देखते ही देखते हर आपदा अवसर में बदल गई. हर गाली आभूषण की तरह गले में लपेट ली गई. हर चुनौती पर सफलतापूर्वक अप्रासंगिकता की वरक़ चढ़ा दी गई. हर बड़ी समस्या का निवारण एक और बड़ी समस्या बता कर कुछ और प्रस्तुत कर देना हो गया.
रोज़ कितनी मेहनत से एडिटरान स्तर गिरा रहे हैं. किसके लिए...? ताकि वेबसाइट चल सके, ताकि बेरोज़गार बैठा युवा TV पर 'सीधे' और 'कड़े' सवाल होते देखे. ताकि हर बेख़बर JCB ड्राइवर और पोस्टमैन से वे तीखे सवाल पूछे जाएं, जो जनता सुनना चाहती है.
शाहीन बाग़ का महज़ नाम ले लेने से लगभग युद्ध छिड़ उठता है. प्रशासन की आंखों की किरकिरी बनी हुई हैं शाहीन बाग़ में धरने पर बैठी महिलाएं. और अब शाहीन बाग़ महज़ एक जगह का नाम नहीं रह गया, शाहीन बाग नागरिकता कानून के विरोध का एक प्रतीक बन चुका है. ऐसे ही आंदोलन अब देश भर के कई शहरों में शुरू हो गए हैं. यह किसी भी सरकार को तनाव में लाने के लिए काफी है. और इसको लेकर मोदी सरकार का नाखुश होना लाज़मी है.