महिला अबॉर्शन की हकदार, चाहे कारण कुछ भी हो, वह शादीशुदा हो या लिव इन में हो: हाई कोर्ट

महिला अबॉर्शन की हकदार, चाहे कारण कुछ भी हो, वह शादीशुदा हो या लिव इन में हो: हाई कोर्ट

प्रतीकात्मक तस्वीर

खास बातें

  • बॉम्बे हाई कोर्ट ने महिला के अपनी पसंद का जीवन जीने के अधिकार का साथ दिया
  • कहा-प्रेग्नेंसी ऐक्ट के दायरे को महिला के ‘मानसिक स्वास्थ्य' तक बढ़ाए जाए
  • लिव इन में रहने वाली महिलाओं के लिए भी इसकी वकालत की
नई दिल्ली:

बंबई उच्च न्यायालय ने महिला के अपनी पसंद का जीवन जीने के अधिकार का समर्थन हुए कहा कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी ऐक्ट के दायरे को महिला के ‘मानसिक स्वास्थ्य’ तक बढ़ाया जाना चाहिए और चाहे कोई भी कारण हो उसके पास अवांछित गर्भ को गिराने का विकल्प होना चाहिए.

न्यायमूर्ति वी के टाहिलरमानी और न्यायमूर्ति मृदुला भाटकर की पीठ ने मंगलवार को कहा कि अधिनियम का लाभ सिर्फ विवाहित महिलाओं को ही नहीं दिया जाना चाहिए बल्कि उन महिलाओं को भी मिलना चाहिए जो सहजीवन (लिव इन) में विवाहित दंपति के रूप में अपने पार्टनर के साथ रहती हैं.

अदालत ने कहा कि यद्यपि अधिनियम में प्रावधान है कि कोई महिला 12 सप्ताह से कम की गर्भवती है तो वह गर्भपात करा सकती है और 12 से 20 सप्ताह के बीच महिला या भ्रूण के स्वास्थ्य को खतरा होने की स्थिति में दो चिकित्सकों की सहमति से गर्भपात करा सकती है. अदालत ने कहा कि उस अवधि में उसे गर्भपात कराने की अनुमति दी जानी चाहिए भले ही उसके शारीरिक स्वास्थ्य को कोई खतरा नहीं हो.

अदालत ने यह टिप्पणी गर्भवती महिला कैदियों के बारे में एक खबर का स्वत: संज्ञान लेते हुए की. महिला कैदियों को गर्भ गिराने की इच्छा से जेल अधिकारियों को अवगत कराए जाने के बावजूद अस्पताल नहीं ले जाया गया था. पीठ ने कहा, 'गर्भावस्था महिला के शरीर में होता है और इसका महिला के स्वास्थ्य, मानसिक खरियत और जीवन पर काफी असर होता है. इसलिए, इस गर्भावस्था से वह कैसे निपटना चाहती है इसका फैसला अकेले उसके पास ही होना चाहिए.'


Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com