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हिंदुस्तान की सियासत में जब गांधी परिवार का नाम आता है तो कई राजनीतिक तस्वीरें सामने आ जाती हैं. गांधी परिवार का संबंध शुरुआत से ही कांग्रेस से रहा है लेकिन एक गांधी हमेशा बीजेपी के ही रहे हैं. इनका नाम वरुण गांधी है जो पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी और बहू मेनका गांधी के बेटे हैं. वरुण ने 2019 के लोकसभा चुनावों में यूपी के पीलीभीत से मजबूत दावेदारी पेश की है. वरुण अपने बयानों और मीठी भाषा के लिए जाने जाते हैं. वरुण में अपने पिता संजय गांधी की तरह आक्रामक तेवर भी हैं और मां मेनका गांधी की तरह धैर्य भी है. वरुण और राहुल गांधी चचेरे भाई हैं लेकिन दोनों की विचारधारा और भाषा शैली में गहरा अंतर है. जहां राहुल गांधी कांग्रेस की विचारधारा को आगे बढ़ा रहे हैं, वहीं वरुण सधे हुए कदमों से हिंदुत्व की विचारधारा पर चलते हैं. वरुण को लिखना और पढ़ना बहुत पसंद है इसलिए वह चर्चा में कम रहते हैं और गंभीरता के साथ अध्ययन करते हैं. उनकी सधी हुई भाषा राजनीति में उन्हें अलग पहचान दिलाती है क्योंकि वह सीनियर नेताओं पर सीधे तौर पर कटाक्ष करने से बचते हैं.

कैसे शुरू हुआ वरुण का सियासी सफर
वरुण गांधी का जन्म 13 मार्च 1980 को नई दिल्ली में हुआ. जब वह 3 महीने के थे तभी उनके पिता संजय गांधी का विमान हादसे में निधन हो गया था. वरुण जब 4 साल के हुए तो उनकी दादी इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई. छोटी सी उम्र में अपने पिता और दादी को खो देना वरुण की जिंदगी का सबसे बुरा दौर था.

वरुण ने दिल्ली के ऋषि वैली स्कूल, मॉडर्न स्कूल सीपी और द ब्रिटिश स्कूल से शुरुआती पढ़ाई की. उन्होंने लंदन यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में डिग्री ली. लंदन से पढ़ाई के बाद वरुण ने राजनीति में आने का फैसला किया. 1999 में उन्होंने अपनी मां मेनका गांधी के लिए चुनाव प्रचार किया. बाद में उन्होंने 2004 में बीजेपी की सदस्यता ली. 

2004 के चुनावों में उन्होंने बीजेपी के लिए खूब प्रचार किया. 2009 के आम चुनावों में वरुण ने पहली बार पीलीभीत से चुनाव लड़ा और सांसद बने. 2013 में उन्हें बीजेपी का राष्ट्रीय महासचिव चुना गया. 2013 में वरुण को पश्चिम बंगाल बीजेपी का प्रभारी बनाया गया. 2014 के लोकसभा चुनावों में वरुण ने सुल्तानपुर से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की. 2019 के चुनावों में उन्होंने एक बार फिर पीलीभीत से दावेदारी पेश की है.

सीनियर बीजेपी नेता प्रमोद महाजन अपने भाषणों में अक्सर वरुण गांधी की तारीफ किया करते थे और राहुल गांधी से बेहतर नेता बताते थे. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक प्रमोद ने ही वरुण की सियासी एंट्री करवाई थी, उन्होंने इसके लिए अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी को मनाया था. हालांकि उस वक्त वरुण की उम्र कम थी इसलिए उन्होंने पहला चुनाव 2009 में लड़ा.

पीलीभीत से महागठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर हेमराज वर्मा ताल ठोंक रहे हैं. अखिलेश सरकार में मंत्री रह चुके हेमराज वर्मा एनडीटीवी से बातचीत में कहते हैं कि वरूण और मेनका वोट लेकर पीलीभीत छोड़ देते हैं. वह मानते हैं उन्हें स्थानीय होने का लाभ मिलेगा. दूसरी तरफ, काग्रेस ने यहां कृष्णा पटेल के अपना दल के साथ गठबंधन किया है जिनके उम्मीदवार सुरेंद्र गुप्ता कहीं रेस में भी नहीं दिखते. बहरहाल, पीलीभीत में इस बार वरूण गांधी के सामने चुनौती अपने तीस साल पुराने किले को बचाने की होगी, क्योंकि इस बार सपा बसपा मिलकर उनके किले में सेंध लगाने के प्रयास में है.

*Data source: ADR
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