...जब पुलिसिया कामकाज में इस्‍तेमाल कठिन शब्‍दों के खिलाफ हाईकोर्ट में लगी अर्जी

प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर...

नई दिल्‍ली:

दिल्‍ली पुलिस की रोजाना की कार्यप्रणाली में इस्‍तेमाल होने वाले उर्दू-पारसी के बेहद पुराने और कठिन शब्‍दों को उसके कामकाज से हटाए जाने की मांग करती एक जनहित याचिका दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय में दायर की गई है।

एडवोकेट अमित साहनी द्वारा दायर इस याचिका में कहा गया है कि दिल्‍ली पुलिस अपने पुलिस स्‍टेशनों में होने वाले दैनिक कामकाज, एफआईआर, गवाहों के बयान दर्ज करने और अदालत में दाखिल चालान समेत अन्‍य कागजी कामों में काफी प्राचीन और कठिन उर्दू एवं पारसी शब्‍दों का इस्‍तेमाल करती है। इन्‍हें समझने में न केवल आम लोगों बल्कि वकीलों को भी बेहद दिक्‍कत आती है, लिहाजा इन्‍हें पुलिस की शब्‍दावली से हटाया जाए और इनकी जगह हिंदी और अंग्रेजी के सरल शब्‍दों को इस्‍तेमाल करने का निर्देश पुलिस विभाग को दिया जाए।

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याचिकाकर्ता एडवोकेट साहनी की याचिका पर दिल्‍ली हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस जी. रोहिणी और जस्टिस जयंत नाथ की खंडपीठ ने दिल्‍ली पुलिस कमिश्‍नर बीएस बस्‍सी एवं अन्‍य को नोटिस जारी किया है। साथ ही खंडपीठ ने प्रतिवादियों से यह भी जवाब देने को कहा है क्‍या अन्‍य राज्‍यों की पुलिस उर्दू/पारसी शब्‍दों की बजाय सरल हिंदी/अंग्रेजी शब्‍दों का इस्‍तेमाल कर रही है या उसने अपनी शब्‍दावली में इन्‍हें बदला है?
 
दरअसल, याचिका में इन शब्‍दों को हटाने को लेकर आधार बताया गया कि 'न्‍याय का अधिकार होने के कारण आरोपी को भी सीधी-सादी भाषा में यह जानने का हक़ है कि उसके खिलाफ़  किस कानून, धारा और आरोप के तहत  मुकदमा दायर किया गया है। अगर इन शब्‍दों को पुलिसिया कामकाज से हटा दिया जाए तो इससे पुलिस महकमे को भी उर्दू और पारसी भाषा पढ़ाने-समझाने के लिए अतिरिक्‍त वक्‍त, पैसा और कर्मचारियों को रखने की जरूरत नहीं पड़ेगी।" याचिकाकर्ता ने आगे कहा है कि ''आम आदमी के साथ वकीलों और यहां तक की न्‍यायिक अधिकारियों को भी कभी-कभी इन शब्‍दों को समझने में दिक्‍कत आती है। साथ ही कई राज्‍य अपने यहां पुलिस को यह आदेश दे चुके हैं कि वह अपनी शब्‍दावली से ऐसे कठिन शब्‍दों को हटाए।''