रिपोर्ट के आंकड़े कहते हैं कि लक्षद्वीप, महाराष्ट्र, केरल, ओडीशा, गुजरात, और तमिलनाडु से जुड़े सांसदों ने सर्वाधिक प्रश्न पूछे। प्रश्नकाल के कई दिलचस्प पहलू भी हैं जैसे कि व्यवसाय के मुताबिक देखें तो औद्योगिक पृष्ठभूमि से जुड़े सांसदों ने औसतन 447 सवाल पूछे और लोकसभा में सबसे ज्यादा सवाल वित्त विषय पर ही पूछे गए। रेलवे, मानव संसाधन, गृह मंत्रालय, स्वास्थ्य और कृषि पर भी सर्वाधिक सवाल दागे गए जबकि सांसदों की संसदीय मामलों, अंतरिक्ष, प्रधानमंत्री कार्यालय और पूर्वोत्तर क्षेत्रों पर काफी कम दिलचस्पी देखने को मिली।
संसद में बहस के मामलों में अधिकतर लोकसभा सांसदों की भागीदारी अच्छी रही है। इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि 93 प्रतिशत सांसदों ने बहस में हिस्सा लिया। भाजपा के अर्जुन राम मेघवाल इस मामले में सबसे अव्वल हैं जबकि 35 सांसद ऐसे भी हैं जिन्होंने बहस में शिरकत करना जरूरी नहीं समझा।
अपने क्षेत्र के विकास के लिए मिलने वाली सांसद विकास निधि को खर्च करने में भी तमाम बड़े नामों की रुचि नहीं दिखाई देती। सांसद विकास निधि के इस्तेमाल के विषय में सांसदों की लापरवाही वैसे भी किसी से छिपी नहीं है। आधे से ज्यादा सांसदों ने पूरी तरह से इस पैसे का उपयोग ही नहीं किया। चंद सांसदों ने ही इस निधि का अपने क्षेत्र के विकास में पूरी तरह इस्तेमाल किया है।
हमारे सांसद पांच सालों में कुल सांसद विकास निधि का 30 फीसदी भाग ही खर्च कर सके हैं। तभी तो 15वीं लोकसभा के स्थगन के बाद 1 मार्च 2014 तक के आंकड़ों के हिसाब से आबंटित 19 करोड़ रुपये में से सोनिया गांधी ने मात्र 69 प्रतिशत, राहुल गांधी ने 61 प्रतिशत, आडवाणी ने 57 प्रतिशत, मुलायम सिंह यादव ने 76 प्रतिशत, शरद यादव ने 62 प्रतिशत, शरद पवार ने 67 प्रतिशत राशि ही खर्च की हैं, वहीं दूसरी तरफ तृणमूल क्रांग्रेस के गोविंदचंद्र, डीएमके के अब्दुल रहमान, कांग्रेस के प्रेमचंद्र गुड्डु, तृणमूल कांग्रेस की डॉ काकोली घोष, कांग्रेस के अजय माकन व बीजेपी की सुषमा स्वराज ने सांसद विकास निधि खर्च करने में क्रमशः बाजी मारी।
संसद में उपस्थिति के मामले में वरिष्ठ और दिग्गज नेता गंभीर नजर आते हैं जैसे सुमित्रा महाजन 87 प्रतिशत, मुलायम सिंह यादव 85 प्रतिशत, मुरली मनोहर जोशी 84 प्रतिशत, शरद यादव 83 फीसदी समय तक सदन में उपस्थित रहे परन्तु इस दौरान सोनिया गांधी व राहुल गांधी की उपस्थिति 50 फीसदी से भी कम रही। दूसरी तरफ कांग्रेस के केपी धानापालन एकमात्र ऐसे सांसद हैं जिनकी उपस्थिति 100 फीसदी दर्ज हुई।
उम्र के लिहाज से देखें तो 25 से 40 वर्ष के सांसदों की उपस्थिति 67 प्रतिशत रही जबकि 41 से 60 वर्ष तथा 60 साल से ऊपर के सांसदों की उपस्थिति क्रमशः 72 एवं 74 प्रतिशत रही। व्यवसाय के अनुसार सांसदों का विश्लेषण किया जाए तो फ़िल्मी पृष्ठभूमि से जुड़े सांसद 57 फीसदी उपस्थिति के साथ सबसे फिसड्डी रहे।
हमारे सांसद लोकसभा में व्यवधान तथा स्थगन के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं। रिपोर्ट के आंकड़े भी इसी बात की गवाही देते हैं। पांच साल भर में लोकसभा की कार्यवाही 51,593 बार बाधित हुई, वहीं 570 बार कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। लोकसभा की कार्यवाही बाधित करने में कॉमनवेल्थ घोटाला, कोल ब्लॉक आवंटन, 2जी, महंगाई, नया भूमि अधिग्रहण कानून, सीएजी की रिपोर्ट, लोकपाल और लोकायुक्त की नियुक्ति, एफडीआई, तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री पी चिदंबरम के इस्तीफे की मांग और तेलंगाना जैसे मुद्दों की भूमिका सर्वाधिक रही।
गौरतलब है कि यह रिसर्च सेंटर पिछले कई वर्षो से संसद पर रिसर्च कर रहा है। रिपोर्ट के संपादक और ‘सेंटर फार डेमोक्रेसी एंड पीस’ के डायरेक्टर नीरज गुप्ता के मुताबिक 'हमने सांसदों के काम-काज का विश्लेषण करते समय सांसदों को उनकी उम्र, शैक्षणिक योग्यताओं, व्यवसायिक पृष्ठभूमि और महिला-पुरुष जैसी कसौटियों पर भी परखा है। इससे भविष्य की राजनीति के साथ साथ वर्तमान सांसदों के कामकाज को समझने में आसानी हुई।'
रिपोर्ट के मुताबिक पांच सालों के दौरान लोकसभा के काम काज के केवल 60 प्रतिशत समय का ही उपयोग हो सका है। इस दौरान संसद की कार्यवाही कुल 357 दिन चली और इस दौरान 1,338 घंटे 4 मिनट काम-काज हुआ। हंगामे तथा अन्य कारणों से कुल 888 घंटे 47 मिनट का समय बर्बाद हुआ लेकिन समय की भरपायी करने के लिए हमारे सांसदों ने 271 घंटे 26 मिनट लेट(निर्धारित समय के बाद भी) बैठ कर काम भी किया।