कुछ ऐसे भुला दिए गए शब्द जिन्होंने 2015 में 'कमबैक' किया

कुछ ऐसे भुला दिए गए शब्द जिन्होंने 2015 में 'कमबैक' किया

2015 के पास बस अपने हिस्से के कुछ आखिरी दिन बचे हैं। बाकी सालों की तरह यह साल भी राजनीतिक पार्टियों की उठापटक से लेकर क्या खाएं और क्या देखें के सवाल में उलझा रहा। लेकिन 2015 में एक और बात थी जो उसे बाकियों से थोड़ी अलग बनाती है, इस साल कुछ ऐसे शब्दों ने 'कमबैक' किया जो शायद कहीं किसी कोने में दबे छुपे बैठे थे, जो सोचते होंगे कि जब उनका इस्तेमाल ही नहीं होना था तो आखिर उन्हें अक्षरों की दुनिया में लाया ही क्यों गया।

ऐसे शब्द जिन्हें उम्मीद ही नहीं रही होगी कि किसी दिन उनका भी नंबर आएगा। सिर्फ यही नहीं ऐसे भी कई शब्द थे जो अंग्रेज़ी वार्तालाप से निकलकर हिंदी भाषी लोगों के खाने की टेबल पर होने वाली बातचीत तक पहुंच पाए। एक नज़र ऐसे ही कुछ शब्दों पर जिन्होंने आम आदमी की डिक्शनरी में जगह बनाई, इनमें से कुछ ने तो खबरों के रास्ते अपनी जगह बनाई और कुछ बस आ गए, कैसे आए यह मत पूछिए -
 
असहिष्णुता - अंग्रेज़ी में इसका अनुवाद है intolerant,हिंदी का यह शब्द अक्सर इतिहास और नागिरक शास्त्र की किताबों में ही सुनने को मिला था लेकिन इस साल असहिष्णुता सबके ज़ुबान पर ऐसे चढ़ा कि गंभीर बातों से लेकर व्हाट्सएप पर शेयर किए जाने वाले चुटकुलों में भी इसने अपनी जगह बना ली। हां इसके उच्चारण को लेकर अभी भी कईयों को मशक्कत करनी पड़ती है लेकिन कोई बात नहीं।  जिस तरह हिंदी के जानकार अपनी भाषा के पतन को लेकर चिंतित रहते हैं, ऐसे में इस शब्द के पुनरुत्थान से उन्हें जरूर कुछ राहत मिली होगी। कह सकते हैं कि हिंदी के प्रति लोगों की 'असहिष्णुता' इस शब्द के बहाने थोड़ी कम हुई है।
 


सम-विषम - अंग्रेज़ी में odd-even कहे जाने वाले इस शब्द को समझने के लिए अचानक दिल्ली वालों का डिक्शनरी पर हाथ जाने लगा। ज़रूरी भी था क्योंकि सीएम अरविंद केजरीवाल ने सड़कों पर सम-विषम के हिसाब से गाड़ी चलाने का नियम बना दिया। जब पहली बार खबरों के जरिए लोगों ने 'सम-विषम' सुना तो कईयों की भौंहे तन गई कि यह क्या है? वैसे यहां बात सिर्फ हिंदी की नहीं है, गणित को बहुत पहले अलविदा कह चुके लोगों को भी नहीं पता था कि किसी दिन उन्हें फिर से इस हिसाब किताब में पड़ जाना होगा कि कौन सा नंबर odd होता है और कौन सा even, ज़ीरो को लेकर तो अभी भी कई लोग भ्रमित हैं कि वह सम है या विषम।  वैसे ज़ीरो पूरी तरह even यानि सम है।
 
