क्या जिस तादाद में सांप्रदायिक तनाव की संख्या बढ़ रही है, नौकरियां भी बढ़ रही हैं. क्या नौकरी का सवाल बिल्कुल ज़रूरी नहीं है. दिल्ली स्थित एक संस्था है प्रहार जिसकी अध्ययन की रिपोर्ट समाचार एजेंसी पीटीआई के हवाले से तमाम अख़बारों में प्रकाशित हुई, इसके मुताबिक पिछले चार साल से हर दिन 550 नौकरियां गायब होती चली जा रही हैं.