उमाशंकर सिंह की कलम से : बहस की मांग पर माकन की तान

शास्त्री नगर, नई दिल्ली :

शास्त्रीनगर मेट्रो स्टेशन आने वाले यात्रियों को यहां बज रहे ढोल नगाड़े दिन में होने वाली शादी का भ्रम दे रहे थे, लेकिन हाथ छाप के फहराते झंडे और कार्यकर्ताओं के सिर की टोपी उन्हें बता रही थी कि यहां कोई बारात नहीं निकल रही, बल्कि चुनाव आ गया है।
कार्यकर्ताओं को जोश मानों ढोलबाजे से पूरा नहीं पड़ रहा था, जो जमकर पटाखे चलाए जा रहे थे। निकलती चिंगारियों से बचते हुए लोग आसपास से निकल रहे थे। संकरे रास्ते पर इन पटाखों ने ही थोड़ी देर के लिए अजय माकन का रास्ता भी रोक लिया। कम भीड़ के बावजूद रेलमपेल ज़्यादा थी। कार्यकर्ता सुरक्षित घेरा बनाने के बहाने अपने नेता के नज़दीक़ से नज़दीक़ आना चाह रहे थे। कुछ मौक़ा पा फ़ोटो भी खींचवा रहे थे। टीवी कैमरे टिकटैक के लिए अलग ही ज़ोर लगा रहे थे। इन सब के बीच माकन मंच पर थे।

पहले दिल्ली की राजनीति में अपनी चुनावी उपलब्धियों को गिनाया। फिर इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का चेहरा बन मैदान में उतरे अजय माकन ने केजरीवाल के हथियार से ही केजरीवाल पर निशाना साध दिया। नामांकन दाख़िल करने के पहले छोटी-सी सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने "केजरीवाल को बहस की चुनौती दी। कहा कि किरण बेदी तो नहीं मान रहीं केजरीवाल साहब, आइए मैं और आप मिलकर बहस कर लेते हैं। किरण जी की कुर्सी ख़ाली छोड़ देंगे।" माकन ने कहा कि किसी एक की बजाय पांच पत्रकारों के सामने बहस हो और वे दिल्ली के विकास से लेकर व्यक्तित्व से जुड़े तमाम सवाल पूछे जाएं।

अजय माकन पिछले तीन दिनों से बहस में अपना नाम लिखवाना चाह रहे हैं। जबसे मीडिया में मुद्दा छाने के बाद केजरीवाल ने किरण बेदी को बहस की चुनौती दी है, उसके बाद से ही। पहले केजरीवाल ने ही बहस की मांग की शुरुआत की पर वे अब माकन की मांग पर कान नहीं धर रहे। जैसे केजरीवाल की मांग पर किरण बेदी कान नहीं धर रही। जब मैंने माकन से पूछा कि केजरीवाल आख़िर आपसे बहस की मंशा या दिलचस्पी क्यों दिखाएं? वे तो आपको रेस में ही नहीं मान रहे। जवाब आया कि कांग्रेस को दिल्ली में 25% वोट मिला है। इतने लोगों की आवाज़ वे अनसुनी नहीं कर सकते। अपने बयानों में माकन कांग्रेस की जीत के वैसे ही दावा कर रहे हैं, जैसे हर पार्टी न सिर्फ हर चुनाव के पहले बल्कि चुनाव के अंतिम नतीजे आ जाने के ठीक पहले तक करते हैं।

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नामांकन के लिए जाता काफिला छोटा-सा था, लेकिन इससे कांग्रेस की सादगी नहीं, बल्कि इसकी सांगठनिक कमज़ोरी साबित होती है। पिछली हार से पैदा हुई मायूसी उबरने का मौक़ा अंदरुनी रस्सीकशी में बेकार जाता नज़र आ रहा है। माकन के नामांकन की इस शुभ बेला में प्रदेश अध्यक्ष अरविंदर सिंह लवली की ग़ैरमौजूदगी बाक़ी कहानी कह जाती है।