कांग्रेस और बीजेपी, दोनों के सामने अपनी अहमियत साबित करने को तैयार ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया

मार्च में 49 वर्षीय सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दी और उनके अलग होने के कुछ दिन बाद ही मध्यप्रदेश में 73 वर्षीय मुख्यमंत्री कमलनाथ की सरकार गिर गई. सिंधिया अपने साथ 22 व‍िधायकों को ले गए जिसके बाद उन सीटों पर चुनाव कराना अनिवार्य हो गया.

कांग्रेस और बीजेपी, दोनों के सामने अपनी अहमियत साबित करने को तैयार ज्‍योतिरादित्‍य सिंधिया

ज्योतिरादित्य सिंधिया (फाइल फोटो)

कमलनाथ और कांग्रेस अभी भी उम्मीद कर रहे हैं कि मध्य प्रदेश में 28 सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव में जोरदार मुकाबला होगा. मंगलवार को होने वाले इस महामुकाबले में अगर किन्हीं दो स्टार खिलाड़ियों की टक्कर है, तो वो सचिन पायलट बनाम ज्योतिरादित्य सिंधिया हैंं - एक वो जो पार्टी से अलग हो गए और दूसरे वो जो जाने की कगार से लौट आए. इसलिए कम से कम फिलहाल तो मतदाताओं को दलबदल और वफादारी में से किसी एक का चयन करना है.

मार्च में 49 वर्षीय सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ दी और उनके अलग होने के कुछ दिन बाद ही मध्यप्रदेश में 73 वर्षीय मुख्यमंत्री कमलनाथ की सरकार गिर गई. सिंधिया अपने साथ 22 व‍िधायकों को ले गए जिसके बाद उन सीटों पर चुनाव कराना अनिवार्य हो गया.

श‍िवराज स‍िंह चौहान को सत्ता में बने रहने के ल‍िए 28 सीटों में से 8 पर जीत हासिल करना जरूरी है. सत्ता में वापसी के ल‍िए कांग्रेस को सभी 28 सीटों को जीतने की जरूरत है ताकि उसकी सरकार मजबूती से खड़ी रह सके.

n9mj3fgg

इन 28 सीटों में से ज्यादातर सीटें ग्वालियर और चंबल क्षेत्र में हैं, जहां सिंधिया का कद बहुत ऊंचा है और विधायकों पर उनकी तगड़ी पकड़ है. मंगलवार को वो भी उसी इलाके में चुनाव प्रचार कर रहे थे जहां सचिन पायलट कर रहे थे. एक समय में दोनों ही नेताओं को कांग्रेस की बहुप्रचारित 'जेन नेक्स' का अगुवा कहा जाता था, ए‍क ऐसी पार्टी जिसमें 50 की उम्र के करीब के नेताओं को भी यूथ ब्रिगेड का समझा जाता है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 56 वर्ष के हैं. बिहार में मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव 30 वर्ष के हैं. कांग्रेस की उम्र बेहद धीमी गति से बढ़ती है लेकिन सम्मान के साथ नहीं, जैसे जम गई हो. 

इसके सबूत खुलकर तब सामने आ गए जब पहले सिंधिया और फिर पायलट ने कम से कम अपने-अपने राज्यों में बड़ी भूमिका की मांग को लेकर कांग्रेस के पुराने नेताओं पर हमले शुरू किए. अपने राज्यों में ये दोनों नेता निर्विवाद रूप से पार्टी के ल‍िए महत्वपूर्ण भूमिका न‍िभा रहे थे. मध्यप्रदेश में कमलनाथ और दिग्व‍िजय सिंह ने सिंधिया की मांगों को ठुकरा द‍िया क्योंकि वे लोग खुद ज्यादा ताकतवर बने रहना चाहते थे. वहीं राजस्थान में सचिन पायलट को उप मुख्यमंत्री के रूप में छूट देने से अशोक गहलोत ने इनकार कर दिया. सिंधिया ने विद्रोह क‍िया और कामयाब रहे, बीजेपी में शामिल होकर राज्यसभा पहुंच गए, जिसे लेकर कहा जाता है कि पाला बदलने के लिए उन्होंने ये शर्त रखी थी. दूसरी ओर सचिन पायलट ठीक से समझ नहीं पाए कि कितने विधायक उनके समर्थन में हैं और गहलोत ने उन्हें मात दे दी. और इस वजह से उन्हें कांग्रेस के साथ समझौता करने के लिए मजबूर होना पड़ा.

qfc9vmo4

जैसा क‍ि सिंधिया और पायलट ने मंगलवार को रैलियों को संबोध‍ित किया, लेकिन दोनों ने एक-दूसरे को निशाना नहीं बनाया, जैसी कि दोनों की ही पार्टियों की लालसा रही होगी.

ऐसा प्रतीत हुआ जैसे ये दोनों किसी मौन अनुबंध का सम्मान कर रहे हों. ग्वालियर के पूर्व राजघराने के सदस्य सिंधिया ने कहा, कि वे अपने गढ़ गुना और चंबल में प्रचार करने आए पायलट का स्वागत करते हैं. सिंधिया, जिन्होंने 15 महीने पहले बीजेपी का दामन थामा और कमलनाथ की अगुवाई वाली सरकार गिराई, 3 नवंबर को इन 28 विधानसभा सीटों पर हो रहे उपचुनाव में उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. 

