जब भारतीय जवानों ने दिखाया पराक्रम और बनाए रखी शान

आजादी के बाद से भारत ने कुल पांच लड़ाइयां लड़ी. एक चीन के साथ और चार पाकिस्तान के साथ. चीन ने भारत को करारी हार दी और पाकिस्तान को भारत ने.

जब भारतीय जवानों ने दिखाया पराक्रम और बनाए रखी शान

कारगिल में जीत का जश्न मनाते भारतीय सैनिक.

नई दिल्ली:

आजादी के साथ ही भारत को विभाजन की विभीषिका झेलनी पड़ी. पाकिस्तान को काटकर भारत से अलग किया गया. यह दंश दोनों ओर के निवासियों को सालता रहा है. स्थिति यह रही कि जो कटुता तब पनपी वो आज तक कई मौकों पर सरहद के दोनों ओर रह रहे लोगों में मौकों मौकों पर दिखाई देती है. खैर बात जब दोनों से हुई लड़ाई की की जाती है तब यह कहा जा सकता है कि दोनों देशों ने आजादी के बाद से चार युद्ध लड़े. यह अलग बात है कि पाकिस्तान कारगिल युद्ध को स्वीकारता नहीं है. वह इसे कश्मीरी अलगाववादियों और मुजाहिद्दीनों की लड़ाई बताता है जबकि हकीकत यही है कि वह इस युद्ध का जनक रहा है. आजादी के बाद से भारत ने कुल पांच लड़ाइयां लड़ी. एक चीन के साथ और चार पाकिस्तान के साथ. चीन ने भारत को करारी हार दी और पाकिस्तान को भारत ने.

आजादी के चंद महीने बाद ही भारत को पाकिस्तान से पहला युद्ध लड़ना पड़ा. आजादी के बाद हमने पाकिस्तानी फौज से आधिकारिक  तौर पर तीन युद्ध लड़े. यह युद्ध 1947-48, 1965 और 1971 में लड़े और जीते. 1962 में चीन ने भारत पर हमला किया और तब जब भारत की सेना तैयार नहीं थी और भारत की रक्षा नीति भी खास नहीं थी.

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पहला युद्ध : सत्ता के हस्तांतरण के वक्त कश्मीर, हैदराबाद, गोवा, दमन, दीव, पांडिचेरी और सिक्किम भारत का हिस्सा नहीं थे. कश्मीर में राजा हरिसिंह अलग होने पर अड़े हुए थे और तत्कालीन जवाहरलाल नेहरू की सरकार का उनके प्रति कोई कड़ा रुख नहीं था. गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल उन्हें भारत के साथ मिलने पर दबाव डाल रहे थे लेकिन हरिसिंह ने विलय संधि पर हस्ताक्षर किए 26 अक्टूबर 1947 को जब पाकिस्तानी फौज के बहकावे में पाकिस्तानी कबाइलों ने कश्मीर में घुसकर हमले करना शुरू किया था. हरिसिंह के सामने तब भारत या पाकिस्तानी में विलय के सिवाय चारा नहीं था, उन्होंने भारत में विलय में ही भलाई समझी. विलय संधि पर हस्ताक्षर होते ही भारतीय सेना ने मोर्चा संभाला और हमलावरों को खदेड़ने का काम शुरू किया. सेना के जवानों ने श्रीनगर, बड़गांव, बारामूला, उड़ी, सोपोर, कुपावड़ा क्षेत्रों में घुसे कबाइलियों और पाकिस्तानी सैनिकों को कश्मीर के बाहर निकाल दिया. हमारी सेनाएं कबायली हमलावरों और पाकिस्तानी सैनिकों को पूरे कश्मीर से बाहर करने की तैयारी में संघर्षरत थी कि बिना किसी निष्कर्ष के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र में युद्धविराम की घोषणा कर दी. 31 दिसम्बर 1948 की रात के 12 बजे से यह युद्ध विराम लागू हो गया. फौजें वापस लौट आईं और पूर्ण कश्मीर को पाकिस्तानियों से मुक्त कराने की योजना धरी रह गई और अब कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे में है जिसे पाक अधिकृत कश्मीर कहा जाता है.

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1962  में दूसरा युद्ध चीन से लड़ा गया : आजाद भारत का यह दूसरा युद्ध था. यह चीन के साथ लड़ा गया था. यह नेहरू के पंचशील सिद्धांतों और गुटनिरपेक्षता की भावना की परीक्षा भी था. आजादी के साथ ही भारत ने अपना रुख साफ कर दिया था कि वह शांतिप्रिय देश और सेना पर ज्यादा खर्च नहीं करेगा. 1950 में सरकार ने सेना की भूमिका तय की - ‘‘सेनाओं का पहला कार्य है, अगर विदेशी आक्रमण हो तो भारत की उससे रक्षा करना और दूसरा कार्य है सरकार के आग्रह पर शांतिपूर्ण कार्यों के लिए उसकी मदद करना.’’ पंडित नेहरू ने सेना पर खर्च बढ़ाने के बजाए विकास कार्यों पर खर्च करना ज्यादा महत्वपूर्ण लगा. सेनाओं के आधुनिकीकरण और जवानों के प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया. 1942 से 1956 तक चीन से भारत के संबंध बहुत मधुर रहे. 1962 में चीन ने भारत को युद्ध में बुरी तरह हराया.

