एजे डंकन की किताब आपको बताएगी विश्व धरोहर कालका-शिमला रेलखंड से जुड़ी दिलचस्प बातें

एजे डंकन की किताब आपको बताएगी विश्व धरोहर कालका-शिमला रेलखंड से जुड़ी दिलचस्प बातें

नयी दिल्ली:

सुन्दर, मनमोहक पहाड़ियों एवं घाटियों, बर्फीले हिमखंडों से युक्त 102 सुरंगों और चार मंजिला स्टोन आर्च पुल वाले विश्व धरोहर कालका-शिमला हेरीटेज रेलखंड के निर्माण में किसी ब्रिटिश इंजीनियर की बजाए एक अनपढ़ पहाड़ी गड़रिया भलखू ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी. रेलखंड के निर्माण से पहले विक्टोरिया युग में शिमला की यात्रा अपने आप में इसलिए खास थी क्योंकि सामान सहित उंटों और बैलगाड़ियों के जरिये यात्रा पूरी होती थी.

ए जे डंकन ने अपनी पुस्तक ‘द सिम्पल एडवेंचर्स आफ ए मेम साहब’ (लंदन 1983) में बताया है कि किस प्रकार एक परिवार जिसमें एक मां, तीन बच्चे, एक नर्स आदि, अपने सामान के साथ कलकत्ता से शिमला आने के लिए 11 ऊंट और 4 बैलगाड़ियों से यात्रा करने की योजना बनाते हैं.

पुस्तक के अनुसार उन दिनों रेलगाड़ी नहीं होने के कारण ऐसी यात्रा उंटों और बैलगाड़ियों की मदद से पूरी की जाती थी. पहले ऊंट पर कपड़ों के दो बड़े एवं दो छोटे ट्रंक, दूसरे ऊंट पर बच्चों के कपड़ों का संदूक एवं तीन बैग, तीसरे ऊंट पर किताबों के बक्से एवं फोल्डिंग कुर्सियां, चौथे ऊंट पर सामान के चार बक्से एवं बरसाती शीट, पांचवे ऊंट पर दराज वाले बाक्स, दो चारपायी एवं चार टेबल, छठे ऊंट पर दराजों वाला दूसरा बक्सा, स्क्रीन लैंप, लालटेन आदि, सातवें ऊंट पर चादर, बाल्टी, साजावटी सामान एवं बर्फ रखने की बाल्टी, आठवें ऊंट पर क्राकरी के तीन बक्से, टेनिस पोल आदि, नौवें ऊंट पर दूध रखने के बर्तन, बच्चों के टब, सिलाई मशीन घड़े, दसवें ऊंट पर रसोई के बर्तन एवं गलीचे तथा ग्यारहवें ऊंट पर नौकरों की चारपायी, टेबल ग्लास आदि का लदान होता था.

डंकन ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि चार बैलगाड़ियों पर ऐसे सामान लादे जाते थे जो क्षतिग्रस्त नहीं हों. इनमें प्यानो आदि शामिल थे.

1903 के अंत में रेल लाइन खुलने के बाद कालका शिमला रेलवे पर नियमित रूप से रेल सेवाएं प्रारंभ हुई.


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