कोलकाता के अस्पताल में 'जादू की झप्पी' के साथ मरीजों का इलाज करेंगे डॉक्टर

कोलकाता के अस्पताल में 'जादू की झप्पी' के साथ मरीजों का इलाज करेंगे डॉक्टर

प्रतीकात्मक फोटो

कोलकाता:

आपको फिल्म 'मुन्नाभाई एमबीबीएस' में रोगियों पर जादू-सा असर करती मुन्ना भाई की 'जादू की झप्पी' तो याद होगी ही. कोलकाता के एक चिकित्सक द्वारा संचार कौशल का एक ऐसा ही अनूठा पाठ्यक्रम तैयार किया गया है जो चिकित्सक को संवेदनशील होना सिखाता है, और साथ ही यह मरीज और चिकित्सक के बीच की दूरी मिटाने का काम भी करता है.

सरकारी मेडिकल कॉलेज 'इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च' (आईपीजीएमइआर) में एमबीबीएस पास करने वाले सभी विद्यार्थियों के लिए डॉ दीप्तेंद्र कुमार सरकार द्वारा शुरू किया गया संचार कौशल पाठ्यक्रम करना जरूरी है.

आईपीजीएमइआर में ब्रेस्ट सर्विसिज एवं रिसर्च यूनिट के प्रमुख सरकार ने बताया, "फिल्म 'मुन्नाभाई एमबीबीएस' का सार एक चिकित्सक द्वारा उसकी 'जादू की झप्पी' के जरिए मरीज के अंतरमन तक पहुंचने पर आधारित था. पश्चिमी दुनिया ने हर मेडिकल स्नातक के लिए संचार कौशल का पाठ्यक्रम जरूरी कर दिया है और उन्हें दुनिया में कोई भी डिग्री लेने के लिए उस पाठ्यक्रम में पास होना अनिवार्य है."

सरकार ने कहा, "मैंने पिछले साल से आईपीजीएमइआर में औपचारिक रूप से यह पाठ्यक्रम शुरू किया है. इंटर्नशिप से पहले उन्हें यह पाठ्यक्रम पूरा करना जरूरी है. इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है. इसके सात या आठ मॉड्यूल्स हैं." इनमें से एक मॉड्यूल में कैंसर के मरीजों के साथ सही प्रकार से व्यवहार करना सिखाया जाता है.

सरकार ने ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म 'आनंद' के मरणासन्न रोगी आनंद (राजेश खन्ना) और डॉ. भास्कर (अमिताभ बच्चन) का उदाहरण देते हुए कहा, "दो स्थितियां हो सकती हैं : रोगियों को कैसे बताया जाए कि उन्हें कैंसर है या फिर उनकी स्थिति कैंसर के कारण अंतिम अवस्था तक पहुंच गई है." सरकार ने बताया कि पाठ्यक्रम के अंतर्गत चिकित्सक और शल्य चिकित्सक को मरहम-पट्टी करने से लेकर बातचीत तक का शिष्टाचार सिखाया जाता है.

सरकार ने कहा, "हम यह भी सिखा रहे हैं कि एक डॉक्टर या सर्जन को कैसे कपड़े पहनने चाहिए, समाज में कैसे रहना चाहिए और मरीज से कैसे बात करनी चाहिए. कोई भी अपनी इच्छा से अस्पताल में नहीं आता. मरीज बेहद तनाव में होते हैं. इसलिए इस तरह से वे सामान्य व्यक्ति नहीं होते और इसलिए उनका व्यवहार भी अलग होता है. चिकित्सक को उनके साथ संवेदनशीलता और धर्य से काम लेना चाहिए."

उन्होंने विस्तार से कहा, "आपको गंभीर रूप से बीमार व्यक्ति के सामने न तो सेलफोन पर बात करनी चाहिए, और न हंसना ही चाहिए. चिकित्सक हर रोज मौत से निपटते हैं, इसलिए उनके व्यवहार अलग होते हैं, लेकिन मरीजों के साथ ऐसा नहीं होता, इसलिए मौत को लेकर उनकी प्रतिक्रिया अलग होती है."

उन्होंने कहा, "कई बार मरीज वाट्सएप पर रिपोर्ट साझा करते हैं. चिकित्सकों को इस बारे में बेहद सावधान रहना चाहिए और उन्हें सलाह देना चाहिए कि उनके क्लीनिक में आए, उन्हें मैसेंजर पर आधिकारिक पेशेवर राय नहीं देनी चाहिए."

(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)


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