यह ख़बर 17 मई, 2012 को प्रकाशित हुई थी

बच्चे के इलाज के लिए मांगनी पड़ी 'भीख'

खास बातें

  • चित्रकूट जिले के सरकारी अस्पताल के चिकित्सक ने एक गरीब बच्चे का इलाज अस्पताल में करने के बजाय उसे अपने घर पर फीस के साथ आने को कहा, मगर फीस का जुगाड़ न होने पर इस गरीब को बीमार बच्चे के साथ सरेआम सड़क पर 'भीख' मांगनी पड़ी।
चित्रकूट:

गरीबी पत्थर से भी कठोर होती है, इसका जीता-जागता उदाहरण उस समय देखने को मिला जब उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले के सरकारी अस्पताल के चिकित्सक ने एक गरीब बच्चे का इलाज अस्पताल में करने के बजाय उसे अपने घर पर फीस के साथ आने को कहा, मगर फीस का जुगाड़ न होने पर इस गरीब को बीमार बच्चे के साथ सरेआम सड़क पर 'भीख' मांगनी पड़ी।

मामला कुछ यूं है कि गरीबी से तंगहाल रैपुरा थाना क्षेत्र के खजुरिहा गांव का बलवंता कर्ज लेकर गंभीर बीमारी से जूझ रहे अपने 10 साल के भतीजे राहुल को लेकर बुधवार को चित्रकूट के सरकारी अस्पताल में इस उम्मीद से पहुंचा कि यहां महज एक रुपये के पर्चे पर बच्चे का उपचार हो जाएगा। उसे क्या मालूम था कि सरकारी चिकित्सक भीख मांगने के लिए मजबूर कर देगा।

बलवंता ने अस्पताल में पर्चा तो बनवा लिया, मगर आपातकालीन सेवा में तैनात एक सरकारी चिकित्सक ने बच्चे को देखते ही सलाह दे दी कि इस बच्चे को गंभीर बीमारी है। अस्पताल में इलाज संभव नहीं है, इसलिए वह फीस का इंतजाम कर आवास में आए।

मजबूर बलवंता क्या करता? उसने बीमार बच्चे के साथ जिला कचहरी से लगी सड़क में सरेआम 'भीख' मांगना शुरू कर दिया। बलवंता ने बताया कि कई दिनों से उसका भतीजा राहुल किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित है।

उसने बताया कि आर्थिक हालत इतनी कमजोर है कि सरकारी अस्पताल तक पहुंचने के लिए भी उसे गांव में कर्ज लेना पड़ा है। उसने बताया कि सरकारी अस्पताल के चिकित्सक ने अपने घर में इलाज के लिए बुलाया था, मगर उसके पास पैसे नहीं है कि वह डॉक्टर की फीस चुका पाए। इसलिए, भीख मांगना मजबूरी है।

इस मसले पर सरकारी अस्पताल चित्रकूट के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक (सीएमएस) डॉ. देशराज सिंह ने बताया, "अस्पताल के बजाय घर में बुलाना शासन की मंशा के विपरीत है, मैं इस मामले की खुद जांच करूंगा और दोषी चिकित्सक के खिलाफ  कड़ी कार्रवाई होगी।"

चित्रकूट के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) डॉ. आरडी राम ने बताया कि उन्हें मीडिया के जरिए इस मामले की जानकारी मिली है। उप मुख्य चिकित्साधिकारी सदर को जांच सौंप दी गई है।

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इस मामले से लोगों के इस आरोप पर मुहर लग गई है कि बलवंता जैसे तमाम गरीब रोजाना सरकारी चिकित्सकों की लापरवाही के शिकार हो रहे हैं और महज 'कुछ' पाने की लालच में चिकित्सक अपने कर्तव्य को धता बता रहे हैं। इससे जहां सरकार की मंशा को ठेस पहुंचती है, वहीं मानवता भी तार-तार हो रही है।