Blogs | रवीश कुमार |मंगलवार मार्च 12, 2019 09:57 PM IST जब भी चुनाव आता है डॉ प्रणॉय रॉय चुनाव पढ़ने निकल जाते हैं. वे चुनाव कवर करने नहीं जाते हैं. चुनाव पढ़ने जाते हैं.कई साल से उन्हें चुनावों के वक्त दिल्ली से जाते और जगह-जगह से घूम कर लौटते देखता रहा हूं. अक्सर सोचता हूं कि उनके भीतर कितने चुनाव होंगे. वो चुनावों पर कब किताब लिखेंगे. वे अपने भीतर इतने चुनावों को कैसे रख पाते होंगे. हम लोग कहीं घूम कर आते हैं तो चौराहे पर भी जो मिलता है, उसे बताने लगते हैं. मगर डॉ रॉय उस छात्र की तरह चुप रह जाते हैं जो घंटों पढ़ने के बाद लाइब्रेरी से सर झुकाए घर की तरफ चला जा रहा हो.