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This Article is From Nov 11, 2020

'हमलोग आ गए हैं', 4 बजे सुबह फोन कर बोले नीतीश कुमार

Swati Chaturvedi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    November 11, 2020 14:46 IST
    • Published On November 11, 2020 14:46 IST
    • Last Updated On November 11, 2020 14:46 IST

अपनी जिंदगी का सबसे कठिन चुनाव जीतने के बाद बिहार के मुख्यमंत्री और जनता दल यूनाइटेड के अध्यक्ष नीतीश कुमार ने सुबह 4 बजे अपनी सरकार में उप मुख्यमंत्री और भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी को फोन किया. फोन पर उन्होंने कहा, 'हमलोग आ गए हैं.' रातभर चली वोटों की गिनती में उनका गठबंधन 31 वर्षीय तेजस्वी यादव के झटकों के बावजूद 125 सीटों के साथ विजेता बनकर उभरा है.

शनिवार को एग्जिट पोल सर्वे ने जो भविष्यवाणी की थी, चुनावी नतीजे उसके पूरी तरह विपरीत थे. एग्जिट पोल में तेजस्वी यादव के वैभवशाली जीत की संभावना जताई गई थी, जिसने हेलिकॉप्टर के जरिए इस चुनाव में करीब ढाई सौ यानी लगभग हर विधानसभा इलाके में एक चुनावी रैली की थी. चुनाव प्रचार के दौरान उनकी रैलियों में उमड़ती भीड़ उनके 10 लाख सरकारी नौकरियों के वादे का प्रतिफलन था, जिसने लोगों में जोश भर दिया था. लेकिन कोरोनोवायरस की आर्थिक तबाही और बिहार में विकास की एक कड़ी से प्रभावित होकर, युवा सरकारी नौकरियों से इतर शायद कुछ और चाहते थे. 

बीजेपी ने पहले तेजस्वी यादव की नौकरियों के वादे पर तंज कसा और यह दावा किया कि वह फेल हो जाएगा. फिर, जब पार्टी को गलती का एहसास हुआ तो तेजस्वी के 10 लाख नौकरियों के वादे की काट में 19 लाख नौकरियां देने का एलान किया, जो तेजस्वी से करीब दोगुनी थीं. तेजस्वी ने चुनावों में इसे ही सेलिंग प्वाइंट बना सुर्खियां बटोरी थीं. इस तरह बीजेपी-नीतीश कुमार के गठबंधन ने तेजस्वी के तिलिस्म को तोड़ दिया.

आपके इस स्तंभकार की नजर में इस चुनाव में दो बड़े विजेता और दो समान रूप से बड़े हारने वाले हैं- जिनकी कहानियाँ आपस में जुड़ी हुई हैं. ऐसा क्यों आइए समझते हैं-

तेजस्वी यादव अब बिहार में सबसे बड़ी पार्टी बन गए हैं. रनर-अप भाजपा है, जो सिर्फ एक सीट पीछे है. दोनों के बीच मुकाबला कड़ा था. तेजस्वी यादव के पास निश्चित तौर पर वो सब उपलब्ध नहीं थे. उनके पिता लालू यादव- जो राज्य में भ्रष्टाचार और जंगलराज के पर्याय बन चुके हैं, जेल में हैं. उनका परिवार भी फूटा हुआ है. उनके पास बीजेपी की तरह अधिकतम धनराशि भी नहीं थी, जिस पर भाजपा चुनावी अभियान चलाने का भरोसा रखती है.

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लेकिन उन्होंने अपने करिश्मे और राज्य के हर हिस्से में आमजनों को संबोधित करने की अपनी प्रतिबद्धता के आधार पर चुनाव अभियान को एक अमर अनुभव में बदल दिया. उनकी रैलियों की भीड़ आकार शानदार थी. चुनावों के बीच हेलिकॉप्टर में सफर के दौरान एनडीटीवी के साथ एक साक्षात्कार में उन्होंने अपने चेहरे को बार-बार पोंछा, क्योंकि वह दो बड़ी रैलियों के बीच का समय था. उन्होंने एक दिन में 19 रैलियां कर अपने ही पिता के 16 रैलियों के रिकॉर्ड को तोड़ दिया था.

तेजस्वी यादव, अब तक एक राजनीतिक उत्तराधिकारी के तमाम करतब दिखाते हुए एक राजनीतिज्ञ थे. हालांकि उनके भाषण और मतदाताओं से जुड़ाव हमेशा से उनकी ताकत रही है, क्योंकि नीतीश कुमार (2017 में उनकी साझा सरकार गिर गई) के मुताबिक वे एक गैर-जिम्मेदार मंत्री के रूप में सरकार में थे जो अक्सर महत्वपूर्ण बैठकों से गायब रहते थे और विभागीय बैठकों में योजनाओं या नीतियों के निर्माण या कार्यान्वयन में किसी भी प्रकार से अपनी छाप छोड़ने में असफल रहे थे. वह उस समय 26 साल के थे.

