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प्रियदर्शन

एनडीटीवी इंडिया में 15 वर्षों से कार्यरत. उपन्यास 'ज़िंदगी लाइव', कहानी संग्रह 'बारिश, धुआं और दोस्त' और 'उसके हिस्से का जादू', कविता संग्रह 'नष्ट कुछ भी नहीं होता' सहित नौ किताबें प्रकाशित. कविता संग्रह मराठी में और उपन्यास अंग्रेज़ी में अनूदित. सलमान रुश्दी और अरुंधती रॉय की कृतियों सहित सात किताबों का अनुवाद और तीन किताबों का संपादन. विविध राजनैतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक विषयों पर तीन दशक से नियमित विविधतापूर्ण लेखन और हिंदी की सभी महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन.

  • आतंकवाद ख़तरनाक है, लेकिन राज्य का आतंक उससे ज़्यादा ख़तरनाक है, क्योंकि इसका सीधा असर नागरिकों के जीने की स्वतंत्रता पर पड़ता है. सरकार जब तय कर लेती है कि वह किसी समूह या समुदाय को निशाना बनाएगी, जब वह कानूनी तौर-तरीक़ों की परवाह नहीं करती तो दरअसल वह सबसे पहले देश के साथ अन्याय कर रही होती है, अपने नागरिकों पर अत्याचार कर रही होती है.
  • रणवीर सिंह की तस्वीरों पर कई एतराज़ हैं। यह कहा गया कि वे तस्वीरें अश्लील हैं। यह भी कहा गया कि उनसे महिलाओं की भावनाओं को ठेस पहुंचती है।
  • स्त्री की गरिमा कोई ऐसी चीज़ नहीं है कि वह एक शब्द से घायल हो जाए। स्त्री का सम्मान एक बड़ी चीज़ है जो आपके पूरे व्यवहार से आता है। उसे आप अपने राजनीतिक आक्रमण की रणनीति के तौर पर इस्तेमाल करते हैं तो दरअसल उसकी गरिमा कम करते हैं। 
  • कई लोग मानते हैं कि भूपेंद्र दरअसल ग़ज़लों के लिए बने हैं. बाद के वर्षों में उनकी गैरफिल्मी ग़ज़लें ये बताती भी रहीं. यह सच है कि इस मामले में उन्हें मेहदी हसन, गुलाम अली या जगजीत सिंह जैसी शोहरत नहीं मिली, लेकिन उनका अपना एक मुक़ाम रहा.
  • कई लोग मानते हैं कि भूपेंद्र दरअसल ग़ज़लों के लिए बने हैं. बाद के वर्षों में उनकी गैरफिल्मी ग़ज़लें ये बताती भी रहीं. यह सच है कि इस मामले में उन्हें मेहदी हसन, गुलाम अली या जगजीत सिंह जैसी शोहरत नहीं मिली, लेकिन उनका अपना एक मुक़ाम रहा.
  • जिस दौर में बीस करोड़ घरों में तिरंगा फहराने की बात हो रही है, उस दौर में इस देश के चरित्र को जैसे बदला जा रहा है. पहले लोग चोरी-छुपे यह कहते थे कि यह देश सिर्फ़ हिंदुओं का है, अब खुल कर यह बात कही जा रही है और इस बहुसंख्यकवादी उभार को सत्ता प्रतिष्ठान का परोक्ष समर्थन और सहयोग हासिल है.
  • आस्था और अनास्था के सदियों से चले आ रहे द्वंद्व के बीच सभ्यता, संस्कृति और साहित्य का असली मक़सद इंसान और इंसानियत की तलाश रहा है. इस तलाश में आस्था की छेनी से ईश्वर बार-बार गढ़े और तोड़े गए हैं, धर्म बार-बार परिभाषित और पुनर्परिभाषित किए गए हैं और बार-बार यह प्रमाणित हुआ है कि अंततः यह संवेदना और विवेक है जिसके साझे से मनुष्यता का रसायन बनता है.
  • पहली बात तो यह कि सेना में भर्ती की एक योजना का नाम 'अग्निपथ' क्यों? इसे सैन्यपथ, सुरक्षा पथ, वीरपथ, साहसपथ जैसे कई नाम दिए जा सकते थे. संभव है योजनाकारों को लगा होगा कि 'अग्निपथ' एक आकर्षक नाम है जिसकी बदौलत युवाओं को सेना की ओर आकृष्ट किया जा सकता है.
  • ऐसा लग रहा है कि सांप्रदायिकता की आंधी में जैसे सब कुछ उड गया है. इस देश में घरों और दिलों के भीतर इतने सूराख हैं कि हम सब कुछ तोड़ने पर तुले हैं. जिस टूट पर हमें दुखी होना चाहिए, उस पर ताली बजा रहे हैं.
