
कपिल सिब्बल (फाइल फोटो)
कर्नाटक विधानसभा के अस्थायी अध्यक्ष के तौर पर के जी बोपैया की नियुक्ति के खिलाफ कांग्रेस - जद ( से ) की याचिका पर सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय की शक्ति परीक्षण टालने की चेतावनी के बाद यह गठबंधन बैकफुट पर आ गया. बौपेया की नियुक्ति को लेकर इस ( जद ( एस )- कांग्रेस ) गठबंधन ने उंगली उठाई थी.
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गठबंधन ने बोपैया द्वारा पहले निभाई गई विवादित भूमिका का हवाला देते हुए अपनी दलीलें रखनी शुरू की थीं. बोपैया 2009-2013 के बीच राज्य विधानसभा के अध्यक्ष रह चुके हैं और उन्होंने 2010 में शक्ति परीक्षण के दौरान बी एस येदियुरप्पा की जीत सुनिश्चित करने के लिए 16 विधायकों को अयोग्य करार दिया था.
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हालांकि जब न्यायाधीश ए के सीकरी के नेतृत्व वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि जब अस्थायी अध्यक्ष की प्रमाणिकता पर ऊंगली उठाई जा रही है तो न्यायालय को बोपैया को भी सुनना पड़ेगा और इ ससे शक्ति परीक्षण टल जाएगा.
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पीठ ने कहा , “ आप चाहते हैं कि हम अस्थायी अध्यक्ष की नियुक्ति की उपयुक्तता पर आदेश दें तो हम आपको सुनने के लिए तैयार हैं और इसके लिए हमें अस्थायी अध्यक्ष को नोटिस जारी करना होगा और हमें शक्ति परीक्षण को टालना होगा. ”
सिब्बल 2011 के कर्नाटक शक्ति परीक्षण के उच्चतम न्यायालय के आदेश को पढ़ रहे थे लेकिन उन्होंने पीठ को तत्काल प्रतिक्रिया देते हुए कहा , “ मैं अस्थाीय अध्यक्ष पर उं गली नहीं उठा रहा हूं. मैं सिर्फ न्यायालय से यह कह रहा हूं कि उन्हें शक्ति परीक्षण कराने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए. ”
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कर्नाटक विधानसभा के अध्यक्ष बोपैया के 16 विधायकों को अयोग्य करार देने के फैसले को उच्चतम न्यायालय ने 2011 में निरस्त कर दिया था. येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को बचाने के लिए विधायकों को अयोग्य करार दिया गया था.
पीठ की इस मामले में बोपैया को सुनने की टिप्पणी के बाद कांग्रेस और जद ( एस ) ने अपनी रणनीति बदल ली और अस्थाई अध्यक्ष के खिलाफ अपनी अंतरिम याचिका पर जोर नहीं दिया.
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