आखिर, अखिलेश के विद्रोह से लालू प्रसाद यादव क्यों चिंतित हैं?

आखिर, अखिलेश के विद्रोह से लालू प्रसाद यादव क्यों चिंतित हैं?

लालू प्रसाद यादव चाय पीते हुए...

खास बातें

  • लालू की चिंता, दो धड़ों में बंटी सपा के किस धड़े के साथ वो रहेंगे.
  • लालू के लिए किसी के समर्थन में खड़े होना उतना आसान नहीं होगा.
  • अखिलेश आज पूरे देश में चर्चा के केंद्र में हैं...
पटना:

उत्तर प्रदेश की राजनीति खासकर समाजवादी पार्टी के अंदर जो उठापठक चल रही है, भले ही उसका प्रभाव बिहार की राजनीति पर तत्काल कुछ न पड़े, लेकिन इसे लेकर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के अध्‍यक्ष लालू प्रसाद यादव तनाव में हैं. दरअसल, लालू यादव की चिंता इस बात को लेकर नहीं है कि उनके बीच-बचाव के प्रयास और दावे धरे के धरे रह गए, लेकिन अखिलेश ने जिस तरह सत्ता और पार्टी पर कब्ज़ा जमाया हैं और राजनीति में लंबी रेखा खींचते जा रहे हैं... यह लालू के लिए चिंता की वजह है.

ये बात किसी से छिपी नहीं कि लालू और मुलायम सिंह यादव राजनीति में एक ही जाति के होने के बावजूद अपने राजनीतिक शिखर पर एक-दूसरे के कट्टर विरोधी रहे. दोनों के बीच राजनीतिक कटुता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता हैं कि लालू ने मुलायम सिंह के प्रधानमंत्री बनने की उम्‍मीद पर अपने प्रयास से पानी फेर दिया था. हालांकि लालू ने इसे बाद के दिनों में अपनी गलती मानते हुए माफ़ी भी मांगी थी, लेकिन ये खटास वर्षों बाद लालू की सबसे छोटी बेटी लक्ष्‍मी की शादी से कम हुई, जिसकी शादी मुलायम सिंह यादव के बड़े भाई के पोते तेज प्रताप सिंह के साथ हुई. तेज प्रताप समाजवादी पार्टी के मैनपुरी से सांसद भी हैं. ये बात अलग है कि इस संबंध के बावजूद जब लालू और नीतीश ने मुलायम सिंह यादव के समाजवादी पार्टी में विलय की घोषणा की और रामगोपाल यादव ने अकेले इस विलय को रोकने में कामयाबी पाई थी तब ये माना गया कि लालू की भी मौन सहमति थी.

लेकिन लालू की परेशानी है कि फ़िलहाल उन्हें अगले कुछ दिनों में ये निर्णय लेना होगा की दो धड़ों में बंटी समाजवादी पार्टी के किस धड़े के साथ वो रहते हैं. चाहे वो अखिलेश की समाजवादी पार्टी हो या शिवपाल की... लालू के लिए किसी के समर्थन में खड़े होना उतना आसान नहीं होगा. हालांकि उनकी कोशिश होगी, जहां उनके दामाद के कदम हों, उसके साथ रहना ही उनके लिए बेहतर होगा. फ़िलहाल लखनऊ से खबरों के अनुसार तेज प्रताप, अखिलेश यादव के साथ हैं, इसलिए मुलायम सिंह के पीछे न खड़े रहना अब उनकी मजबूरी है. यहीं से लालू यादव की असल मुश्किल शुरू होती है.

दरअसल, लालू यादव को मालूम है कि भले अखिलेश यादव ने अपने पिता को मार्गदर्शक मंडल का रास्ता दिखा दिया हो, लेकिन अब तक के अखिलेश के मन और मिजाज से एक चीज साफ़ है कि वो सरकार और पार्टी चलाने के लिए किसी अपराधी, बाहुबली से किसी तरह का संबंध नहीं रखना चाहते.. भले ही वो किसी जाति या धर्म से आता हो. इस आधार पर लालू को मालूम हैं कि उनके पार्टी में एक नहीं दर्जन भर लोग ऐसे हैं, जिस पर अखिलेश जैसे नेता संबंधी होने के आधार पर नजरअंदाज नहीं करने वाले. लालू जानते हैं कि नीतीश कुमार के लिए मोदी विरोध के नाम पर उनके साथ राजनीतिक संबंध रखने की मजबूरी हो, लेकिन अखिलेश के लिए ऐसी कोई बाध्यता नहीं है और तब लालू को देर-सवेर ये निर्णय लेना होगा कि वो अखिलेश के साथ भविष्‍य की राजनीति करते हैं या अपनी पार्टी के बाहुबलियों के सामने नतमस्तक रहते हैं. हालांकि जब भी उनकी पार्टी के किसी नेता भले ही वो शहाबुद्दीन हो या राजभल्लव यादव.. उनके खिलाफ नीतीश सरकार ने कार्रवाई की, तब लालू ने मौन रहकर सरकार बचाना ज्यादा बेहतर समझा.

लेकिन लालू यादव की असल दिक्कत इस बात को लेकर है कि अब हर दिन बिहार के उनके समर्थकों में अखिलेश चर्चा का केंद्र रहेंगे और यहां उनके दोनों बेटे तेजप्रताप और तेजस्वी यादव के 'परफॉरमेंस' पर चर्चा केंद्रित होगी. अखिलेश आज पूरे देश में चर्चा के केंद्र में हैं, तब उनका काम मुख्य आधार रहा हैं और लालू यादव खुद भी जानते हैं कि सब जानते हैं कि अपने बेटों के विभाग का रिमोट उनके पास रहने के बावजूद अखिलेश को छोडि़ए, लेकिन नीतीश कुमार के पूर्व के बीजेपी के मंत्रियों से भी तुलना करने के लायक उनका कार्यकाल नहीं रहा है. फ़िलहाल लालू यादव ने अपने दोनों बेटो के हिस्से में आठ विभाग रखे हैं और कई विभाग के दफ्तर में भी उनके बेटे तेजप्रताप यादव महीनों नहीं जाते. अपने विभाग के कार्यक्रम में भी तेजप्रताप का नदारद रहना चर्चा का विषय होता हैं. उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव अपने एक विभाग पथ निर्माण में रूचि तो लेते हैं, लेकिन अन्य विभागों के कामकाज में जितना सोशल मीडिया में उनकी सक्रियता रहती हैं, उतनी कभी नहीं देखी गई.  

लालू यादव खुद अधिकांश विभाग के कामकाज में खुलकर दखलंदाजी भी करते हैं. जो आज की तारीख में अखिलेश ब्रांड की राजनीति और कामकाज की शैली से कहीं भी मेल नहीं खाता. हालांकि लालू से ज्यादा उनके बेटों को अब राजनीति के ब्रांड लालू और अखिलेश में से एक को चुनना होगा. ब्रांड लालू का अनुसरण कर वो सत्ता में एक हद तक जा सकते हैं, लेकिन ब्रांड अखिलेश को अपनाकर वो खासकर तेजस्वी यादव अपने जीवन की राजनीतिक महत्वाकांक्षा को पूरा कर सकते हैं.. अन्यथा बिहार में ब्रांड नीतीश तब तक चलता रहेगा जब तक वो सत्ता में बने रहना चाहते हैं.


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