जुवेनाइल - दिसंबर 2012 में हुए निर्भया कांड के नाबालिग अपराधी ने अपनी तीन साल की सज़ा पूरी कर ली। इस नाबालिग की रिहाई से एक बार फिर देश में जुवेनाइल अपराधी की उम्र को लेकर बहस तेज़ हो गई। इस पूरी वारदात ने भारत में जन सामान्य के अंदर काफी गुस्सा भर दिया था और यही वजह रही कि इस बहस के ज़रिए जुवेनाइल शब्द भी लोगों की ज़बान पर चढ़ गया है। देश में नाबालिग अपराधी पर कार्यवाही करने के लिए उम्र कितनी होनी चाहिए इस पर अपनी राय रखते हुए लोगों ने ज्यादातर कोर्ट-कचहरी में इस्तेमाल किए जाने वाले 'जुवेनाइल' शब्द का इस्तेमाल आपसी बहस में भी किया।
 

सेल्फी - यूं तो 2013 में ऑक्सफॉर्ड ने इसे 'word of the year' से नवाज़ा था लेकिन हर साल इसका इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है। दिलचस्प बात यह है कि पहले भी लोग सेल्फी खींचा करते थे लेकिन 'वर्ड ऑफ द ईयर' बनने के बाद बातचीत में भी इसका उपयोग काफी बढ़ गया है। घर के सबसे छोटे सदस्य से लेकर परिवार की दादी-नानी भी 'चल-बेटा-सेल्फी-ले-ले-रे' बोलने से खुद को रोक नहीं पाती।
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जुमला - राजनीति में पक्ष-विपक्ष की नोक झोंक के बीच 'जुमला' शब्द ने भी दोस्तों और ऑफिस की मीटिंग में अपनी जगह बनाई। बिहार चुनाव हो या संसद की कार्यवाही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'अच्छे दिन' के नारे को विपक्ष ने अलग अलग मौकों पर जुमला करार दिया और उसके बाद हुआ यह कि हर टूटे वादे को 'जुमला' टैग से नवाज़ा जाने लगा, फिर वो दफ्तर में प्रमोशन दिए जाने का वादा हो या फिर दोस्त की पार्टी देने की कसम जो कभी नहीं दी गई।
 
भक्त - हर बात की तरह इस मामले में भी सोशल मीडिया ने अपने हिस्से का योगदान दिया। वैसे तो 'भक्त' शब्द का चलन 2014 से ही चल पड़ा था लेकिन इस साल तो इसका जमकर इस्तेमाल हुआ। हर वह बहस जिसमें पीएम मोदी और उनकी सरकार हिस्सा रही, उनका समर्थन करने वालों को सोशल मीडिया पर 'भक्त' नाम से नवाज़ा गया। मोदी समर्थकों को अपने पसंदीदा नेता के बारे में कुछ भी लिखने से पहले 'भक्त' टैग के लिए खुद को तैयार करना पड़ा क्योंकि इस विचारधारा से विपरीत में बोलने वाली आवाज़ों ने कभी मज़ाक में तो कभी तंज कसते हुए इस शब्द का दिल खोलकर उपयोग किया। 'भक्तों' ने भी कभी हंसकर तो कभी तिलमिलाकर इसका जवाब दिया।
 


व्हाट्सएप - अंग्रेज़ी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में व्हाट्सएप सबसे लोकप्रिय इंसटैंट मैसेंजर सर्विस है और 56 प्रतिशत यूज़र इसका इस्तेमाल करते हैं। यही वजह है कि आम बोलचाल में भी इस ब्रैंड ने अपनी जगह बना ली है। घर से मीलों दूर बैठे बच्चे अगर एक दिन भी अपनी मां का हालचाल न पूछें तो फट से मैसेज आ जाता है - बेटा कम से कम व्हाट्सएप तो कर सकते हो।
 
यह लिस्ट संपूर्ण नहीं है और हमें यकीन है कि ऐसे कई और शब्द होंगे जो हमसे छूट गए लेकिन आपके ज़हन में होंगे। तो फिर इस लिस्ट को बढ़ाने में हमारी मदद कीजिए और हमें बताइए इस साल कौन सा शब्द है जो आपके कानों में सबसे ज्यादा पड़ा है।