यह ख़बर 29 जुलाई, 2014 को प्रकाशित हुई थी

सेना में महिलाओं को सौंपी जाएगी कमान, लेकिन मुश्किलें और भी हैं...

नई दिल्ली:

सेना में अब महिलायें भी कमान संभाल सकेंगी, लेकिन यह मौका उन महिलाओं को मिलेगा जो 2015 से सेना में कमीशन होगी। वैसे सेना में महिलायें 1991 से ही शामिल हैं, लेकिन महिलाओें को लेकर सेना में हमेशा से हिचक रही है।

2008 में कोर्ट के फैसले के बाद पहले नौसेना और वायुसेना में महिलाओं को स्थाई कमीशन दिया गया, लेकिन थल सेना ने बड़ी मुश्किल से महिलाओं को स्थाई कमीशन दिया। फिलहाल, महिलाओं को स्थाई कमीशन लीगल, इंटेलिजेंस, सप्लाई में ही दिया गया है। अब 2031 के करीब महिलाओं को स्थाई कमीशन एविएशन, सिग्नल जैसी शाखाओं में दिया जाएगा।

तीनों सेना में महिलाओं की हालत कैसी है, इसका अंदाजा इस बात से भी लगा सकते हैं कि 12 लाख की थल सेना में महज 2250 महिलाएं हैं, वह भी अफसर हैं, 99 हजार वाली नौसेना में 465 महिला अफसर हैं और एक लाख 40 हजार वाली वायुसेना में महज 1100 महिला अफसर है। उल्लेखनीय है कि देश के अर्द्धसैनिक बलों में महिला जवानों की भर्ती भी होती है। यहां तक की सीमा सुरक्षा बल में महिलाओं को अंतरराष्ट्रीय सीमा पर भारतीय पोस्ट की सुरक्षा में तैनात किया गया है और सीमा पर पैट्रोलिंग भी कर रही हैं। हां, अब 15 साल बाद भारतीय सेना में महिला अधिकारी अपनी यूनिट कमांड कर सकेंगी। वहीं, महिला अधिकारियों का दावा है कि सेना के भीतर तमाम मौके पर प्रतिस्पर्धाओं में महिला अधिकारियों ने बेहतर प्रदर्शन किया है। बावजूद इसके, वहीं, इनका तर्क है कि बेहतर प्रदर्शन को दरकिनार करते हुए सेना ने कभी महिला अधिकारियों को तवज्जो नहीं दी। और अब जब सेना कमान देने को तैयार हुई है तब वह भी कोर्ट के दखल के बाद संभव हो पाया है।

वहीं, भारतीय सेना में ये सारी महिला अधिकारी स्पोर्ट रोल में हैं, पर कॉम्बेट रोल का सवाल ही नहीं होता। इसका सीधा मतलब यह ही कोई महिला अधिकारी लड़ाई के मैदान में नहीं जा सकती है, वहीं, नौसेना में महिला युद्धपोत में नहीं जा सकती है और न ही वायुसेना में महिला लड़ाकू विमान उड़ा सकती है।

उधर, पाकिस्तान जैसे कट्टर मुल्क में आज महिला लड़ाकू विमान उड़ा रही हैं और हाल में पाकिस्तान की वायुसेना की फ्लाइट लेफ्टिनेंट आएशा फारूक ने दुनिया में पहली महिला फाइटर पायलट का गौरव हासिल किया जिसने किसी इलाके में बम गिराया है।

सेना के एक बड़े अधिकारी ने बताया कि देखिये भारत में हालात अलग हैं, महिलाओं को अचानक सेना में ऊपर नहीं ले जाया जा सकता है। उसके लिए ट्रेनिंग के साथ माहौल बनाना पड़ेगा, तब जाकर बात बन सकती है।

वहीं, सेना में पांच साल काम कर चुकी कैप्टन सुमिषा शंकर कहती हैं कि महिलाओं को मौका तो दीजिए, आप महिलाओं के लिए एक नेशनल डिफेन्स अकादमी बनवाइए, फिर रिजल्ट देखिए। केवल घोषणा से नहीं होगा, उससे पहले ठोस ढांचा बनाना होगा। देश की आधी आबादी महिला है, लेकिन पता नहीं क्यों महिलाओं को कुछ भी आसानी से नहीं मिला है।

महिलाओं के अधिकार लड़ने वाली एक समाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि जहां कहीं भी महिला काम करती है, उस संगठन में कई अच्छे बदलाव भी आते हैं।

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कुछ लोगों का तर्क है कि अगर सेना में महिलाएं ज्यादा शामिल होती हैं तब सेना का मानवीय चेहरा सबके सामने आएगा और मानवाधिकार हनन, आत्महत्या और अवसाद जैसी घटनाओं पर लगाम लगेगी।