Election Results 2018: राजस्थान में इन 5 कारणों से हारी बीजेपी

Election Results 2018: राजस्थान विधानसभा चुनाव (Rajasthan Election Results) की मतगणना में सभी 199 सीटों के रुझान आ गए हैं.

Election Results 2018: राजस्थान में इन 5 कारणों से हारी बीजेपी

Election Results 2018: चुनाव से पहले ही सीएम वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) के खिलाफ बगावत के सुर उठने लगे थे.

नई दिल्ली :

राजस्थान विधानसभा चुनाव (Rajasthan Election Results) की मतगणना में सभी 199 सीटों के रुझान आ गए हैं. अब तक कांग्रेस को 101 सीटों पर बढ़त मिलती दिख रही है, वहीं बीजेपी के उम्मीदवारों ने 73 सीटों पर बढ़त बनाई है. दूसरी तरफ, बसपा को 6 तो अन्य उम्मीदवारो को 19 सीटों पर बढ़त मिलती दिख रही है. राजस्थान विधानसभा चुनावों (Rajasthan Assembly Elections 2018) में बीजेपी की हार अंदेशा पहले से ही जताया जा रहा था. राज्य में एक तरफ बीजेपी के खिलाफ 'एंटी इनकंबेंसी' का माहौल था. तो दूसरी तरफ, चुनाव से काफी पहले ही सीएम वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) के खिलाफ बगावती सुर उठने लगे थे. कार्यकर्ताओं और पार्टी के नेताओं का आरोप था कि वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) मनमानी तरीके से सरकार चला रही हैं. पार्टी अध्यक्ष से इसकी शिकायत की गई, लेकिन इसके बाद भी वसुंधरा अपने रवैये पर कायम रहीं. दूसरी तरफ राज्य की बिगड़ती कानून व्यवस्था, किसानों की नाराजगी और बेरोजगारी जैसे मुद्दे भी पार्टी पर भारी पडे़. आइये आपको बताते हैं कि आखिर 'थार के मरुस्थल' में बीजेपी को क्यों मुंह की खानी पड़ी.

1. वसुंधरा का 'महारानी स्टाइल' पार्टी पर पड़ा भारी 
विधानसभा चुनावों में बीजेपी की हार की सबसे बड़ी वजह खुद वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) ही हैं. कहते हैं कि पांच वर्षों तक उन्होंने 'महारानी स्टाइल' में सरकार चलाई और लोगों के बीच जाने की जरूरत तक नहीं समझी. तमाम ऐसे मौकों पर, जहां मुख्यमंत्री की मौजूदगी की अपेक्षा की जाती है, वहां उन्होंने मंत्री और विधायकों को भेज दिया. 2013 में चुनाव जीतने के बाद से वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) पार्टी के कार्यकर्ताओं से कट गईं. स्थानीय कार्यकर्ता और यहां तक कि पार्टी में ठीक-ठाक हैसियत रखने वाले नेताओं को भी उनसे मिलने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ी. इसका एक उदाहरण कभी पार्टी के संघ पृष्ठभूमि के कद्दावर नेता रहे विधायक घनश्याम तिवाड़ी हैं. वे वसुंधरा की कार्यप्रणाली से इस कदर नाराज हुए कि पार्टी ही छोड़ दी. तमाम घटनाओं के बाद वसुंधरा (Vasundhara Raje) पर दंभी होने के आरोप लगे, हालांकि उनके रुख में कोई बदलाव नहीं आया. इस बार जब चुनाव सिर पर आए तो वसुंधरा राजे ने जनसंपर्क अभियान शुरू किया. इस अभियान के दौरान उनको काले झंडे दिखाए गए. जिसका मतलब साफ था कि लोग उनसे नाराज हैं और चुनाव नतीजों ने इसकी पुष्टि कर दी.  

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2. बागियों की नाराजगी हार की बड़ी वजह 
राजस्थान में बीजेपी (BJP) की हार के पीछे 'बागियों' की नाराजगी बड़ी वजह है. पार्टी में टिकट बंटवारे के साथ ही टकराव की स्थिति शुरू हो गई. चुनाव से ठीक पहले मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने कैबिनेट के चार मंत्रियों सहित 11 वरिष्ठ नेताओं को निलंबित कर दिया. ये नेता पार्टी द्वारा चुने गए उम्मीदवारों के पक्ष में राजस्थान विधानसभा चुनावों के लिए नामांकन वापस लेने से इंकार कर रहे थे. जिन लोगों को हटाया गया उनमें सुरेंद्र गोयल, लक्ष्मीनारायण दवे, राधेश्याम गंगानगर, हमी सिंह भदान, राजकुमार रिनावा, रामेश्वर भती, कुलदीप धनकड़, दीनदयाल कुमावत, किशनम नाई, धनसिंह रावत और अनीता कटारा प्रमुख थे. इसके अलावा पार्टी के दिग्गज नेताओं में शुमार रहे घनश्याम तिवाड़ी की नाराजगी भी बीजेपी को भारी पड़ी. घनश्याम तिवाड़ी ने बागी तेवर अपनाते हुए बीजेपी छोड़ दी थी और भारत वाहिनी पार्टी बना ली थी. हालांकि बीजेपी बगावती तेवर अपनाए ज्ञानदेव आहूजा को मनाने में कामयाब रही थी, लेकिन इसके बावजूद नतीजे पार्टी के खिलाफ रहे. 