इस चुनाव ने बड़े जनाधार वाले अगली पीढ़ी के राजनेताओं के रूप में उनकी अलग पहचान स्थापित की है. अपने भाषणों में अपने पिता का जिक्र नहीं करने या चुनाव प्रचार सामग्री पर उनकी तस्वीरों के प्रदर्शन की अनुमति नहीं देने की उनकी चतुर रणनीति एक ठोस प्रवृत्ति को इंगित करती है. हालांकि, अब बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि वह एक समर्पित विपक्षी नेता के रूप में सेवा करने की प्रतिबद्धता को कितना आगे बढ़ा पाते हैं?

बिहार के सबसे युवा मुख्यमंत्री और अपने परिवार के तीसरे सदस्य के रूप में राज्य की सेवा करने की छीन हुई प्रबल संभावना ने उनके सहयोगी राहुल गांधी को भी उदास कर दिया है, जिन्होंने चुनावों से पहले कठिन सौदेबाजी की थी. कांग्रेस ने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन मात्र 19 सीटें ही जीत सकी. फिर भी, कांग्रेस ने अपनी भूमिका को सबसे कमजोर कड़ी के रूप में आजमाया, जो न केवल अप्रभावी, बल्कि किसी भी गठबंधन के लिए खतरनाक है. तेजस्वी यादव राहुल गांधी को इतनी सीटें देने के इच्छुक नहीं थे, लेकिन लालू यादव ने तेजस्वी की बातों को नकार दिया था.

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अपने चुनावी भाषणों में तेजस्वी सिर्फ 10 लाख नौकरी देने की ही बात करते रहे. उन्होंने गर्म बटन वाले हिंदुत्व के मुद्दों को भी दरकिनार कर दिया जबकि नीतीश कुमार ने उनके परिवार पर निजी हमले भी किए. इसके विपरीत, राहुल गांधी ने अपनी सभाओं को संबोधित करते हुए, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी पर व्यक्तिगत हमलों पर ध्यान केंद्रित किया, जो अब पीएम की भव्य लोकप्रियता को देखते हुए हानिकारक के रूप में स्थापित हो गया है.

बड़ी हार वाले नीतीश कुमार की कीमत पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरे बड़े विजेता हैं. भाजपा पहली बार नीतीश कुमार के साथ गठबंधन में रहते हुए नेतृत्वकर्ता के रूप में उभरी है. अगर फिर भी नीतीश कुमार फिर से मुख्यमंत्री बनते हैं (अमित शाह जैसे वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने इसकी गारंटी दी है), तो यह नरेंद्र मोदी और अमित शाह की उन पर कृपा होगी. भाजपा को 74 सीटें मिली हैं, जबकि जेडीयू को मात्र 43 सीटें मिली हैं. पीएम मोदी ने अपनी सभाओं में कोरोना वायरस संकट और उसके कारण अर्थव्यवस्था पर आए बोझ का उल्लेख नहीं करते हुए लोगों से दूसरी बातें कहीं. और इसके जरिए उन्होंने राज्यभर में अपनी पार्टी के लिए समर्थन हासिल किया. दूसरी ओर, नीतीश कुमार को सत्ता-विरोधी लहर, प्रवासियों के संकट के कुप्रबंधन और उस धारणा का खामियाजा  भुगतना पड़ा जिसमें कहा जा रहा था कि उनके विकास का एजेंडा अब जोर-शोर से हार चुका है.

नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के "डबल इंजन" का दावा अतिरंजित है. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार एक इंजन है, जबकि नीतीश कुमार अब नरेंद्र मोदी के साथ मिलकर केवल एक डब्बा (बॉगी) बनकर रह गए हैं. नीतीश कुमार दावा करते रहे हैं कि उन्हें केंद्र से बिहार के लिए बेहतर आर्थिक पैकेज मिलेगा. हालांकि, अभी भी इसका इंतजार है और उसका दूर-दूर तक कोई अता-पता नहीं है. नीतीश कुमार, जो अधिकार और अहंकार की भारी भावना से ग्रस्त हैं और नरेंद्र मोदी के साथ तल्ख रिश्तों का एक इतिहास है, का कद घटकर अब बोन्साई की तरह रह गया है.

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दूसरी तरफ, लोजपा प्रमुख चिराग पासवान, जो एक नए हनुमान के रूप में मोदी को अपने दिल में रखने का दावा करते हैं, ने अपना वादा निभाया- वे भले ही सिर्फ एक सीट पर जीते लेकिन कई सीटों पर  नीतीश कुमार की पार्टी को बाहर करवा दिया. उनकी एक (बमुश्किल) गुप्त वार्तालाप का इसी के साथ अंत भी हो गया लेकिन उनकी पार्टी के भीतर से सांत्वना के तौर पर यह बात उभरकर सामने आ रही है कि उन्होंने अब सियासी चाल में महारत हासिल कर ली है.

(स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं…)

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