यह ख़बर 08 मार्च, 2011 को प्रकाशित हुई थी

'सोशल मीडिया देता है लोगों को असली आजादी'

खास बातें

  • राजनीति विज्ञानियों का कहना है कि मोबाइल फोन दमनकारी सरकारों के शासन के दौरान लोकतंत्र को जीवित रखने का बेहतरीन जरिया है।
लंदन:

राजनीति विज्ञानियों का कहना है कि मोबाइल फोन दमनकारी सरकारों के शासन के दौरान लोकतंत्र को जीवित रखने का बेहतरीन जरिया है। साथ ही सोशल मीडिया को वास्तविक स्वतंत्रता प्रदान करता है क्योंकि यह संचार के माध्यम पर लोगों की पहुंच उपलब्ध कराता है। नार्वे की विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के राजनीतिक विज्ञानी इंद्रा डि सोयसा ने कहा, "गूगल के विपणन प्रबंधक सोशल मीडिया के बिना प्रदर्शनकारियों को नहीं जुटा पाते।" दिसम्बर 2010 में ट्यूनीशिया में हुए आंदोलन के बाद बाकी अरब देशों में आंदोलन की लहर फैल गई। ट्यूनीशिया के आंदोलन के बाद जनवरी 2011 में यहां के राष्ट्रपति जिने अल अबीदीन बेन अली को पद छोड़ना पड़ा। इसके बाद यमन, लीबिया और मिस्र में विरोध प्रदर्शन हुए और मिस्र के राष्ट्रपति होस्नी मुबारक को सत्ता त्यागनी पड़ी। डि सोयसा ने कहा कि अरब देशों और उत्तरी अफ्रीका में चल रही इस क्रांति के बीज इराक में सद्दाम हुसैन की सत्ता समाप्त होने के बाद ही पड़ गए थे। डि सोयसा ने कहा, "टेलीविजन मानवाधिकारों के लिए बुरा है क्योंकि सरकारें इसके जरिए प्रोपेगंडा फैलाती हैं जबकि इंटरनेट और मोबाइल फोन का इससे विपरीत असर है। सोशल मीडिया इन सबसे अलग है क्योंकि यह लोगों को संचार के माध्यम पर पहुंच की स्वतंत्रता प्रदान करता है।" इंटरनेशनल जर्नल ऑफ ह्यूमन राइट्स में लिखे एक लेख 'द ब्लॉग वर्सेज बिग ब्रदर' में सोयसा ने कहा, "प्रशासन इस बात की निगरानी नहीं कर सकता कि लोग इंटरनेट पर क्या पढ़ या देख रहे हैं और इससे समाज पारदर्शी बनता है।" डि सोयसा ने रेखांकित किया कि बीबीसी और सीएनएन जैसे संगठनों को प्रत्यक्षदर्शियों ने अपने मोबाइल फोन से खींचे गए चित्र भेजे।


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