यह ख़बर 23 अगस्त, 2014 को प्रकाशित हुई थी

भारतीय पावर पंच की परीक्षा

नई दिल्ली:

ओलिम्पिक पदक विजेता एमसी मैरीकॉम की कहानी अगले महीने रुपहले पर्दे पर होगी जिसका इंतज़ार मैरी कॉम के साथ−साथ खेलों से जुड़ी फ़िल्मों को पसंद करने वाले फ़ैन्स बेताबी से कर रहे हैं। लेकिन मैरीकॉम के सामने शायद इससे कहीं बड़ी चुनौती इंचियन एशियाई खेलों के लिए क्वालिफ़ाई करने और वहां मेडल जीतने की है।

ग्लासगो कॉमनवेल्थ खेलों की कामयाबी के बाद महिला मुक्केबाज़ों से उम्मीदें तो बढ़ी हैं, लेकिन उनकी चुनौतियां कम नहीं हुई हैं। ग्लासगो कॉमनवेल्थ खेलों में एक रजत और एक कांस्य पदक जीतने का असर दिल्ली के इंदिरा गांधी इंडोर स्टेडियम में अभ्यास कर रहीं क़रीब चालीस मुक्केबाज़ों के पंच में साफ़ दिखने लगा है।

ग्लासगो कॉमनवेल्थ खेलों में 60 किलोग्राम वर्ग में रजत पदक जीतने वाली सरिता देवी की पहचान बेहतर हुई है और वह इससे खुश भी नज़र आ रही है। ग्लासगो की कामयाबी के बाद सरिता देवी को अपने पति थोइबा सिंह और डेढ़ साल के बेटे टोमथिल के साथ पांच दिन वक्त बिताने का मौक़ा मिला। इसी दौरान वह पुरस्कार समारोह और टीवी इंटरव्यूज़ के लिए भी समय निकालती रहीं। जल्दी ही वह दोगुने जोश के साथ रिंग में अभ्यास करने लगी हैं।

सरिता कहती हैं मां बनने के बाद इस मेडल को जीतने से मैं बहुत खुश हूं और इससे मेरा आत्मविश्वास भी बढ़ा है। सरिता देवी को अंदाज़ा है कि इंचियन एशियाई खेलों में उनकी चुनौती इससे बेहद अलग होने वाली है। वह कहती हैं चीन और उत्तरी कोरिया की खिलाड़ियों से शायद उन्हें कड़ी चुनौती मिल सकती है, लेकिन वह ये भी कहती हैं कि दूसरे देशों के मुक्केबाज़ अब भारतीय बॉक्सर्स को हल्का नहीं आंकते। इसलिए उन्हें दूसरे देशों के मुक्केबाज़ों के ख़िलाफ़ मनोवैज्ञानिक फ़ायदा हासिल है।

कुछ यही हाल हिसार की पिंकी रानी का है। ग्लासगो कॉमनवेल्थ खेलों के पिंकी रानी को कांस्य पदक हासिल करने से संतोष भर है। वह जानती हैं कि एशियाड में जाने के लिए एक बार फिर उन्हें ओलिम्पिक पदक विजेता एमसी मैरीकॉम से टक्कर लेनी होगी जो आसान नहीं होने वाली। मैरीकॉम पहले से ज़्यादा फ़िट नज़र आ रही हैं।

हालांकि पिंकी कहती हैं, 'मैरीकॉम मेरी रोल मॉडल हैं। मैं क़रीब आठ साल से उनकी बॉक्सिंग देख रही हूं। मेरी तमन्ना थी कि उन्हें हरा कर नाम कमाऊं। एक ही वज़न वर्ग में लड़ने की वजह से मैं ऐसा कर पाई। एक बार एशियाड जाने से पहले उन्हें हराने की चुनौती होगी।'

इन खिलाड़ियों के ट्रायल्स पटियाला में 26 अगस्त को होने हैं। तीन भारतीय मुक्केबाज़ों को इंचियन एशियन गेम्स में खेलने का मौक़ा मिलेगा। इनमें से कौन बाज़ी मारेगा इसे कहने का ज़ोख़िम कोई कोच नहीं उठाना चाहता। इसे भारत के बेहतर बेंच स्ट्रेंथ का इशारा भी कह सकते हैं। एशियाड में इन खिलाड़ियों के सामने चीन और कोरियाई मुक्केबाज़ों की मुश्किल चुनौती तो होगी ही।

एक बड़ी मुश्किल यह है कि पिछले दो साल से अंतरराष्ट्रीय बॉक्सिंग संघ ने भारतीय मुक्केबाज़ी संघ की मान्यता रद्द कर रखी है। ऐसे में खिलाड़ियों को विदेशी टू्र्नामेंट में जाने का मौका ना के बराबर मिला है। मसलन पिछले दो साल में भारतीय महिला मुक्केबाज़ों को कॉमनवेल्थ खेलों के अलावा सिर्फ़ एक अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में हिस्सा लेने का मौक़ा मिला है।

जानकार मानते हैं कि इससे उनकी मुश्किलों का सफ़र लंबा हो गया है। वहीं टीम के मुख्य कोच अनूप कुमार कहते हैं सरकार से सुविधाएं तो मिल रही हैं, लेकिन फ़ेडरेशन के बैन होने की वजह से अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट नहीं मिले इससे बहुत नुकसान हो गया।

कोच हेमलता बगड्वाल भी मानती हैं कि विदेशी खिलाड़ियों के साथ नहीं खेल पाने से खिलाड़ियों को मुश्किल हुई है। वह कहती हैं एशियाड में यकीनन चुनौती अलग होगी।

महिला मुक्केबाज़ी में ख़ासकर मैरीकॉम के लंदन के ओलिम्पिक पदक के बाद बदलाव तो आए हैं, लेकिन इस खेल के कर्ता−धर्ता बड़े स्तर पर इसे भुनाने में उतने कामयाब नहीं रहे हैं।

मणिपुर पुलिस में डीएसपी बनीं सरिता देवी कहती हैं, 'मैरीकॉम के लंदन के मेडल के बाद बहुत बदलाव आए हैं। खिलाड़ियों को नौकरियां मिली हैं। स्पॉन्सर आए हैं। हमारी पहचान बनी है। लेकिन अंतरराष्ट्रीय अनुभवों की कमी साफ़ खलती है।

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भारतीय बॉक्सिंग संघ की डांवाडोल हालत के बावजूद महिला मुक्केबाज़ों ने ग्लासगो कॉमनवेल्थ खेलों में जो कामयाबी हासिल की है, वह काबिले तारीफ़ है। लेकिन विजेन्द्र सिंह, मैरीकॉम और सरिता देवी सहित ज़्यादातर कोच और खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर के मैचों की कमी की शिकायत करते रहे हैं। इसका ख़ामियाज़ा भारतीय मुक्केबाज़ों ने ग्लासगो में भुगता और हो सकता है कि इंचियन एशियाई खेलों में भी भुगतना पड़े। इसलिए इनका असली इम्तिहान इंचियन एशियाई खेलों में होगा, जहां असल में पता चलेगा भारतीय मुक्केबाज़ी के पंच में कितना दम है।