नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जुगलबंदी के आगे प्रशांत किशोर की चमक फीकी

नरेंद्र मोदी-अमित शाह की जुगलबंदी के आगे प्रशांत किशोर की चमक फीकी

प्रशांत किशोर (फाइल फोटो)

2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान पहली बार चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर सुर्खियों में आए. चुनावों में मोदी की जीत का श्रेय उनको भी दिया गया. माना गया कि उस दौरान चाय पर चर्चा जैसे कार्यक्रम उनके दिमाग की ही उपज थे. उसके बाद बिहार में उन्‍होंने नीतीश कुमार के चुनावी प्रबंधन को संभाला और उसके नतीजे भी जदयू के पक्ष में रहे. इन सफलताओं का असर यह हुआ कि यह माना जाने लगा कि प्रशांत किशोर जिस दल को भी अपनी सेवाएं देते हैं, उसको सफलता मिलती ही है.

संभवतया इसीलिए कांग्रेस ने यूपी और पंजाब में लीं. यूपी में जिम्‍मा संभालते हुए प्रशांत किशोर ने सबसे पहले राहुल गांधी की तमाम रैलियां आयोजित कराई. ब्राम्‍हण चेहरे के रूप में शीला दीक्षित को पेश किया गया. राहुल गांधी की खाट सभाएं आयोजित कराई गईं. इन सबसे बढ़कर सपा-कांग्रेस गठबंधन को कराने में भी उनकी अहम भूमिका मानी जाती है. लेकिन इन सबका नतीजा एकदम उलट हुआ. हालांकि पंजाब में कांग्रेस की जीत हुई और वहां भी वह रणनीतिकार थे लेकिन यूपी में सपा-कांग्रेस गठबंधन की करारी हार ने उनको चमक को फीका कर दिया.

भारतीय राजनीति में प्रशांत किशोर के उत्‍कर्ष के बाद यह माना जाने लगा कि यहां पर भी चुनाव इवेंट मैनेजमेंट बनता जा रहा है लेकिन बीजेपी की सुनामी ने इस मिथक को झुठला दिया है. इससे एक बार फिर साबित हो गया है कि भारतीय मतदाताओं के रुख को भांपना इतना आसान नहीं है. इस बार यूपी के वोटरों के मिजाज को बड़े-बड़े राजनीतिक विश्‍लेषक भी नहीं भांप पाए. हालांकि Exit Poll में यह माना गया कि बीजेपी सबसे बड़े दल के रूप में उभर सकती है लेकिन किसी ने भी बीजेपी की इस तरह की प्रचंड जीत का अनुमान नहीं लगाया था.


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