Blogs | सुधीर जैन |सोमवार जनवरी 14, 2019 03:13 PM IST मसला यह था कि क्या किसी ऐतिहासिक चरित्र को नई कथा में ढाला जा सकता है. खैर, जिन्होंने विवाद खड़ा किया, उन्हें क्या और कितना हासिल हुआ, इसका पता नहीं चला. आखिर मामला सुलटा लिया गया. फिल्म रिलीज़ हुई. लेकिन साहित्य जगत में एक सवाल ज़रूर उठा और उठा ही रह गया कि क्या ऐतिहासिक चरित्रों के साथ उपन्यासबाजी या कहानीबाजी की जा सकती है, या की जानी चाहिए, या नहीं की जानी चाहिए...? कला या अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर क्या किसी ऐतिहासिक चरित्र को वैसा चित्रित किया जा सकता है, जैसा वह न रहा हो...? यह सवाल भी कि क्या कोई कलाकार किसी का चरित्र चित्रण ग्राहक की मांग के आधार पर कर सकता है...?