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कुशीनगर: उत्तर प्रदेश में चुनाव प्रचार अपने चरम पर है. रोज़ आप बड़ी रैलियां देखते हैं, चुनाव प्रचार करते हुए नेताओं के हैलिकॉप्टर देखे होंगे आपने, लेकिन आज हम आपको उत्तर प्रदेश के कुशीनगर के एक मुसहर गांव "परसिया टोले" की कहानी बताने जा रहे हैं जहां न पक्के घर हैं, न पैरों में चप्पल और न ही शिक्षा, है तो सिर्फ़ बदहाली. कुशीनगर शहर से 15 किलोमीटर दूर स्थित है परसिया टोला गांव. ये गांव अत्यंत पिछड़ी जाति के मुसहरों का गांव है. समाज ने इनको संविधान ने बराबरी का दर्ज़ा तो दिला दिया है पर अब भी ये समाज की मुख्य धारा से दूर ग़रीबी और फ़टेहाली में अपना जीवन जीने को मजबूर हैं क्योंकि इस गांव के किसी भी मुसहर के पास अपनी ज़मीन नहीं है, इसलिए ये दूसरे गांव के लोगों के खेतों में मज़दूरी करने को मजबूर हैं.
इस गांव में हमारी मुलाक़ात नरेश मुसहर से हुई. नरेश की उम्र 20 साल है और पास के ईंट के भट्ठे में मज़दूरी करते हैं, मां बाप ग़रीब थे तो इन्हें पढ़ा नहीं पाए. नरेश से जब हमने पूछा कि चुनाव हैं आपको पता है तो उन्होंने हां में सर हिलाया. फिर हमने उनसे पूछा कि किसी नेता का नाम याद है तो नरेश ने कहा, 'नहीं बाबूजी, दिनभर मज़दूरी करता हूं, नेताओं के बारे में नहीं जानता.' बड़ा आश्चर्य होता है कि व्हाट्सऐप और फ़ेसबुक की दुनाया में रह रहे नरेश को न मोदी का पता है और न अखिलेश का.
इस गांव में न तो पीएम की उज्जवला योजना पहुंची है और न ही अखिलेश सरकार की समाजवादी पेंशन योजना. यहां महिलाएं कच्चे चूल्हे में ही खाना बनाती हैं और कुछ तो ईंट रख कर ही चुल्हा बनाए हुए हैं. इस गांव का एक भी बच्चा स्कूल नहीं जाता क्योंकि रोटी के लिए तो पैसा है नहीं तो पढ़ाई के लिए पैसा कहां से आए. बच्चा थोड़ा बड़ा होता है तो अपने बाप के साथ मज़दूरी करने लगता है.
गांव की महिलाएं बताती हैं कि मास्टर फीस के पैसे नहीं दे पाने पर स्कूल से बच्चों को भगा देते हैं. 300 लोगों के गांव में एक भी शौचालय नहीं है और पानी के नाम पर सिर्फ़ एक हैंडपंप. यहां लोगों के पास सोने के लिए बिस्तर तक नहीं हैं, लोग फूस का बिस्तर बना कर किसी तरह काम चला रहे हैं. कुशीनगर में लगभग 86 मुसहर गांव हैं जहां कमोबेश यही हालत है.