भाषा से प्यार करना और उसका सम्मान करना विरासत में मिला, और छोटी उम्र से ही अपनी सुनाने, और लिखने का चस्का पत्रकार बना गया. ढाई दशक से अधिक की पत्रकारिता में मीडियम बदलते रहे, लेकिन भाषा से लगाव खत्म नहीं हुआ, जो आज की पीढ़ी, विशेषकर ऑनलाइन मीडियम में दुर्लभ है. मानता हूं कि आनंदित और आंदोलित होने की सूरत में सबसे अच्छा लिखा जा सकता है, सो, कम लिखता हूं. वैसे, विशेषज्ञ किसी भी विषय का नहीं हूं, लेकिन पढ़ने के शौक की बदौलत किसी भी विषय पर कतई कोरा भी नहीं हूं.
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