  • जिस नुपुर शर्मा को बीजेपी अब 'फ्रिंज एलीमेंट' बता रही है, वह अरसे तक राष्ट्रीय टीवी चैनलों पर बीजेपी का पक्ष रखती रही. खुद को दुनिया का सबसे बड़ा दल बताने वाली बीजेपी ने ऐसे फ्रिंज एलीमेंट को अपना राष्ट्रीय प्रवक्ता क्यों बना रखा था? क्या इसलिए नहीं कि बीते कुछ वर्षों में संघ परिवार और बीजेपी ने जो उन्माद पैदा किया है, उसकी कोख से ही ऐसी राष्ट्रीय भावना और राष्ट्रीय प्रवक्ता निकलती है?
  • कौन हैं ये गरीब और कहां से इनकी साइकिलें सरकार के पास बिक्री के लिए जमा होती गईं? इस सवाल का जवाब दिल दुखाता है. ये वे लोग हैं जो दो साल पहले अपने प्रधानमंत्री द्वारा आधी रात को अचानक घोषित लॉकडाउन की चपेट में आ गए.
  • आप सरकार का विरोध करें तब भी वामपंथी हैं, पेट्रोल-डीज़ल के बढ़ते दाम का सवाल उठाएं, तब भी वामपंथी हैं, सांप्रदायिकता की निंदा करें तब भी वामपंथी हैं, मानवाधिकार का सवाल उठाएं, तब भी वामपंथी हैं, हिंसा का विरोध करें तब भी वामपंथी हैं और नक्सलियों के नाम पर गांववालों के उत्पीड़न के ख़िलाफ़ बोलें, तब तो पक्के वामपंथी हैं. यहां तक कि बुकर सम्मान प्राप्त लेखिका के समर्थन में लिखना भी वामपंथ है, एक प्रगतिशील लेखिका को बुकर दिया जाना भी वामपंथ की निशानी है और अमेरिका में बंदूक संस्कृति की निंदा करना भी वामपंथ ही है.
  • शक्ति को हास्यास्पद बनाना ज़रूरी होता है. सत्ता और शक्ति की क्रूरता के ख़िलाफ़ जब बहुत सारी कार्रवाइयां विफल हो जाती हैं तो शायद हंसी उसका एक जवाब बनती है.
  • वे कौन लोग हैं जो ज्ञानवापी से लेकर क़ुतुब मीनार के परिसर तक में पूजा करने की इच्छा के मारे हुए हैं? जिन्हें अचानक 800 साल पुरानी इमारतें पुकार रही हैं कि आओ और अपने ईश्वर को यहां खोजो.  
  • दिलचस्प ये है कि बीजेपी सिर्फ़ सड़कों के नाम बदलने की मांग नहीं कर रही, उसकी वैचारिकी से जुड़े संगठन पूरी की पूरी विरासत हड़पने की कोशिश में हैं. ताजमहल से लेकर कुतुब मीनार तक को वे हिंदू राजाओं की देन साबित करना चाहते हैं.
  • न अतिक्रमण इस देश में नई चीज़ है और न अतिक्रमण हटाने पर होने वाली कार्रवाइयां. नई बात यह है कि पहले अतिक्रमण हटाने वाले अभियानों की मार सिर्फ़ गरीब झेलते थे, अब पहली बार बाक़ायदा एक समुदाय को इसके लिए चिह्नित किया गया. यह हिंदूवादी विकास की राजनीति का पहला चरण है.
  • आज की दुनिया में भारत को भी लगातार एक तंगदिल समाज में बदला जा रहा है. इस समाज में अपने-पराये का भेद बहुत पुराना था, लेकिन अब तो उसे चरम घृणा की हदों तक ले जाया जा रहा है.
  • लेकिन हिंदी से भारतीय भाषाओं के इस शत्रु-भाव की वजह क्या है? यह बहुत जानी-पहचानी बात है कि जब इस देश में त्रिभाषा फॉर्मूला लागू हुआ तो उसके पीछे यह मंशा थी कि लोग हिंदी और अंग्रेज़ी के अलावा एक भारतीय भाषा भी सीख लें.इससे वह सांस्कृतिक पुल बनता जो हिंदी को मराठी-पंजाबी, तेलुगू-तमिल, कन्नड़ या बांग्ला के लिए इतना अपरिचित न रहने देता.ले
  • गीतांजलि श्री के उपन्यास 'रेत समाधि' का अंग्रेज़ी अनुवाद Tomb of Sand बुकर लांग लिस्ट के लिए चुनी गई 13 कृतियों में शामिल है. अचानक बहुत सारे लोग पूछने लगे कि यह गीतांजलि श्री कौन हैं? बेशक, इस सवाल में भी हिन्दी समाज और साहित्य दोनों की एक विडंबना झांकती है. दोनों को एक-दूसरे के जितने करीब होना चाहिए, उतने वे नहीं हैं.
  • कभी महंगाई पर इस देश में सरकारें बदली हैं. बीजेपी को याद होगा, 1998 में दिल्ली में मदनलाल खुराना की सरकार को प्याज के बढ़े दाम की क़ीमत चुकानी पड़ी थी. कभी वनस्पति घी और कभी चीनी के महंगे होने को लेकर राजनीतिक नारे बनते थे. लेकिन शायद अब एक 'न्यू नॉर्मल' हम सबकी प्रतिक्रियाएं तय कर रहा है. इस न्यू नॉर्मल में अब सौ रुपये तक पेट्रोल नहीं खलता.
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