी पर देखा है, तुम प्रेस वाले एक जैसे सवाल बार बार पूछते हो, इसलिए मैं सारे सवाल नोट कर रहा हूं ताकि सबके जवाब दे सकूं और मुझे कुछ भी दोहराना ना पड़े।' यही नहीं प्रेस कांफ्रेंस खत्म होने के बाद उन्होंने एक कविता पढ़ी और सभी पत्रकारों से कहा कि इन लाइनों को उनके पीछे पीछे दोहराएं।" यकीनन मीडिया वालों ने नहीं सोचा होगा कि एक होने वाले राष्ट्रपति की प्रेस कांफ्रेंस में उन्हें ऐसा कुछ करना पड़ेगा। अपने भारी भरकम सवालों से लैस पत्रकार किसी और ही हेडलाइन के साथ दफ्तर लौटे होंगे।

अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठन बीबीसी के दिल्ली ब्यूरो में काम करने वाले डेनियल लैक ने पूर्व राष्ट्रपति को याद करते हुए लिखा कि कई बार कलाम खुद ही उनके दफ्तर फोन करके अपने पसंदीदा विषय 'शिक्षा' पर बात करने लग जाते थे। अपने फोन कलाम खुद ही लगाते थे।

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हालांकि कलाम को दिक्कत थी कि भारतीय मीडिया इतना 'नेगेटिव' क्यों है ? 2005 में न्यू यॉर्कर मैगेज़ीन में डॉ कलाम का एक लेख छपा था जिसमें उन्होंने सवाल किया था कि भारत को अपनी कामयाबी के बारे में बात करने में इतनी शर्म क्यों आती है? डॉ सुदर्शन के आदिवासी गांव का उदाहरण देते हुए उन्होंने लिखा था कि हमारे देश में सफलता की इतनी बेमिसाल कहानियां है लेकिन मीडिया ऐसी कामयाबी की कभी बात नहीं करता। इज़राइली अखबारों का उदाहरण देते हुए कलाम ने लिखा था कि उस देश में इतने हमले, इतनी त्रासदियां होती हैं लेकिन वहां की एक सुबह मेरे हाथ जो अखबार लगा उसके पहले पन्ने पर एक यहूदी की तस्वीर थी जिसने अपने रेगिस्तान को खूबसूरत बागान में बदल दिया था। मौत, भूखमरी, मारकाट की खबरों को तो पिछले पन्नों में कहीं दफनाया हुआ था।