यह ख़बर 22 अप्रैल, 2012 को प्रकाशित हुई थी

पुस्तक विमोचन समारोह में बांटे आलू

खास बातें

  • क्या आपने किसी कार्यक्रम में मंचासीन अतिथियों को पुष्प गुच्छ के बजाय दो किलो आलू के पैकेट भेंट होने का नज़ारा देखा है?
नोएडा:

क्या आपने किसी कार्यक्रम में मंचासीन अतिथियों को पुष्प गुच्छ के बजाय दो किलो आलू के पैकेट भेंट होने का नज़ारा देखा है? बहुत संभव है कि ऐसा कभी न देखा हो लेकिन एशियन एकेडमी ऑफ आर्ट्स के तत्वावधान में यहां मारवाह स्टूडियो में पत्रकार पीयूष पांडे की व्यंग्य पुस्तक 'छिछोरेबाजी का रिजोल्यूशन' के दौरान यही अनूठा नज़ारा दिखा।

इस अवसर पर मौजूद अतिथियों एवं दर्शकों ने इस पल का भरपूर आनंद लिया। लेकिन, पुष्प गुच्छ के बजाय आलू भेंट परंपरा के आरंभ को तार्कित तरीके से स्पष्ट भी किया गया कि आलू राजनीतिक और पारिवारिक संदर्भ रखते हैं। महंगे होते आलू आम आदमी की जिंदगी को मुश्किल कर रहे हैं, इसलिए आलू चेतना जरुरी है।

मौका व्यंग्यकार और पत्रकार पीयूष पांडे की पुस्तक के विमोचन का था। जाने माने कवि-लेखक और व्यंग्यकार अशोक चक्रधर ने पुस्तक का विमोचन किया। इस अवसर पर पत्रकार पुण्य प्रसून बाजेपेयी, वरिष्ठ व्यंग्यकार आलोक पुराणिक और एएएफटी के प्रमुख संदीप मारवाह मंच पर मौजूद थे।

प्रो. अशोक चक्रधर ने इस अवसर पर कहा कि वक्त बदल रहा है और व्यंग्य के लिए नए विषय पैदा हो रहे हैं। व्यंग्य का फलक बहुत बड़ा है और उसके दायरे में छोटी से छोटी गतिविधि भी आ जा जाती है। उन्होंने कहा, पीयूष की पुस्तक के शीर्षक से उनके भीतर के साहस का पता चल जाता है, क्योंकि कुछ साल पहले तक इस तरह के शीर्षक रखने की बात सोचना भी मुश्किल था।

वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेयी ने कहा कि व्यंग्य की यह पुस्तक ख़बरों की दुनिया को पकड़ती है और कई घटनाओं का अलग आयाम पकड़ने की कोशिश करती है। उन्होंने कहा, यह सिर्फ हंसाने वाली पुस्तक नहीं है। व्यंग्यकार ने कई महत्वपूर्ण मसलों पर गंभीरता से कलम चलाई है और पीयूष पांडे ने पत्रकारिता के अपने अनुभवों को रचनात्मक तरीके से व्यंग्य में ढाला है।

संदीप मारवाह ने इस मौके पर पुस्तक के शीर्षक पर चुटकी लेते हुए कहा कि छिछोरेबाजी हमारे आसपास जमकर हो रही है। वे कॉलेज के संदर्भ में अपनी बात रख रहे थे। उन्होंने कहा, आज की भागती दौड़ती जिंदगी में व्यंग्य की इस तरह की पुस्तक ताजा हवा के झोंके के समान है।

वरिष्ठ पत्रकार राणा यशवंत ने कहा कि जीवन के हर पक्ष को व्यंग्य कवर करता है और यह इस पुस्तक में दिखायी देता है। पीयूष पांडे ने इस अवसर पर बताया कि मीडिया से जुड़े होने की वजह से कई व्यंग्य मीडिया पर केंद्रित हैं। उन्होंने कहा, पुस्तक का शीर्षक गुदगुदाता ज़रुर है, लेकिन पुस्तक के कई व्यंग्य पाठकों को हमारे आसपास घटने वाली छोटी छोटी गतिविधियों पर अलग कोण से सोचने के लिए मजबूर करेंगे।

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पुस्तक विमोचन के इस मौके पर व्यंग्य पाठ भी आयोजित हुआ। इस दौरान अविनाश वाचस्पति ने ‘चूहे’ को व्यंग्य का विषय बनाया तो राकेश कायस्थ ने ‘बॉस’ को। पीयूष पांडे ने राजनेताओं पर देश-विदेश में जूता फेंके जाने की ख़बर से प्रेरित अपना व्यंग्य ‘जूता’ का पाठ किया। व्यंग्यकार आलोक पुराणिक ने इस मौके पर ‘प्री पेड टॉयलेट की ओर’ से शीर्षक से अपना व्यंग्य सुनाया और लोगों को सोचने के लिए नए मुद्दे दिए।