अविश्वास प्रस्ताव लाकर आखिर क्या हासिल करना चाहता है विपक्ष...?

जब अंकगणित पूरी तरह BJP के पक्ष में है, तब विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाकर क्या हासिल करना चाहता है... प्रस्ताव से फायदा किसे मिलेगा - सरकार को या विपक्ष को...?

अविश्वास प्रस्ताव लाकर आखिर क्या हासिल करना चाहता है विपक्ष...?

संसद भवन के बाहर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी...

मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव पर बहस और मतदान शुक्रवार को होगा. लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने मॉनसून सत्र के पहले ही दिन विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. पिछले 15 साल में यह दूसरा अविश्वास प्रस्ताव है. इससे पहले 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के खिलाफ प्रस्ताव आया था जो गिर गया था. 2008 में मनमोहन सिंह सरकार न्यूक्लियर डील पर विश्वास प्रस्ताव लाई थी और जीत गई थी.

वैसे तो अंकगणित सरकार के पक्ष में है पर सोनिया गांधी पूछ रही हैं कि किसने कहा कि उनके पास नंबर नहीं हैं? इस पर बीजेपी सोनिया को उनके 1999 में किए गए इसी तरह के दावे की याद दिला रहा है जब उन्होंने 272 की संख्या अपने पक्ष में होने की बात कही थी. वैसे विपक्ष सिर्फ अलग-अलग मुद्दों पर सरकार के खिलाफ अपनी बात देश के सामने रखने के लिए यह प्रस्ताव लाया है. जैसे टीडीपी आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रही है. वहीं कांग्रेस किसानों की दुर्दशा और अन्य नाकामियों को लेकर सरकार का असली चेहरा जनता के सामने रखना चाहती है. तृणमूल कांग्रेस भी इस प्रस्ताव के समर्थन में है.

वहीं बीजेपी को लगता है यह मौका होगा सरकार का रिपोर्ट कार्ड संसद के माध्यम से देश के सामने रखने का. बजट सत्र का दूसरा हिस्सा अविश्वास प्रस्ताव के मुद्दे पर ही ठप हो गया था, लेकिन इस बार सरकार पहले ही दिन मान गई. इसके पीछे कुछ खास वजह है. सबसे बड़ी यह कि बीजेपी चुनावी मोड में आ गई है. अमित शाह का मानना था कि अविश्वास प्रस्ताव का इस्तेमाल विपक्षी एकता की हवा निकालने और जनता के सामने सरकार की कामयाबियां गिनाने के लिए करना चाहिए. पिछली बार कांग्रेस-टीडीपी के अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में देर से मैदान में आई, लेकिन इस बार पहले ही दिन से साथ थी इसलिए प्रस्ताव के पक्ष में जरूरी पचास से अधिक सांसद थे. लिहाजा यह प्रस्ताव मान लिया गया.

सरकार को यह भी उम्मीद है कि विपक्ष जिन तमाम मुद्दों पर बहस चाहती है उन पर अविश्वास प्रस्ताव के दौरान चर्चा हो सकती है. इसलिए संसद न सिर्फ चलेगी, बल्कि जरूरी बिल भी पास कराए जा सकेंगे. रही बात अंकगणित की तो बीजेपी इसे लेकर आश्वस्त है. 545 सदस्यों की लोकसभा में अभी 10 सीटें खाली हैं. इसलिए बहुमत का आंकड़ा 268 का है. बीजेपी के पास स्पीकर को छोड़कर 273 सांसद हैं. सहयोगियों को मिलाकर एनडीए में 314 सांसद हैं. जबकि यूपीए के पास 63 सांसद ही हैं. अन्य का आंकड़ा 157 का है. इनमें एआईएडीएमके और टीआरएस मतदान के वक्त गैरहाजिर रह सकती हैं. ऐसे में बहुमत का आंकड़ा 244 ही रह जाएगा, जो एनडीए के पास आसानी से होगा.

हालांकि विपक्ष मान रहा है कि चुनावी साल में कई बीजेपी सांसद व्हिप के बावजूद या तो गैरहाजिर या फिर प्रस्ताव के पक्ष में वोट डाल कर बीजेपी को झटका दे सकते हैं. इनमें शत्रुघ्न सिन्हा, कीर्ति आजाद, सावित्री फुले, राजकुमार सैनी, अशोक दोहरे, छोटेलाल आदि का नाम लिया जा रहा है जो पार्टी से नाराज़ चल रहे हैं. इसके अलावा भोला सिंह समेत दो सांसद बीमार हैं. कीर्ति वर्धन सिंह विदेश में हैं. हालांकि बीजेपी का दावा है कि सावित्री फुले को छोड़ बाकी सब प्रस्ताव के विरोध में वोट देंगे.

उधर, बीजेपी की कोशिश विपक्षी एकता में सेंध लगाने की है. वह चाहती है कुछ विपक्षी सांसद वैसे ही खुल कर बगावत कर दें जैसी उन्होंने उपराष्ट्रपति चुनाव में की थी. तो सवाल यह है कि जब अंकगणित पूरी तरह से बीजेपी के पक्ष में है तब विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाकर क्या हासिल करना चाहता है? इस प्रस्ताव के बाद का फायदा किसे मिलेगा? सरकार को या विपक्ष को? 

(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

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