बिहार चुनाव के नतीजों ने एक बार फिर लालू यादव को 'हीरो' बना दिया

बिहार चुनाव के नतीजों ने एक बार फिर लालू यादव को 'हीरो' बना दिया

लालू-नीतीश ने पुरानी दुश्मनी भुलाकर बिहार चुनाव से पहले हाथ मिलाया (फाइल फोटो)

टीवी चैनल के शुरुआती अनुमान के मुताबिक बिहार चुनाव में भाजपा आगे थे लेकिन सुबह 11 बजे के बाद महागठबंधन साफ तौर पर बाज़ी मारती हुई नज़र आई। साफ हो गया है कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी सहायक पार्टी के नेता लालू यादव अगली सरकार बनाने जा रहे हैं।

लालू की पार्टी आरजेडी और कुमार की जेडीयू दोनों ने बिहार की 243 सीटों में से 101 पर चुनाव लड़ा था। टेलीविज़न चैनलों ने लालू के बढ़ते नंबरों का नई सरकार पर पड़ने वाले असर की तरफ ध्यान खींचा लेकिन कुमार की पार्टी के अध्यक्ष शरद यादव ने साफ किया कि 'अगर नीतीश ने लालू से कुछ सीटें कम भी जीती तब भी वही मुख्यमंत्री बने रहेंगे।'

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लालू दो बार मुख्यमंत्री पद पर आसीन रहे थे और 1997 में उन्हें भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार कर लिया गया था। इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को अपनी कुर्सी पर बैठा दिया था। 2005 के चुनाव में नीतीश कुमार ने उनकी पार्टी को हार का स्वाद चखाया था। 2010 में लालू की पार्टी ने बेहद खराब प्रदर्शन देते हुए 243 में से केवल 22 सीटों पर जीत दर्ज की थी।

दुश्मनी बनी दोस्ती

फिर 2014 के लोकसभा चुनाव आए जब लालू और नीतीश को अपनी पार्टी के रिश्ते के बारे में दोबारा सोचना पड़ा। राज्य की 40 सीटों में से लालू की पार्टी ने केवल 4 और कुमार ने सिर्फ दो सीटों पर जीत दर्ज की है। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता का बिहार विधानसभा चुनाव में असर कम करने के लिए इन दोनों ही नामों ने इस साल के शुरुआत में हाथ मिलाया। 

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2013 तक नीतीश और भाजपा एक दूसरे के साथ थे। इनका 18 साल का लंबा गठजोड़ तब टूटा जब भाजपा ने प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी को उम्मीदवार घोषित किया। इसके बाद नीतीश ने गठबंधन से हाथ खींच लिया और पीएम मोदी ने भाजपा की ऐतिहासिक जीत दर्ज की। यही वजह है कि बिहार के इस चुनाव को मोदी-कुमार के बीच सीधी टक्कर की तरह देखा जा रहा था, कई रैलियों और मीडिया से बातचीत में भी इन दोनों ही नेताओं ने एक दूसरे पर छींटाकशी में किसी तरह की कमी भी नहीं छोड़ी।