बुधवार को ग्वालियर, श‍िवपुरी, भ‍िंड और मुरैना में प्रचार कर रहे सचिन पायलट ने भी सिंधिया का नाम नहीं लिया और कहा कि 'जनता जानती है कि मैं यहां क्यों आया हूं.' गौरतलब है कि सिंधिया ने बीजेपी का दामन थाम ल‍िया था तब सचिन पायलट ने ट्वीट कर कहा था कि यह कांग्रेस पार्टी का नुकसान है. करीब हफ्ते भर चले अपने विद्रोह के दौरान पायलट ने सिंधिया से भी मुलाकात की थी जिन्होंने सार्वजनिक रूप से पूरे मामले को कांग्रेस में 'प्रतिभा की हानि' कहा था.

n8f98v4o

सिंधिया के अनुसार दोनों की मंगलवार को मुलाकात हुई और राजनीति पर भी न‍िश्च‍ित रूप से बातचीत हुई.

कमलनाथ भाजपा सरकार को गिराने की आखिरी लड़ाई अकेले लड़ रहे हैं. उन्होंने सुन‍िश्च‍ित किया है कि हर रैली में उन्हें 'भावी मुख्यमंत्री' के रूप में संबोध‍ित किया जाए.

लेकिन यह सिंधिया हैं जिन्‍हें वास्‍तव में बहुत कुछ साबित करना है. बीजेपी के इस 'बायप्रोडक्‍ट' पर उपचुनाव में प्रभावी जीत दिलाने की जिम्‍मेदारी है. यदि ऐसा होता है तो सिंधिया बेहतरीन और प्रभावी अंदाज में कमलनाथ से 'बदला चुकाने' में सफल रहेंगे. दूसरे, यह कांग्रेस को याद दिलाता रहेगा कि अगर उसने कमलनाथ और दिग्व‍िजय सिंह के मतानुसार सिंध‍िया की भूमिका को प्रतिबंध‍ित करने की कोश‍िश न की होती, शायद उनके हाथ से एक महत्वपूर्ण राज्य की सरकार नहीं निकली होती. तीसरा, एक बहुप्रतीक्षित कैबिनेट फेरबदल से पहले यह बीजेपी के लिए सिंधिया के महत्व को और बढ़ाएगा, जिससे उन्हें कोई महत्वपूर्ण मंत्रालय मिल जाए.

evcebf6c

सिंधिया प्रकरण के बावजूद कांग्रेस द्वारा राज्यसभा सीट से नवाजे गए दिग्विजय सिंह उपचुनाव के लिए प्रचार में कहीं नजर नहीं आ रहे, और उनकी अनुपस्थि‍ति को लेकर कमलनाथ का कहना है कि वे संगठन का काम कर रहे हैं. अपने भाषणों में सिंधिया इन दोनों दिग्गज नेताओं पर निजी और तीखे हमले कर रहे हैं.

कमलनाथ भी सिंधिया पर उतने ही तीखे हमले कर रहे हैं और उन्हें गद्दार तक कह रहे हैं. 'लोकसभा चुनाव में वो अपनी खुद की गुना सीट भी हार गए. सिंधिया अपने कांग्रेस के कार्यकर्ता से ही हार गए न क‍ि बीजेपी के किसी बड़े नेता से. वह 22 व‍िधायकों के साथ मुख्यमंत्री बनना चाहते थे लेकिन मैंने राहुल गांधी के सामने उनकी पोल खोल कर रख दी. अब देखिए भाजपा में उनकी हताश स्थिति.”

76485k6g

फिलहाल कांग्रेस को सम्मान के नाम पर जो भी म‍िले उससे संतोष करना पड़ेगा या फिर सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने पर ठीकरा फोड़ती रहे. बीजेपी के स्टार प्रचारकों की सूची में सिंधिया 10वें स्थान पर थे. व्हाट्सऐप पर शेयर हो रहे बीजेपी के वीडियो में तो उनका चेहरा तक नजर नहीं आ रहा. इससे भी बुरा यह है कि पार्टी के पोस्टरों पर उनका नाम या तस्वीर तक नहीं है, केवल 'श‍िवराज है तो विश्वास है.' 

हालांकि सिंधिया अपने भाषणों, हाव भाव और कांग्रेस के ख‍िलाफ टिप्पणियों की बदौलत अपनी नई पार्टी की प्रचार शैली के साथ एकदम फिट बैठते हैं. इसकी शुरुआती झलक तब देखने को मिली थी जब उन्हें बीजेपी की तरफ से राज्यसभा सीट मिली और उन्होंने एक वीडियो जारी किया था जिसमें वो कह रहे थे 'टाइगर जिंदा है.'

चौहान ने अपने ही तरीके से यह स्पष्ट कर दिया है कि वह नहीं चाहते कि सिंधिया मध्यप्रदेश की राजनीति में उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलें. मध्य प्रदेश में कई अन्य लोगों ने भी जोर देकर कहते हैं कि भाजपा एक कैडर-आधारित पार्टी है, जो दशकों से सिंधिया के "महल" (महल) के खिलाफ लड़ी है और वास्तव में "महाराज" का स्वागत नहीं कर रही.


सिंधिया को अपनी नई पार्टी के भीतर और पुरानी पार्टी के सामने बहुत कुछ साबित करना है. इन सब से ऊपर उन्हें एक कमांडिंग लीडर के रूप में गंभीरता से लिए जाने की जरूरत है जो अब तक दी गई भूमिकाओं से कहीं बड़ी भूमिका के योग्य हैं.

स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...

Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.