...तो इसलिए नरेंद्र मोदी पर भारी पड़े अरविंद केजरीवाल

नई दिल्ली:

देश के प्रधानमंत्री, जिनके दम पर बीजेपी ने पहली बार लोकसभा में पूर्ण बहुमत हासिल किया और जिनके दम पर पार्टी ने चार राज्यों में विधानसभा चुनाव में शानदार प्रदर्शन किया, लेकिन दिल्ली में आकर केजरीवाल मोदी पर भारी पड़ गए। आखिर ऐसा क्या हुआ कि जिस केजरीवाल को नरेंद्र मोदी लोकसभा चुनाव में बुरी तरह ध्वस्त कर चुके थे, वह दिल्ली में आकर एक ऐसी दीवार बन गया, जिसके सामने मोदी का कोई हथौड़ा काम न आया।

इस पर मुझे अपने बचपन की एक कहानी याद आती है, जिसमें एक खरगोश और कछुए में रेस लगती है। खरगोश शुरू में खूब तेज़ी से दौड़ता है और जब देखता है कि कछुआ बहुत दूर रह गया है, वह यह सोचकर सो जाता है कि इसको तो मैं यूंहीं हरा दूंगा... और फिर कछुआ धीरे-धीरे बस चलता रहता है और आखिर में अति-आत्मविश्वास के कारण रफ्तार का धनी होते हुए भी खरगोश सुस्त चाल वाले कछुए से हार जाता है।

यही कहानी दिल्ली विधानसभा चुनाव पर लागू होती है... देखिए कैसे...

1. सबसे पहले प्रचार...
आम आदमी पार्टी ने जैसे ही नवंबर में विधानसभा भंग हुई, प्रचार शुरू कर दिया और सारे उम्मीदवारों के नामों का ऐलान भी जल्द कर दिया, जिससे ज़मीन पर सबसे पहले आम आदमी पार्टी का प्रचार दिखा, जबकि बीजेपी का असली प्रचार जनवरी में पीएम मोदी की रैली के बाद ही दिखा, इसलिए शुरू से लेकर आखिर तक ज़मीनी प्रचार में आम आदमी पार्टी आगे रही।

2. सब कुछ मोदी भरोसे...
जब केजरीवाल खूब प्रचार करके अपनी ज़मीन तैयार कर रहे थे, तब मीडिया और बीजेपी नेता कहा करते थे, मोदी जी की एक रैली होने दो, उसके बाद देखना... लगातार यह दलील दी जाती रही और माहौल यह बना रहा कि बस मोदीजी आएंगे और बीजेपी मैदान मार लेगी... लेकिन मोदी की रामलीला मैदान की रैली फ्लॉप हो गई और तब बीजेपी को एहसास हुआ कि वह रेस में आगे होते हुए भी पिछड़ गए हैं।

3. जनसभा बनाम रैली...
अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के कोने-कोने में जगह-जगह जाकर 100 से ज़्यादा नुक्कड़ सभाएं और जनसभाएं कीं और ये सारी सभाएं आम जनता के बीच ऐसे इलाकों में की गईं, जहां आने के लिए उन्हें ज़्यादा मेहनत न करनी पड़े, क्योंकि यह दिल्ली की पब्लिक है, और आसानी से किसी नेता के लिए भीड़ नहीं लगाती, लेकिन चूंकि नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री हैं और वह कोने-कोने में नहीं जा सकते थे, इसलिए केवल पांच रैली कर पाए और ज़बरदस्त प्रचार का सीधा फायदा आम आदमी पार्टी ने उठाया।

4. सरकार क्यों छोड़ी...?
केजरीवाल से आम जनता की नाराज़गी केवल एक बात पर थी कि उन्होंने 49 दिन में सरकार क्यों छोड़ी...? केजरीवाल ने अपनी हर सभा में जनता से कहा कि वह मानते हैं कि सरकार छोड़ना हमारी गलती थी और उन्होंने जनता से माफी मांगी, लेकिन जनता को यह भी समझाया कि उन्हें राजनीति में आए ज़्यादा समय नहीं हुआ, वह नए थे, इसलिए गलती हुई और अब किसी भी सूरत में इस्तीफा नहीं देंगे। लेकिन साथ ही जनता को यह कहकर इमोशनल करने की भी कोशिश की कि हमसे गलती हुई, लेकिन गुनाह नहीं, क्योंकि हमने कोई पैसा नहीं खाया, कोई करप्शन नहीं किया।

5. बिजली-पानी...
दिल्ली का सबसे बड़ा मुद्दा है बिजली-पानी के बिल... इसी मुद्दे पर आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस सरकार को खूब बैकफुट पर धकेला था और आखिर में कांग्रेस का सफाया कर दिया था। केजरीवाल ने इस बात का बेहद आक्रामक तरीके से प्रचार किया कि उन्होंने मुख्यमंत्री बनते ही बिजली का बिल आधा कर दिया था और पानी मुफ्त कर दिया था। उन्होंने यह भी बताया कि सरकार में आते ही फिर ऐसा होगा, लेकिन दूसरी ओर, बीजेपी इस मुद्दे पर ज़्यादा कुछ नहीं कह पाई, न कर पाई...

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इसलिए केजरीवाल भले ही पद और संसाधनों के मामले में मोदी के सामने दूर तक नहीं दिखते, लेकिन दिल्ली में फिर भी केजरीवाल उन पर भारी पड़ गए...