यह ख़बर 22 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

अहम सुधारों के लिए सरकार को क्यों लाना पड़ रहा है अध्यादेश

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

धर्म परिवर्तन पर राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप सोमवार को संसद के दोनों सदनों में दिखा, जिसकी वजह से राजनीतिक गतिरोध और बढ़ गया। इसका नतीजा यह हुआ कि आर्थिक सुधार से जुड़े कई अहम बिल अट गए हैं, जिनमें बीमा बिल, कोयला खदान बिल और मोटर वाहन संशोधन बिल सबसे अहम हैं। दरअसल धर्म परिवर्तन पर राजनीति ने एनडीए सरकार के आर्थिक सुधार को एजेंडे को लटका दिया है।

दरअसल मंगलवार को संसद के मौजूदा शीतकालीन सत्र का आखिरी दिन है। उधर संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू ने सोमवार को कहा कि संसद में लंबित बिलों को पारित कराना सरकार की पहली प्राथमिकता है। जब उनसे ये पूछा गया कि क्या शीतकालीन सत्र का कार्यकाल बढ़ाया भी जा सकता है तो उन्होंने कहा कि मंगलवार को कैबिनेट की संसदीय मामलों की समिति की एक अहम बैठक हो रही है, जिसमें सभी पहलुओं पर विचार के बाद सरकार अंतिम फैसला करेगी। लेकिन सोमवार को दोनों सदनों में धर्मांतरण की राजनीति को लेकर जिस तरह से हंगामा होता रहा उससे ये गतिरोध कल खत्म होगा इसके आसार नहीं दिखते।

अगर मंगलवार को भी संसद में ये गतिरोध जारी रहा तो एनडीए सरकार के सामने कोल और बीमा मामले पर अध्यादेश लाना ही एकमात्र विकल्प होगा। कोल ब्लॉक आवंटन से जुड़े मामले पर सरकार ने जो आध्यादेश लाया था उसे दोबारा लाना पड़ेगा।

वहीं आज लोकसभा में हालात एक वक्त इतने तनावपूर्ण हो गए कि लोकसभा के उपाध्यक्ष थंबी दुरई ने आरजेडी सांसद पप्पू यादव पर खुद पर कागज़ फेंके जाने का आरोप भी लगा दिया। हालांकि पप्पू यादव ने बाद में एनडीटीवी से बातचीत में इस आरोप को सही नहीं बताया। संसद के दोनों सदनों में विपक्ष ने सरकार और उसके संगठनों पर माहौल बिगाड़ने का आरोप लगाया।

लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश में धर्मान्तरण पर 'घर वापसी' कार्यक्रम का एनडीए सरकार समर्थन कर रही है। सवाल आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयानों को लेकर भी उठे।  बसपा नेता मायावती और सीपीएम नेता सीताराम येचुरी दोनों ने बीजेपी पर देश में तनावपूर्ण माहौल खड़ा करने का आरोप लगाया। जवाब में एनडीए सरकार ने सफाई दी कि धर्मांतरण उसका एजेंडा नहीं है और ना ही बीजेपी का एजेंडा है।

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इस पर संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू ने कहा कि इन कार्यक्रमों से धर्म परिवर्तन या पुनर्धर्मांतरण का सरकार समर्थन नहीं करती है और विपक्ष के आरोप बेबुनियाद और निराधार हैं। ऐसे में सवाल है कि धर्मांतरण के मसले पर जारी राजनीतिक गतिरोध और राजनीति देश को कहां ले जाएगी?