ये है सलमान की 'किक' का कमाल : लाखों की कमाई छोड़कर समाजसेवा में लग गया गुजरात का ये युवक

ये है सलमान की 'किक' का कमाल : लाखों की कमाई छोड़कर समाजसेवा में लग गया गुजरात का ये युवक

खास बातें

  • 48 साख रुपये की कमाई छोड़कर युवक बन गया समाजसेवी
  • अपनी और दोस्तों की पॉकेट मनी से निकालता है एनजीओ का खर्चा
  • गुजरात के अहमदाबाद की झुग्गियों में रहने वाले बच्चों को पढ़ा रहा एनजीओ
नई दिल्ली:

बॉलीवुड की फिल्म देखकर अपराध करने के बारे में अकसर बातें होती रहती हैं। लेकिन ऐसा कम ही होता है कि लोग समाजसेवा के लिए प्रेरित भी हों। गुजरात के अहमदाबाद में एक युवक ऐसा भी है जिस पर एक फिल्म ने ऐसा प्रभाव छोड़ा कि वह लाखों रुपये की कमाई का बिजनेस छोड़कर समाजसेवा करने में लग गया। इस युवक पर बॉलीवुड के दबंग सलमान खान की फिल्म 'किक' का काफी असर हुआ और इसने बच्चों की भलाई के लिए एक एनजीओ बना डाली है।

इस युवक का नाम रितेश शर्मा है। ये म्यूजिकल उपकरण का कारोबार करते थे। इस बिजनेस में सालाना 48 लाख रुपये की कमाई होती थी। यह काम सात लोग मिलकर करते थे। लेकिन  रितेश अपने शौक के लिए कुछ और काम भी करते थे जिनसे काफी अच्छी कमाई होती थे, लेकिन रितेश पर 'किक' का ऐसा असर पड़ा कि उन्होंने समाज सेवा का बीड़ा उठा लिया। उन्होंने इसके लिए एक एनजीओ बनाई जिसका नाम उन्होंने हे हाय (HEY HI) रखा। अंग्रेजी में Highly energised Youth helping Indians नाम है।
 


NDTV से फोन पर बात करते हुए रितेश ने कहा कि वह सलमान खान के बहुत बड़े फैन है,  लेकिन रील लाइफ के रीयल लाइफ के नहीं। रितेश कहते हैं किक का मैसेज था, बच्चों को मदद नहीं कर पाने से नींद उड़ जाती है। एक बच्चे की मदद कर दो काफी कुछ हो जाएगा। मेरे जीवन में भी कुछ ऐसा ही हुआ।

रितेश शर्मा का सपना सेना में अधिकारी बनकर देश सेवा करना था। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। कॉलेज की पढ़ाई के बाद उन्होंने यूपीएससी की सीडीएस परीक्षा पास की। लेकिन, एसएसबी पास करने के बाद मेडिकल में घुटनों के कारण उनका यह सपना पूरा नहीं हो पाया। वे डिप्रेशन में चले गए।

बावजूद इसके उनके जीवन में उनके गिटार बजाने के शौक ने एक रास्ता दिखाया। उन्होंने एक म्युजिकल ग्रुप बनाया और परफॉर्म करने लगे। यहीं से रितेश को इससे जुड़े कारोबार करने की प्रेरणा मिली। उन्होंने अपने दोस्तों के साथ मिलकर म्युजिकल इंस्ट्रूमेंट्स सेलिंग का बिजनेस शुरू किया, जो लगातार 10 वर्ष तक चलता रहा। इससे वे एक साल में करीब 48 लाख रुपये कमाने लग गए थे।
 

