मोदी सरकार के 3 साल - अंतरराष्ट्रीय मंच पर अधिक मुखर हुआ भारत

भारत-अमेरिका के रिश्तों का दायरा विस्तृत, हमेशा भारत के साथ खड़े रहे रूस से रिश्तों में खटास न आने देने की कोशिशें जारी

मोदी सरकार के 3 साल - अंतरराष्ट्रीय मंच पर अधिक मुखर हुआ भारत

पड़ोसियों से रिश्ते बेहतर करने पर मोदी सरकार की विदेश नीति का बड़ा जोर रहा है. रिश्ते सुधारने की लाख कोशिशों के बावजूद चीन और पाकिस्तान भारत के लिए बड़ा सिरदर्द बने हुए हैं. लेकिन जहां तक अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल का सवाल है, हालात अलग हैं.

पहले बात करते हैं नेपाल की. यह वह देश है जहां से लगती सीमाएं कभी सीमाओं जैसी नहीं लगीं. इतनी आसानी से लोग आर-पार आते जाते रहे, आर्थिक- पारिवारिक बेहद करीब के रहे हैं. लेकिन सितंबर 2015 में हुए हिंसक मधेसी विरोध प्रदर्शन का ठीकरा नेपाल ने भारत पर फोड़ा... यह कहते हुए कि यह सीधे तौर पर भारत की दखलंदाज़ी का नतीजा है. इसके पहले अगस्त - 2014 में मोदी नेपाल का दौरा कर चुके थे, वहां की संसद को संबोधित कर चुके थे. वहां उनका जबरदस्त स्वागत हुआ था. 25 अप्रैल 2015 को नेपाल में भयावह भूकंप आया जिसमें नौ हज़ार लोग मारे गए और बहुत कुछ तहस नहस हो गया. इसके बाद भारत ने बड़ा राहत आपरेशन चलाया. नेपाल को दोबारा बनाने में भी जुटा. इस सबके बावजूद जानकार मानते हैं कि नेपाली राजनीति की अंदरूनी खींचतान और भारतीय मूल के मधेसियों के हितों पर घुटने टेकने से इनकार के कारण रिश्तों में कुछ दूरी आई. इस बीच चीन से भी नेपाल की नजदीकी बढ़ी है. वह वहां काफी निवेश कर रहा है, काठमांडू तक रेल लाइन भी बिछा रहा है. लेकिन भारत भी लगातार कूटनीतिक स्तर पर करीबी बनाए रखने की कोशिश में है. कई हाई प्रोफाइल विज़िट भी दोनों देशों के बीच हुए हैं. आम लोगों के बीच पुराने रिश्ते भी खटास दूर करने के काम आ रहे हैं. और भारत लगातार पैनी नज़र बनाए हुए है ताकि नेपाल की जमीन का इस्तेमाल न भारत के खिलाफ साजिश के लिए और न ही आतंकवादियों को इस तरफ भेजने के लिए कर सके.

अब अफगानिस्तान. यह किसी से छिपा नहीं है कि अफगानिस्तान में भारत की मौजूदगी से पाकिस्तान को सबसे ज्यादा समस्या है. पाकिस्तान चाहता है कि अफगानिस्तान उसके पूरे प्रभाव में रहे- एक तरह से उसके उपनिवेश की तरह. पाकिस्तान की जमीन से आतंक न सिर्फ भारत में फैलाया जाता है बल्कि कई आतंकवादी संगठन पाकिस्तान में बैठकर अफगानिस्तान को निशाना बनाते हैं. वहां ISIS  का उभरना एक नई समस्या बन रहा है. भारतीय कांउसुलेटों में हमलों में भी पाकिस्तान का हाथ होने के साफ सबूत सामने आए हैं. उधर पाकिस्तान लगातार यह आरोप लगाता रहा है- अफगानिस्तान में भारतीय कांउसुलेट उसकी जासूसी करते हैं. भारत की सेना भले ही अफगानिस्तान में मौजूद न हो, लेकिन भारत कई वर्षों से वहां न सिर्फ पुनर्निर्माण में निवेश और मदद कर रहा है, बल्कि वहां के अधिकारियों को ट्रेनिंग और आम लोगों की मदद के लिए कई प्रोजेक्ट चलाता है. अफगानिस्तान की हाल की कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आया और अब वहां की सरकार बार-बार उसे चेता रही है. इस बीच पहली बार, पाकिस्तान की आपत्तियों के बावजूद, दिसंबर 2015 में भारत ने अफगानिस्तान को एक नए करार के तहत अटैक चार अटैक हैलिकॉप्टर Mi25 दिए.  इस करार में रूस की भी सहमति है. और भारत-अफगानिस्तान-पाकिस्तान रिश्तों में एक नया अध्याय भी. जमीन पर पाकिस्तान की तरफ से रास्ता न देने के बाद अब अफगानिस्तान के साथ व्यापार के लिए हवाई रास्तों पर भी विचार की अफगानिस्तान की कोशिश है.  

