'न महिला, न पुरुष, शनि शिंगणापुर में पवित्र चबूतरे पर पूजा करेंगे सिर्फ पुजारी'

'न महिला, न पुरुष, शनि शिंगणापुर में पवित्र चबूतरे पर पूजा करेंगे सिर्फ पुजारी'

मुंबई:

शनि शिंगणापुर में चबूतरे पर तेलाभिषेक को लेकर मतभेद और बढ़ गया है। रविवार को पुणे में श्री श्री रवि शंकर के साथ शिंगणापुर ट्रस्ट और भूमाता रणरागिनी ब्रिगेड की बैठक के बाद इस मसले पर दोनों पक्षों के सुर बदले हुए थे। बैठक के बाद फैसला किया गया कि पवित्र चबूतरे पर चढ़कर पूजा-अर्चना सिर्फ पुजारी ही करेंगे, लेकिन भूमाता ब्रिगेड ने साफ कह दिया कि ये फैसला सिर्फ महिलाओं को पूजा के अधिकार से वंचित रखने की वजह से लिया गया है, जो उन्हें मंजूर नहीं है।

पवित्र चबूतरे पर सिर्फ चढ़ेंगे पुजारी!
बैठक के बाद श्रीश्री रविशंकर ने कहा कि ये फैसला इसलिए किया गया है, क्योंकि शिला पर अधि‍क तेल चढ़ाने की वजह से सीढ़ियों पर फिसलन हो जाती है। इससे कई दुर्घटनाएं हुई हैं, इसलिए इस बात पर सहमति बनी है कि अब पुरुष और महिला दोनों ही चबूतरे पर नहीं चढ़ेंगे, सिर्फ पुजारी ही पवित्र चबूतरे पर चढ़कर पूजा-अर्चना करेंगे। शि‍ला पर तेल भी मशीन के जरिये चढ़ाया जाएगा। श्री श्री रविशंकर ने ये भी कहा कि पूरे देश में 'दो तरह से पूजा हो रही है, एक पुरी जगन्नाथ या बालाजी जहां गर्भ गृह में सभी प्रवेश नहीं करते हैं, दूसरा काशी विश्वनाथ जहां लिंग को छूकर सभी पूजा कर सकते हैं।'

फैसले से भूमाता ब्रिगेड नाखुश
भूमाता ब्रिगेड इस फैसले से खुश नहीं दिखी। बैठक के बाद तृप्ति देसाई ने कहा कि अगर महिलाओं की वजह से पुरुषों को पूजा न करने को मिले, तो ये सही नहीं है। ऐसा लग रहा है कि ये फैसला सिर्फ महिलाओं को पूजा न करने देने की वजह से लिया गया है।

सीएम का दायरा चबूतरे तक?
शनिवार को अहमदनगर में महिलाओं को पूजा के अधिकार पर कलेक्टर ने बैठक बुलाई थी, जिसमें मंदिर के ट्रस्टी, अधिकारी और महिला भक्त सब शामिल हुए थे। बैठक खत्म होने के बाद भूमाता रणरागिनी ब्रिगेड की तृप्ति देसाई ने कहा था कि मुख्यमंत्री जो कहेंगे सबको मंज़ूर होगा। लेकिन रविवार को इस मुद्दे पर श्री श्री ने कहा जब ये बात सामने आएगी, तो हम देखेंगे सीएम से भी बात करेंगे।

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कैसा बढ़ा विवाद
कुछ दिनों पहले एक महिला शनि भगवान के चबूतरे तक पहुंच गई थी, जिसके बाद शिंगणापुर एक दिन के लिए बंद रहा और चबूतरे की सफाई हुई। भूमाता ब्रिगेड ने इस कथित शुद्धिकरण के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और कई दिनों तक प्रदर्शन किया। 29 जनवरी को 400 साल पुरानी परंपरा को तोड़ने तकरीबन 400 महिलाओं ने मंदिर तक पहुंचने की कोशिश की, लेकिन उन्हें सूपा में रोक दिया गया।