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तीसरा युद्ध - 1965: आजाद भारत के तीसरे और पाकिस्तान से भारत के दूसरे युद्ध की शुरुआत 1 सितम्बर 1965 को हुई थी. 8-9 अप्रैल 1965 की रात्रि में पाकिस्तानी सेना ने दो पोस्ट पर हमला किया. दरअसल वह भारतीय सुरक्षा व्यवस्था की थाह ले रहा थाय इसके पहले दिसम्बर 1965 में भी पाक फौजें ब्रिगेड अटैक कर चुकी थी और भारत की नं. 31 इंडिपैंडेट ब्रिगेड अहमदाबाद से धांगध्रा जा रही थी. इंडिपैंडेट ब्रिगेड के जवानों को वंजरकोट भेजा जाना था, लेकिन सरकार ने उसे सीधे जाने की अनुमति यह कहकर नहीं दी कि युद्ध के माहौल से शांति व्यवस्था भंग होगी और लोग विकास कार्यों में निवेश नहीं करेंगे. गुजरात के मुख्यमंत्री बलवंतराय मेहता ने भुज क्षेत्र में खुद हालात का जायजा लेना चाहा और विमान से दौरा शुरू किया. जब मेहता का नागरिक विमान पाकिस्तानी सेना की गोलीबारी में गिर गया और मेहता की मृत्यु हो गई तब कहीं केन्द्र सरकार को महसूस हुआ कि मामला गंभीर है. 

1 सितम्बर 1965 को जब पाकिस्तान ने छम्ब क्षेत्र में टैंकों, तोपों और हवाई जहाजों से हमले शुरू किए तब पाकिस्तान में कहा गया था. हम नाश्ता अमृतसर में, दोपहर का खाना जयपुर में और रात का भोजन दिल्ली में करेंगे. लेकिन शाम होते होते पाकिस्तानी सेना के होश उड़ गए. यह पहला युद्ध था जिसमें भारतीय थल सेना को वायु सेना का पूरा पूरा सामरिक सहयोग मिला. दो सप्ताह तक यह  युद्ध चला. पूरे युद्ध में भारतीय सेना बुलंदी पर थी कि अमेरिका के भारी दबाव के कारण प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी. एक बार फिर अपनी जीती हुई बाजी ताशकंद समझौते में छोड़ दी. 

चौथा युद्ध - 1971 : भारतीय युद्ध कौशल और कूटनीतिक विफलता का सबक 1971 में हमने भारी कीमत चुकाकर सीखा. इस युद्ध में हमारा एक लक्ष्य ही पूरा हुआ है - बांग्लोदश की मुक्ति का. चार युद्धों में यह एक युद्ध था जो हमें सबसे ज्यादा चौकस कर गया और हमारी तीनों सेनाओं में समन्वय करा जीत की स्थिति में ले गया. पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में करीब एक लाख सैनिकों को आत्मसमर्पण के लिए मजबूर कराने के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो के साथ शिमला में समझौता किया और सभी युद्ध बंदियों को सकुशल पाकिस्तान भेज दिया. हमारी यह जीत महत्वपूर्ण इसलिए भी है कि इसी जीत ने इह क्षेत्र में ढाई दशक से ज्यादा समय तक शांति की सौगात दी है. इसी लड़ाई से हमने सबक सीखा है कि शांति के लिए युद्ध जरूरी है. चार युद्धों के बाद हमने अपनी सुरक्षा सेनाओं के महत्व को स्वीकार किया है. 

पांचवां युद्ध कारगिल : कारगिल हिमालय पर है जो श्रीनगर से 215 किलोमीटर की दूरी पर है. यह हिस्सा जोजिला पास बंद होने की वजह से करीब 7 महीने देश से अलग रहता है. उन दिनों कारगिल के बारे में कोई जानता तक नहीं था. सरकार को खबर मिली थी कि पाकिस्तान ने कारगिल के एक हिस्से पर कब्जा कर लिया है. इसके बाद दुश्मनों को अपनी जमीन से दूर भगाने के लिए ऑपरेशन विजय शुरू हुआ. 
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कहा जाता है कि कारगिल की लड़ाई उम्मीद से ज्यादा खतरनाक थी. भारतीय सेना पाकिस्तान की सेना पर भारी पड़ रही थी. कहा जाता है कि कारगिल युद्ध में पाकिस्तान ने 2700 से ज्यादा सैनिक गंवाए थे. इस लड़ाई में उन्हें 1965 और 1971 से ज्यादा नुकसान हुआ था. नवाज शरीफ ने भी माना था कि कारगिल युद्ध पाकिस्तानी सेना के लिए आपदा साबित हुआ.8 मई को शुरू हुए इस युद्ध में 11 मई से इंडियन एयरफोर्स की एक टुकड़ी ने सेना की मदद करनी शुरू कर दी थी. कारगिल समुद्र तल से 16000 से 18000 फीट की ऊंचाई पर है.  8 मई 1999 से लेकर 14 जुलाई 1999 तक यह युद्ध चला.
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