फिर एक दिन उन्होंने सलमान खान स्टारर फिल्म ‘किक’ देखी, बस तभी से उनकी सोच बदल गई। कुछ नया करने की चाहत यहीं से पैदा हुई। समाज का कर्ज उतारने की चाह जागी। काफी सोच विचार करने के बाद उन्होंने अपनी एनजीओ बनाई। अब वे सोशल एक्टीविस्ट बनकर समाज सेवा कर रहे हैं। उनका मानना है कि उन्होंने अपने जीवन की जरूरत के लिए लायक धन कमा लिया। इसलिए बाकी समय देश की सेवा और समाज सुधार को देना चाहते हैं।

अब वे अपनी कमाई से खरीदी एसयूवी कार और तीन बाइक को घर पर छोड़कर साइकिल से लोगों में जागरूकता लाने का काम कर रहे हैं। डेढ़ साल हो गए, उन्होंने अपने म्युजिकल इंस्ट्रुमेंट की सप्लाई का काम बंद कर दिया है।


जहां समाज में यह धारणा प्रबल है कि एनजीओ के लिए फंड का जुगाड़ करना पड़ता है। जिनके विदेश में दोस्त यार हैं वे वहां चंदे की व्यवस्था कर देते हैं। सरकार से लेकर निजी कंपनियों के दफ्तर में फंड के लिए चक्कर लगाना पड़ता है। ऐसे में रितेश ने इन सभी बातों को नकारते हुए अपनी और अपने साथियों के पॉकेट मनी से इस एनजीओ का खर्चा निकाला है।

रितेश ने एनडीटीवी से कहा, देश हमारा है, मुद्दे हमारे हैं, तो इसका हल भी हमें ही खोजना होगा। उन्होंने कहा कि युवाओं के पास जाते हैं और उनसे समाज को बेहतर बनाने के लिए सहयोग देने की बात कहते हैं। कई बार दिक्कत होती है लेकिन कुछ युवा हमेशा साथ देने के लिए तैयार हो जाते हैं। कॉलेजों में युवा अपने बर्गर, कोल्ड ड्रिंक्स आदि का पैसा डोनेट कर देते हैं। रितेश का कहना है कि अगर सड़क पर गड्ढा है तो इसके लिए हम सरकार से शिकायत क्यों करें? क्यों न उस काम को हम ही कर दें। इस तरह के विचारों के साथ रितेश आगे बढ़ रहे हैं।

रितेश मानते हैं कि शहर की तमाम समस्याओं के हल के लिए हम कब सरकार की ओर मुंह किए रहेंगे। देश की आबादी का केवल 4 प्रतिशत आदमी सरकारी सेवा है। सरकार के पास मैन पावर की कमी है। तो हम युवाओं से इसके लिए आगे आने को कहते हैं। हम अकसर कॉलेजों में जाकर युवाओं से अपने टैलेंट को समाज सेवा में लगाने को कहते हैं। अमूमन हर युवा कालेज में 3-4 घंटे खराब कर देता है और हम उनसे यह समय समाज को देने को कहते हैं। इससे हमें काफी बड़ी मैनपावर मिल जाती है।
 

रितेश कहते हैं, ऐसा नहीं है कि हम हमेशा लोगों से चंदे की मांंग करते हैं। हमे यदि शहर की दीवार को साफ करना है तो इसके लिए हम पेंट की दुकान वालों से, कंपनी वालों से पेंट देने को कहते हैं और फिर तमाम युवाओं के सहारे दीवार को साफ कर शानदार पेंटिंग बना देते हैं। ऐसे में अगली बार दीवार गंदी करने की बजाय लोग सफाई पसंद करते हैं।

चार शहरों में झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले 42 बच्चों को इनकी एनजीओ ने गोद लिया है। इनकी पढ़ाई का जिम्मा रितेश एवं उनके साथियों ने उठाया है। रितेश बताते हैं कि इस समय उनकी संस्था में 23 एक्टिव सदस्य हैं और करीब 700 वॉलनटीयर्स हैं। लोग उनकी बातों से कितना प्रभावित हैं आप इस बात का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि यह सब केवल छह महीने में हुआ है।

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