यह ख़बर 09 दिसंबर, 2013 को प्रकाशित हुई थी

दिल्ली में नई सरकार के गठन पर संशय बरकरार

नई दिल्ली:

दिल्ली में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बनने के बाद नई सरकार के गठन पर सोमवार को संशय बरकरार रहा। आम आदमी पार्टी (आप) ने जहां विपक्ष में बैठने की बात कही है, वहीं सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार बनाने के लिए बहुमत जुटाने को लेकर अब भी अनिर्णय की स्थिति में है।

इसके साथ ही त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति उत्पन्न होने के बाद उपराज्यपाल नजीब जंग की भूमिका महत्वपूर्ण हो गई है। ऐसे में सबकी निगाहें उपराज्यपाल पर जा टिकी है।

भाजपा के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हर्षवर्धन ने कहा कि पार्टी को सरकार बनाने के लिए पर्याप्त बहुमत नहीं है। बहुमत के लिए चार विधायक कम पड़ रहे हैं और वह बहुमत के लिए किसी भी दल से बातचीत के लिए इच्छुक भी नहीं हैं।   

इस बीच केंद्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि राज्यपाल नजीब जंग नई सरकार के गठन के लिए सभी संभावनाओं पर विचार करेंगे। इस समय इस मामले में गृह मंत्रालय की कोई भूमिका नहीं है।
 
भाजपा 31 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है और उसके बाद 28 सीटें जीतकर आम आदमी पार्टी (आप) दूसरे स्थान पर है। भाजपा की सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने एक सीट जीती है।

कांग्रेस ने आठ सीटों पर जीत दर्ज कराई है और जनता दल (युनाइटेड) ने एक सीट जीती है और एक निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज कराई है। किसी पार्टी को सरकार बनाने के लिए साधारण बहुमत के लिए 70 सदस्यीय विधानसभा में 36 सीटों की जरूरत होगी।

भाजपा के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी ने पूर्व में कहा था कि यह भाजपा की जिम्मेदारी है कि वह दिल्ली की जनता को लोकप्रिय सरकार दे। 15 साल के वनवास के बाद भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी है। पार्टी ने मंगलवार को अपने विधायकों की बैठक बुलाई है।

उधर, आप नेता मनीष सिसौदिया ने कहा कि किसी से गठबंधन करने की जगह वह दोबारा चुनाव में जाना पसंद करेंगे।

आप के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य पंकज गुप्ता ने कहा, "हम विपक्ष में बैठने जा रहे हैं।"   

विशेषज्ञों का कहना है कि परंपरा के अनुसार, राज्यपाल नजीब जंग सबसे बड़ी पार्टी को सरकार गठन के लिए कह सकते हैं। लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी अचारी ने कहा कि अगर भाजपा सरकार गठन नहीं करती है तो जनभावना को देखते हुए 'आप' को मौका दिया जाना चाहिए।  

दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके खन्ना ने कहा, "विधानसभा या तो निलंबित रखी जा सकती है या फिर भंग की जा सकती है।"

निलंबित विधानसभा की स्थिति में किसी भी पार्टी के लिए बहुमत हासिल करने या कोई गठबंधन बनाने तथा सरकार बनाने का दावा पेश करने का मौका रहता है।

दिल्ली में यदि राष्ट्रपति शासन लागू होता है तो अगले छह महीने के लिए सारे अधिकार उपराज्यपाल के पास आ जाएंगे, जब तक कि कोई नई सरकार नहीं बन जाती या फिर से चुनाव नहीं हो जाता।

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विधानसभा यदि भंग होती है तो अगले लोकसभा चुनाव के साथ ही यहां फिर से चुनाव कराए जा सकते हैं।