मध्यप्रदेश: जिसके कंधे पर कांग्रेसी उम्मीदवारों को जितवाने की थी जिम्मेदारी, वही कर रहा उनकी हार की तैयारी...

मध्य प्रदेश एक ऐसा कद्दावर, लेकिन जिद्दी नेता जिसके कंधे पर एमपी के कांग्रेसी उम्मीदवारों का प्रचार और उन्हें जितवाने की जिम्मेदारी दी गई है वह अपनी सियासी प्रतिष्ठा के लिए कांग्रेस को ही हराने में जुटे हैं.

मध्यप्रदेश: जिसके कंधे पर कांग्रेसी उम्मीदवारों को जितवाने की थी जिम्मेदारी, वही कर रहा उनकी हार की तैयारी...

सत्यव्रत चतुर्वेदी अपने बेटे के लिए कर रहे हैं चुनाव प्रचार.

नई दिल्ली:

मध्य प्रदेश एक ऐसा कद्दावर, लेकिन जिद्दी नेता जिसके कंधे पर एमपी के कांग्रेसी उम्मीदवारों का प्रचार और उन्हें जितवाने की जिम्मेदारी दी गई है वह छतरपुर के राजनगर विधानसभा में अपनी सियासी प्रतिष्ठा की लड़ाई जीतने के लिए कांग्रेस को ही हराने में जुटे हैं. जी हां हम बात कर रहे हैं पूर्व सांसद और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी उर्फ विनोद भय्या की. वैसे तो वो सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने का दावा कर रहे हैं, लेकिन बेटे नितिन चतुर्वेदी के सियासी भविष्य के लिए आजकल समाजवादी पार्टी की ओर से परचम बुलंद किए हैं.

कांग्रेस अपने इस खिलाड़ी के हिटविकेट को समझने की कोशिश कर रही है, लेकिन विरोधी पार्टी चुटकी ले रही है कि छतरपुर में कांग्रेस अपना घर बचाए फिर बीजेपी को हराने का दावा करे. लेकिन सत्यव्रत चतुर्वेदी तो जैसे कांग्रेस से दो-दो हाथ करने का मूड बना चुके हैं. वो सख्ती से कहते हैं कि जब कांग्रेस में था तब उन्होंने मुझे सम्मान नहीं दिया. अब जब मैं अपने बेटे के लिए समाजवादी पार्टी का चुनाव प्रचार कर रहा हूं तो मुझे कांग्रेस का स्टार प्रचारक बना रहे हैं, ये भांग खाए लोग हैं. इतना कहकर वो छतरपुर में राजनगर विधानसभा के तालपुर गांव की पगडंडियों में अपने बेटे नितिन चतुर्वेदी के लिए सियासी रास्ता तलाशने चले जाते हैं. उनके चुनाव प्रचार में न झंडा है और न ही बैंडबाजे. कोई बड़ा नेता भी उनके इस चुनाव प्रचार में साथ नहीं है. वो अब अपने बेटे के लिए मजबूर बाप की हैसियत से छोटे से बड़े घर में जाकर अपनी राजनीतिक विरासत बचाने के लिए लोगों से व्यक्तिगत अपील कर रहे हैं.

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उधर छतरपुर में सत्यव्रत चतुर्वेदी के बगावती तेवर के बावजूद कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के उत्साह में कोई कमी नहीं है. कांग्रेस के पास भी यहां खोने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है, क्योंकि छतरपुर की छह विधानसभा सीटों में पिछले बार महज एक पर ही कांग्रेस के वीर विक्रम सिंह उर्फ नाती राजा ने जीत हासिल की थी. जिस नाती राजा को कभी सत्यव्रत चतुर्वेदी ही सपा से कांग्रेस में लाए थे. अब वही नाती राजा उनके बेटे के सामने चुनावी ताल ठोंक रहे हैं. नाती राजा कहते हैं कि छतरपुर की जिस इकलौती सीट पर कांग्रेस की तरफ से वह दो बार जीते हैं, आखिर उसी सीट पर सत्यव्रत चतुर्वेदी क्यों अपने बेटे को टिकट दिलवाना चाहते थे.

 

g3tm7bgनाती राजा.

वहीं, सत्यव्रत चतुर्वेदी का कहना है कि नाती राजा ने उनसे वादा किया था कि वो अब लोकसभा चुनाव लड़ेंगे और इस सीट पर नितिन लड़ेंगे. लेकिन इन सब बातों के लिए वक्त निकल चुका है. सियासत की बिसात पर जहां एक तरफ नाती राजा सत्यव्रत चतुर्वेदी को घेरने में जुटे हैं तो दूसरी तरफ उनके सगे भाई आलोक चतुर्वेदी भी उनके साथ नहीं हैं. आलोक चतुर्वेदी खुद छतरपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. वो कहते हैं कि सत्यव्रत जी ने ऐसा फैसला क्यों लिया है ये तो वहीं बता सकते हैं, लेकिन उनके जाने से कांग्रेस पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा.

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छतरपुर के लोग कहते हैं कि सत्यव्रत चतुर्वेदी के बेटे इस विधानसभा में ज्यादा राजनीतिक तौर पर सक्रिय नहीं थे. दूसरा सपा पार्टी का खुद का जनाधार कमजोर है. ऐसे में सियासी भंवर में बेटे की राजनीतिक महत्वाकांक्षा की कश्ती को ये बुजुर्ग हो चला मल्लाह कहां तक निकाल पाता है ये आने वाले चुनावी नतीजे बताएंगे.

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