यह ख़बर 09 फ़रवरी, 2011 को प्रकाशित हुई थी

रेप पीड़ित को मिली गर्भपात की अनुमति

खास बातें

  • एक दुर्लभ आदेश में गुजरात हाईकोर्ट ने बलात्कार की शिकार 18 वर्षीय एक दलित लड़की को गर्भपात कराने की इजाजत दे दी। आदेश सुनाते हुए जज ने कहा कि उन्होंने लड़की और उसके माता-पिता के सर्वश्रेष्ठ हितों को ध्यान में रखा।
अहमदाबाद:

एक दुर्लभ आदेश में गुजरात हाईकोर्ट ने बलात्कार की शिकार 18 वर्षीय एक दलित लड़की को गर्भपात कराने की इजाजत दे दी। अपना आदेश सुनाते हुए न्यायमूर्ति अनंत एस दवे ने कहा कि उन्होंने लड़की और उसके माता-पिता के सर्वश्रेष्ठ हितों को ध्यान में रखा। न्यायमूर्ति दवे ने अपने आदेश में कहा, लड़की और उसके माता-पिता के सर्वश्रेष्ठ हितों और संभावित परिणामों तथा गर्भ गिराने की इजाजत नहीं देने पर अगर बच्चे का जन्म होता है, तो भविष्य में पैदा होने वाली अनेक मानसिक, शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को ध्यान में रखते हुए अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंची है कि यह मामला मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) अधिनियम के दायरे में आता है। उन्होंने कहा, बलात्कार पीड़िता के मामले में गर्भ गिराने पर कोई रोक नहीं है। गुजरात के बनासकांठा में देवदार तालुका की रहने वाली पीड़ित ने पिछले महीने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था और गर्भ गिराने की इजाजत मांगी थी। उसके पेट में 16 सप्ताह का गर्भ है। पीड़ित के अनुसार उसका 28 सितंबर, 2010 को अमृतजी अगरजी ठाकुर ने उसके गांव से अपहरण कर लिया था। पुलिस में दर्ज कराई गई अपनी शिकायत में उसने कहा कि आरोपी ने उसे दो महीने से अधिक समय तक बंधक बनाकर रखा और दिसंबर, 2010 अपहर्ता के पास से छुड़ाए जाने से पहले उसके साथ बार-बार बलात्कार किया गया। आरोपी फरार है। दिसंबर में की गई चिकित्सकीय जांच में खुलासा हुआ कि वह गर्भवती है। अदालत ने अहमदाबाद के सरकारी अस्पताल के सिविल सर्जन को निर्देश दिया कि वह विशेषज्ञ चिकित्सकों की समिति की मदद से गर्भपात कराएं। अदालत ने यह भी कहा कि अगर समिति के चिकित्सकों की राय होगी कि गर्भ को गिराना पीड़ित की जान और सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है, तो वह अपने फैसले पर दोबारा विचार कर सकता है। एमटीपी अधिनियम के तहत अधिक माह के गर्भ को तब तक नहीं गिराया जा सकता है, जब तक कि चिकित्सकों को ऐसा न लगे कि महिला का शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य खतरे में है। बलात्कार से पैदा हुई गर्भावस्था इसका अपवाद है। हाईकोर्ट ने यह भी आदेश दिया कि गर्भावस्था के बाद भ्रूण को डीएनए परीक्षण के लिए सुरक्षित रखा जाए, क्योंकि बलात्कार मामले की जांच में यह उपयोगी साक्ष्य हो सकता है।


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