बांग्लादेश की बात अगर करें तो वहां भी प्रधानमंत्री मोदी दौरा कर चुके हैं. तीस्ता पर भले ही पश्चिम बंगाल सरकार के कारण बात न बन पाई हो लेकिन यह भी सच है कि वहां की शेख हसीना सरकार के साथ रिश्ते लगातार अच्छे ही हुए हैं. दिसंबर 2016 में बस्तियों की अदला-बदली के साथ ही बांग्लादेश के साथ सभी सीमा विवाद शांतिपूर्ण तरीके से सुलझा लिए गए. यह मोदी सरकार की बड़ी उपलब्धि मानी गई. साथ ही बांग्लादेश आतंक के खिलाफ लगातार कड़ी कार्रवाई कर रहा है और कम से कम इस सीमा पर भारत इस चीज से निश्चित है लेकिन अवैध माईग्रेंट्स का मसला अब भी बना हुआ है.

शुरुआत में ही सरकार ने साफ कर दिया कि 2014 की 'लुक ईस्ट' पॉलिसी अब आगे बढ़ाकर 'एक्ट ईस्ट' कर दी गई है जिसमें कंबोडिया, लाओ, म्यांमार, वियतनाम पर विशेष नजर है. कई इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट भी चल रहे हैं और 2019 तक India-Myanmar-Thailand trilateral highway भी पूरा हो जाएगा.


और अब दो बड़ी शक्तियों - अमेरिका और रूस की बात. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और नरेंद्र मोदी की आसान केमिस्ट्री साफ नज़र आती थी. डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका से रिश्ते कैसे होंगे इस पर सवाल लगातार उठ रहे हैं. H1 B वीज़ा कम करना आईटी इंडस्ट्री के लिए भले ही एक झटके के तौर पर आया हो लेकिन भारत-अमेरिका के रिश्तों का दायरा बहुत बड़ा है. अमेरिका से हथियारों की खरीद से लेकर दोनों देशों के बीच व्यापार, सबका दायरा बड़ा है. अब जून के अंत में पीएम मोदी पहली बार ट्रंप से मुलाकात भी करने वाले हैं. पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए भी अमेरिका काम का साथी है. लेकिन अमेरिका से प्रगाढ़ रिश्तों का असर रूस से रिश्तों पर पड़ा है, ऐसा कुछ जानकारों का मानना है. रूस से हथियारों की खरीद पहले से कम हुई है क्योंकि अब भारत कई देशों से खरीददारी कर रहा है. ऐसे में पहली बार 2016 में रूस ने पाकिस्तान को Mi35 अटैक हेलीकॉप्टर दिए और पाकिस्तान-रूस सेनाओं ने साझा सैन्य एक्सरसाइज़ की. इस पर भारत में प्रबल प्रतिक्रिया हुई और तेज़ कूटनीति भी. और कोशिशें जारी हैं ताकि रूस, जो लगातार भारत के साथ खड़ा रहा है, उससे रिश्तों में कोई खटास न आए.

इस बीच संयुक्त राष्ट्र में भी भारत काफी मुखर दिख रहा है. स्थाई प्रतिनिधि के तौर पर सैयद अकबरुद्दीन की नियुक्ति के बाद सुरक्षा परिषद और कई मामलों में यूएन के दोहरे रवैये पर भी भारत मजबूती से सवाल उठा रहा है. बदलाव की बात करें तो दुनिया में बदलते हालात के साथ पहले से कहीं ज्यादा मुखर तरीके से, ज्यादा जोर से भारत अपनी बात अंतरर्राष्ट्रीय मंच पर रख रहा है.

कादम्बिनी शर्मा NDTV इंडिया में एंकर और फारेन अफेयर्स एडिटर हैं...

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