महाराष्ट्र : दबंगों ने पानी नहीं लेने दिया, दलित मजदूर ने 40 दिन में खुद का कुआं खोद डाला

महाराष्ट्र : दबंगों ने पानी नहीं लेने दिया, दलित मजदूर ने 40 दिन में खुद का कुआं खोद डाला

कुआं खोदने वाले बापूराव।

नई दिल्ली:

महाराष्ट्र के वाशिम जिले के मालेगांव तालुका के कोलम्बेश्वर गांव में एक दलित परिवार को गांव के बड़े लोगों ने अपने कुएं से पानी नहीं लेने दिया तो परिवार के मुखिया बापूराव तांजे ने 40 दिन के अंदर एक कुआं खोद डाला। यह कुआं बापूराव ने अपने दम पर खोदा है, ताकि वह सामाजिक भेदभाव के कुओं से बाहर आ सके।

दबंगों ने कहा, कि तुम मर रहे हो तो मरो...हम पानी नहीं देंगे
महाराष्ट्र के वाशिम के कोलाम्बेश्वर गांव में रहने वाले बापूराव दलित हैं। उनके परिवार को गांव के दबंग लोगों ने अपने कुएं पर चढ़ने नहीं दिया। इसके बाद उन्होंने तय किया कि वे अपना इंतजाम खुद करेंगे। बापूराव कहते हैं, "मैंने बड़े लोगों से कहा कि हम प्यासे मर रहे हैं। हमें पानी चाहिए। लेकिन उन्होंने कहा कि तुम मर रहे हो तो मरो...हम पानी नहीं देंगे। हमें अपने जानवरों के लिए पानी चाहिए। मैं नाराज होकर वापस घर आया और खाना खाकर कुएं की खुदाई में लग गया।"

सबके लिए खुला है दलित का कुआं
इसके बाद बापूराव ने कुआं खोदना शुरू किया, जिसमें एक दो दिन नहीं, पूरे चालीस दिन लग गए। कुआं अब तैयार है, पानी भी मिल रहा है। लेकिन बापूराव ने अपने कुएं को सबके लिए खोल रखा है। उनका परिवार किसी को पानी लेने से नहीं रोकता। बापूराव के पिता कहते हैं, "गांव के लोग आ रहे हैं...हमने किसी को नहीं रोका है पानी लेने से।"

प्रशासन ने किया सम्मानित
इस घटना की खबर तुरंत अधिकारियों तक पहुंच गई जिसके बाद वाशिम के जिला प्रशासन ने तहसीलदार क्रांति डोम्बे को गांव में भेजा। तहसीलदार ने कहा कि तांजे के काम की प्रशंसा करते हुए जिला प्रशासन ने उन्हें ‘प्रतिबद्धता और मजबूत इच्छाशक्ति के व्यक्तित्व’ से सम्मानित किया। यह पूछने पर कि क्या तांजे को सरकारी सहायता मुहैया करवाई गई तो डोम्बे ने कहा कि इस तरह का अभी कोई प्रस्ताव नहीं है। बहरहाल सरकार ने दलित व्यक्ति की असाधारण उपलब्धि का संज्ञान लिया है। यह पूछने पर कि क्या जिन लोगों ने कुएं से पानी लेने नहीं दिया उन लोगों पर अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अधिनियम के तहत दंडात्मक कार्रवाई की गई है? तो डोम्बे ने कहा कि उस कुएं की पहचान नहीं हो पाई है, न ही उन ग्रामीणों की जिन्होंने पानी नहीं लेने दिया।

सामाजिक सूखे की कहानी
दरअसल जब राष्ट्रीय मीडिया में ये खबर आई तो इस तरह आई जैसे पत्नी की तकलीफ देखकर पति ने कुआं बना दिया। लेकिन दरअसल यह कुआं दलितों के प्रतिरोध का कुआं भी है, जिसमें सबके लिए पानी है। यह सूखे की नहीं, सामाजिक सूखे की कहानी है, जो कहीं ज्यादा मारक है।
(इनपुट भाषा से भी)


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