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3. मॉब लिंचिंग की घटनाओं से कानून व्यवस्था पर प्रश्न
राजस्थान में मॉब लिंचिंग (Mob Lynching in Rajasthan) की घटनाओं की वजह से कानून व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े हुए. एक के बाद एक होने वाली आपराधिक घटनाओं की वजह से सरकार की साख पर तो बट्टा लगा ही. साथ ही ऐसी घटनाओं को न रोक पाने की वजह से लोगों में नाराजगी भी बढ़ी. पहलू खान और रकबर की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या के बाद तो राजस्थान की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किरकिरी हुई. इसके अलावा अवैध खनन आदि का मुद्दा भी बीजेपी पर भारी पड़ा. इन सबके अलावा बेरोजगारी का मुद्दा पर भी बीजेपी सरकार पर भारी पड़ा. चुनाव प्रचार के दौरान युवा कहते देखे गए कि राज्य में रोजगार पैदा करने के संसाधन बहुत थे, लेकिन सरकार इस पर काम नहीं कर पाई. जिसकी वजह से बेरोजगारी बढ़ी और यहां के युवाओं को दूसरे राज्यों में जाना पड़ा. इन सबके अलावा इन चुनावों में पानी का मुद्दा भी अहम था. बाड़मेर के अलावा पाकिस्तान से सटे जिलों के सीमावर्ती इलाकों में पानी की किल्लत की वजह से लोगों में अच्छी-खासी नाराजगी देखी गई. चुनाव के दौरान लोगों का कहना था कि 2013 में उन्होंने पानी के लिए वसुंधरा (Vasundhara Raje) को वोट दिया था, लेकिन पांच वर्षों में भी पानी की व्यवस्था नहीं हो पाई. पानी की कालाबाजारी बढ़ी. 

4. संगठन से दूरी वसुंधरा को पड़ी भारी 
इसी साल राजस्थान में हुए उपचुनावों में बीजेपी को करारी हार मिली थी. अजमेर, अलवर लोकसभा और मांडलगढ़ विधानसभा सीट बीजेपी को गंवानी पड़ी. तीनों जगह कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी. उपचुनावों में हार के बाद वसुंधरा (Vasundhara Raje) के नेतृत्व पर सवाल उठने लगे, हालांकि उन्होंने लगातार इसे नजरंदाज किया. यहां तक कि पार्टी के अंदर बगावती सुर भी उठने लगे और कई नेताओं ने तो उन्हें हटाने की मांग कर डाली. पार्टी अध्यक्ष अमित शाह (Amit Shah) को इसके लिए पत्र तक लिखा. हालांकि वसुंधरा पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा. इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति में भी वसुंधरा की ही चली. बताया जाता है कि इसके बाद वसुंधरा राजे की पार्टी और संगठन से दूरी बढ़ती चली गई. भले ही विधानसभा चुनाव में पीएम मोदी समेत पार्टी के तमाम शीर्ष नेता चुनावी रण में दिखे हों, लेकिन धरातल पर कार्यकर्ताओं और संगठन की नाराजगी भारी पड़ी. संगठन की तरफ से वैसा सहयोग नहीं मिला, जैसा पिछली बार मिला था और जिसकी वसुंधरा राजे उम्मीद कर रही थीं. 

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5 . जातीय गणित हल करने में नाकाम रही बीजेपी 
कहते हैं कि राजस्थान (Rajasthan Election Results) का जातीय गणित जिसने हल कर लिया, उसने चुनाव जीत लिया. साल 2013 में जिस जातीय समीकरण के बूते वसुंधरा सीएम की गद्दी तक पहुंची थीं, इस बार वह उसी गणित को हल करने में नाकाम रहीं. कभी पार्टी के दिग्गज नेता रहे मानवेन्द्र सिंह के कांग्रेस में जाने की वजह से बीजेपी से राजपूत वोट छिटका. तो दूसरी तरफ, करणी सेना की नाराजगी का भी असर दिखा और राजपूत वोटर कांग्रेस की तरफ मुड़े. इसके अलावा अशोक गहलोत की वजह से सैनी, माली और अन्य पिछड़ी जातियों का वोट तो कांग्रेस को मिला ही. सचिन पायलट की वजह से गुर्जर समुदाय का वोट भी कांग्रेस के पाले में आया. विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि किसानों की नाराजगी भी वसुंधरा को भारी पड़ी और किसानों का वोट भी कांग्रेस को गया.  

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