आख़िर किन दलीलों पर सुप्रीम कोर्ट ने याकूब की फांसी की सज़ा को बरकरार रखा

आख़िर किन दलीलों पर सुप्रीम कोर्ट ने याकूब की फांसी की सज़ा को बरकरार रखा

1. डेथ वारंट को चुनौती :
याकूब ने क्यूरेटिव पिटीशन के 21 जुलाई को खारिज होने के बाद सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा कि उसे फांसी नहीं दी जा सकती क्योंकि टाडा कोर्ट का डेथ वारंट गैर-कानूनी है।

याकूब का कहना था कि 9 अप्रैल को पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद डेथ वारंट जारी किया गया, जबकि क्यूरेटिव पिटीशन सुप्रीम कोर्ट में लंबित थी। ऐसे में क्यूरेटिव से पहले डेथ वारंट जारी करना गैरकानूनी है, नियमों और कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।

इसके लिए 27 मई, 2015 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया गया या। इसके लिए शबनम जजमेंट का हवाला दिया गया, जिसमें कहा गया कि डेथ वारंट सारे कानूनी उपचार पूरे होने के बाद जारी होना चाहिए।

याकूब ने कहा कि टाडा कोर्ट ने 30 अप्रैल को डेथ वारंट जारी किया और फांसी के लिए 30 जुलाई का दिन तय किया था यानी उसे 90 दिनों का वक्त दिया गया था, लेकिन सरकार ने उसे सिर्फ 17 दिन पहले ही इसकी जानकारी दी थी।

इसके जवाब में सरकार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के मुताबिक अभियुक्त को कम से कम 14 दिनों का वक्त दिया जाना चाहिए और यहां भी नियमों को उल्लंघन नहीं हुआ।

इस मामले में  सरकार ने कहा कि याकूब के पास कोई कानूनी विकल्प नहीं बचा क्योंकि जब डेथ वारंट जारी हुआ तब कोई भी याचिका लंबित नहीं थी। याकूब की पुनर्विचार याचिका, दया याचिका खारिज हो चुकी थी जबकि याकूब ने 12 मई को क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल की।

इस पर तीन जजों की बेंच ने वारंट को सही मानते हुए याचिका खारिज कर दी।

2. क्यूरेटिव पिटीशन को चुनौती :

हालांकि याकूब ने सुप्रीम कोर्ट के खारिज की गई क्यूरेटिव पिटीशन को चुनौती नहीं दी थी लेकिन सुनवाई कर रहे जस्टिस कूरियन जोसफ ने सबसे पहले इस मामले को उठाया जिसके बाद याकूब ने अर्जी दाखिल की। जस्टिस कूरियन ने अपने आदेश में क्यूरेटिव पिटीशन को आधार बनाया, उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट से याकूब की क्यूरेटिव पिटीशन में गंभीर चूक हुई कानून लोगों के लिए है, कानून असहाय नहीं है।

तकनीकी खामी की वजह से किसी की जिंदगी को दांव पर नहीं लगाया जा सकता...पहले क्यूरेटिव पिटीशन पर फैसला नहीं हो, तो मानवाधिकारों का उल्लंघन होगा। हालांकि याकूब की याचिका को खारिज करते हुए बेंच की अगुवाई कर रहे जस्टिस अनिल आर दवे ने कहा कि याचिका में कोई आधार नहीं है, राज्यपाल दया याचिका पर फैसला लें ....और अगर राजा किसा पापी को सजा नहीं देता तो उस पाप का भागी होता है।

इस पर तीन जजों की बेंच ने माना कि क्यूरेटिव पिटीशन की सुनवाई की बेंच सही थी और इस प्रक्रिया में कोई खामी नहीं थी। यह चीफ जस्टिस के अधिकार में है। बेंच ने कहा कि जस्टिस कूरियन सही नहीं हैं ।

3. दया याचिका :

बुधवार देर रात राष्ट्रपति ने याकूब की दया याचिका खारिज की तो याकूब की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में इसे भी चुनौती दी गई। देर रात सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में याकूब की ओर से कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट के हिसाब से दया याचिका खारिज होने के बाद दोषी को कम से कम 14 दिनों का वक्त देना होगा। पहली दया याचिका याकूब के भाई ने दाखिल की थी इसलिए उसे फिर से दया याचिका देने का अधिकार है।

सरकार ने इसका विरोध करते हुए कहा कि याकूब के भाई ने 6 अगस्त 2013 को राष्ट्रपति के पास अर्जी लगाई थी और अगले दिन जेलर को लिखित में बताया था कि यह अर्जी उसके कहने पर लगाई गई है।  यह दया याचिका 10 मार्च 2014 को खारिज कर दी गई थी। ऐसे में दोषी को बार-बार दया याचिका दाखिल करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती। यह कानून का दुरुपयोग है।

इस पर तड़के आए फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार की दलीलों को मान लिया।

4. पुनर्विचार याचिका

दरअसल याकूब को सुप्रीम कोर्ट से दो बार पुनर्विचार याचिका की सुनवाई का मौका मिला। सुप्रीम कोर्ट ने 30 जुलाई 2013 को ही उसकी पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी थी। लेकिन 2 सितंबर  2014 को सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया, जिसके मुताबिक पुनर्विचार याचिका की सुनवाई तीन जजों की बेंच खुली कोर्ट में करेगी और दोषी को 30 मिनट की बहस करने का मौका मिलेगा। जिन दोषियों ने क्यूरेटिव दाखिल नहीं की है, वह एक महीने में दोबारा पुनर्विचार याचिका दाखिल कर सकते हैं।

याकूब ने इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट में दोबारा पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। इस पर दस दिनों तक सुनवाई की गई, लेकिन  9 अप्रैल 2015 को पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी गई। इसके बाद 12 मई को याकूब ने क्यूरेटिव पिटीशन दाखिल की।

इस पर सरकार की ओर से दलील दी गई कि याकूब की दो बार पुनर्विचार याचिका खारिज हुई, लेकिन उसने कभी यह नहीं कहा कि वह क्यूरेटिव दाखिल कर रहा है। पहली पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद याकूब ने दया याचिका लगाई न कि क्यूरेटिव। यह रास्ता उसने खुद चुना था।

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सुप्रीम कोर्ट ने भी सरकार की बात को मानते हुए याकूब की इन दलीलों को भी नकार दिया। कोर्ट ने कहा कि याकूब को पूरा मौका दिया गया।