ग्राउंड रिपोर्ट : सहारनपुर में बीजेपी को 'हाथी' के बलबूते 'कमल' खिलने की आस!

ग्राउंड रिपोर्ट : सहारनपुर में बीजेपी को 'हाथी' के बलबूते 'कमल' खिलने की आस!

सहारनपुर में विधानसभा चुनाव के लिए बुधवार को मतदान हुआ (प्रतीकात्मक फोटो).

सहारनपुर:

सहारनपुर जिले की सात विधानसभा सीटों के लिए बुधवार को वोट डाले गए. यहां मुस्लिम और दलित वोटों के लिए कांग्रेस-समाजवादी पार्टी और बीएसपी के बीच खींचतान में बीजेपी अपना फायदा देख रही है. बीजेपी को लोकसभा चुनावों में यहां की पांच सीटों पर बढ़त मिली थी. 40 फीसदी मुस्लिम और 20 फीसदी दलित वोटरों वाले सहारनपुर में मुकाबला दिलचस्प है. 2013 में मुजफ्फरनगर दंगों की आंच शहर तक पहुंच गई थी. फिर 2014 में यहां भी साम्प्रदायिक दंगे हुए..जिससे शहर की साख को बट्टा लगा..कानून-व्यवस्था चुनावों में अहम मुद्दा है.

गुरु नानक इंटर कॉलेज में बने मतदान केंद्र में वोट डालने पहुंचे एक शख्स ने कहा 'हालत यह है कि हम टूटी सड़कों पर चल सकते हैं..बिना बिजली के भी रह सकते हैं..लेकिन हम दंगों में नहीं जी सकते हैं.' एक अन्य मतदाता ने बताया कि 'यूपी में विकास नहीं हो पाया है, लेकिन मोदी सरकार ने जो नोट बंद करवाए हैं..उससे ठीक हुआ है. जो नकली नोट आ रहे थे हमारे देश में वो अब बंद हो गए हैं.'

2012 के विधानसभा चुनाव में यहां बीएसपी का दबदबा रहा..और बीजेपी सिर्फ सहारनपुर शहर की सीट बचा पाई थी. 2014 में सहारनपुर लोकसभा की सीट जीतने के बाद बीजेपी ने बीएसपी के दो और कांग्रेस के एक विधायक को टिकट देकर स्थानीय समीकरण अपने पक्ष में करने की कोशिश की है. लेकिन नोटबंदी से लोगों में नाराजगी है और कांग्रेस-समाजवादी पार्टी के हाथ मिलाने से बीजेपी की मुश्किलें बढ़ गई हैं.

नकुड़ सीट से कांग्रेस के दबंग उम्मीदवार इमरान मसूद कहते हैं 'शीशम का एक्सपोर्ट बैन कर दिया कुछ बड़े लोगों को फायदा पहुंचाने के लिए, जबकि शहर के छोटे कारीगरों की इससे रोजीरोटी चलती थी. मोदी सरकार ने नोटबंदी से सीधे साढ़े चार करोड़ मजदूर बेरोजगार कर दिए. नोट बंदी ने व्यापार बर्बाद कर दिया, किसान बर्बाद कर दिया.'

सहारनपुर नगर सीट से बीजेपी के उम्मीदवार राजीव गुंबर कहते हैं 'दंगा विकास को रोकता है. इसलिए जो दंगे को संरक्षण देने वाली पार्टी है या दंगा कराने वाले लोगों को संरक्षण देने वाली पार्टी अब उसका जाना तय कर दिया है लोगों ने.'

बीजेपी की उम्मीदें बीएसपी पर टिकी हैं जिसने बेहट और देवबंद में मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव लगाया  है. वैसे 2007 से सहारनपुर की ज्यादातर सीटों पर मुस्लिम और दलित बीएसपी का दबदबा भी रहा है.

बीजेपी के लिए साख बचाने का सवाल है. एक बार फिर मोदी फैक्टर का टेस्ट सहारनपुर में है. हालांकि कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की जुगलबंदी की काट खोजने में पार्टी कुछ खास नहीं कर पाई है लेकिन बीजेपी के उम्मीदवारों को उम्मीद है कि हाथी को मिलने वाले मुस्लिम वोटों से उनकी जीत की राह आसान होगी.


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