यह ख़बर 16 जुलाई, 2013 को प्रकाशित हुई थी

उत्तराखंड : 'सर्वनाश' के बीच जारी है बचपन के प्यार की तलाश...

खास बातें

  • दोनों दोस्त केदार घाटी में पिछले महीने हुई त्रासदी में लापता हुए अपने-अपने करीबियों को तलाश रहे हैं... सौरभ यहां अपने 'बचपन के प्यार' को ढूंढ रहा है, जबकि मनीष अपने जन्मदाता की तलाश में भटक रहा है।
सोनप्रयाग:

उलझे बालों, और हल्की-हल्की दाढ़ी के साथ कंधे पर बैग और हाथों में कुछ कागज़ात लिए घूम रहे इन दोनों लड़कों को देखकर कुछ महसूस नहीं होता, और पिछले एक माह से यह उत्तराखंड में कतई सामान्य नज़ारा है... लेकिन इनकी कहानियां सुनकर पता चलता है कि न तो इनका इरादा सामान्य है, और न इनके हौसले...

कानपुर के रहने वाले दो दोस्त - सौरभ मिश्रा और मनीष दीक्षित - एक ही उद्देश्य से सोनप्रयाग में हैं... ये दोनों लड़के केदार घाटी में पिछले महीने हुई त्रासदी में लापता हुए अपने-अपने करीबियों को तलाश रहे हैं... सौरभ यहां अपने 'बचपन के प्यार' को ढूंढ रहा है, जबकि मनीष अपने जन्मदाता की तलाश में भटक रहा है...

इनका यह खोजी सफर एक महीना पहले शुरू हुआ था, और इस दौरान देहरादून, ऋषिकेश और रुद्रप्रयाग की खाक ये लोग छान चुके हैं, लेकिन उम्मीद पूरी नहीं हुई... फिर भी हिम्मत न हारते हुए ये दोनों सोनप्रयाग पहुंच गए, जहां केदारनाथ जाने के लिए गाड़ियों वाली सड़क खत्म हो जाती है...

सौरभ दरअसल 23-वर्षीय ऋचा त्रिपाठी, उसके माता-पिता तथा 14 अन्य लोगों को तलाश रहा है... सौरभ के अनुसार, "हमारे बीच (सौरभ और ऋचा के बीच) आज से सात साल पहले प्यार हुआ था... वर्ष 2011 में हमने शादी भी कर ली थी, लेकिन अपने-अपने माता-पिता की मर्ज़ी के खिलाफ..."

वैसे वासुकी तथा मंदाकिनी नदियों के संगम के लिए जाना जाने वाला सोनप्रयाग कस्बा पूरी तरह तबाह हो चुका है... वहां दूर-दूर तक कोई इंसान दिखाई नहीं देता... इस वक्त यहां सिर्फ ढहे हुए मकान, दुकानें और गेस्ट हाउस ही नज़र आ रहे हैं... जहां बाज़ार हुआ करता था, वहां सिर्फ लोहे के गर्डर, और रेत दिख रही है... चलने लायक हालत में बची इकलौती सड़क पर चप्पलों, जूतों और बदकिस्मत लोगों के अन्य सामानों के ढेर दिखाई दे रहे हैं... माहौल ऐसा है कि उस बेहद दहला देने वाली प्रकृतिक आपदा को आज भी आसानी से महसूस किया जा सकता है...

लेकिन, 24-वर्षीय सॉफ्टवेयर इंजीनियर सौरभ मिश्रा की बेपनाह मुहब्बत और पक्के इरादे साफ दिखाई देते हैं... इस माहौल में भी वह लगभग हर जगह पोस्टर चिपकाता घूम रहा है, जिन पर ऋचा की तस्वीर, कुछ फोन नंबर और 10,000 रुपये के इनाम की घोषणा छपी हुई है... सौरभ का कहना है, "मुझे इस बात पर कतई यकीन नहीं कि उन्हें कुछ हो सकता है, क्योंकि मुझे लगातार महसूस हो रहा है कि वे बिल्कुल सुरक्षित हैं... यहां ऐसे बहुत-से गांव हैं, जहां संचार का कोई साधन नहीं है, सो, हो सकता है, वे कहीं फंसे हुए हों, हो सकता है, घायल हों, या हो सकता है, उन्हें किसी ने पनाह दे दी हो..."

इतने भयंकर विनाश को देखते हुए भी वह उम्मीद हारने के लिए इसलिए तैयार नहीं है, क्योंकि अब तो उसके और ऋचा के माता-पिता ने भी हार मान ली है, और सबके सामने उनकी शादी करवाने के लिए हां कर दी है...

उधर, मनीष अपने 54-वर्षीय पिता कौशल, जो त्रासदी के वक्त केदारनाथ में ही थे, की तलाश में हार मानने के लिए इसलिए तैयार नहीं है, क्योंकि उसके मुताबिक, "हमने 'दैनिक जागरण' में एक समाचार पढ़ा, जिसमें बताया गया था कि एक महिला को उसका लापता पति हादसे के 20 दिन बाद मिल गया... सो, हम भी इसी उम्मीद में गुप्तकाशी आए थे, जहां बताया गया कि वह (मेरे पिता) शर्तिया मारे गए होंगे... लेकिन हमने तय किया कि हम आगे जाएंगे, और खुद उन्हें तलाश करेंगे... मेरा दिल कहता है, मेरे पिता सुरक्षित हैं, सो, इसीलिए मैं आगे बढ़ता जा रहा हूं..."

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बचपन में सुनी हिम्मत न हारने की कहानियों को अपने जीवन में चरितार्थ करने वाले इन लड़कों ने उम्मीदों के सहारे आगे बढ़ने को नए अर्थ दे दिए हैं... मनीष कहता है, "मेरे पिता खे गए हैं... अब अगर मैं ही टूट गया, तो घर कौन देखेगा... मैंने उम्मीद नहीं हारी है, मैं ऊपर तक जाऊंगा, और तब तक खोजता रहूंगा, जब तक उम्मीद पूरी तरह न टूट जाए..." उधर, सौरभ ने चेहरे पर मुस्कान के साथ शायराना अंदाज़ में कहा, "उम्मीद पर दुनिया कायम है... हम तो उम्मीद लेकर चले आए हैं, अब क्या करें, खोजते रहेंगे..."