मराठा आरक्षण- मास्टर स्ट्रोक या जी का जंजाल?

यह सवाल अब भी बना हुआ है कि क्या यह अदालत में टिक पाएगा, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि किसी भी सूरत में 50 फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं हो सकता.

मराठा आरक्षण- मास्टर स्ट्रोक या जी का जंजाल?

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस.

आम चुनावों से पहले राज्य के 30 फीसदी मराठाओं को लुभाने के लिए महाराष्ट्र की बीजेपी सरकार ने एक बड़ा दांव चला है. इन्हें सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में 16 फीसदी आरक्षण देने का बिल आज महाराष्ट्र विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित कर दिया गया. यह मौजूदा 52 फीसदी आरक्षण से अलग होगा यानी राज्य में अब आरक्षण बढ़ कर 68 फीसदी हो जाएगा. महाराष्ट्र में अभी पिछड़े वर्ग को 19 प्रतिशत, अनुसूचित जाति को 13, अनुसूचित जनजाति को 7 और घुमंतू तथा विमुक्त जनजातियों, विशेष पिछड़े वर्ग को 13 प्रतिशत आरक्षण मिला हुआ है. कुछ महीनों पहले तक राज्य की देवेंद्र फडणवीस सरकार मराठाओं की नाराजगी झेल रही थी. इस मांग को लेकर हिंसक प्रदर्शन हुए थे. उसे अब उम्मीद है कि उन्हें खुश किया जा सकेगा.

इसी महीने राज्य के पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपनी रिपोर्ट में मराठाओं को सामाजिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़ा माना था और उनके लिए आरक्षण की सिफारिश की थी. यह भी कहा गया था मौजूदा पिछड़े वर्ग को दिए गए आरक्षण को छेड़े बिना मराठाओं को आरक्षण दिया जाए. लेकिन यह सवाल अब भी बना हुआ है कि क्या यह अदालत में टिक पाएगा, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि किसी भी सूरत में 50 फीसदी से अधिक आरक्षण नहीं हो सकता. हालांकि बाद में कोर्ट ने कहा है कि ऐसा करने के लिए ठोस वैज्ञानिक आंकड़े होने चाहिएं.

बीजेपी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ध्यान में रख कर कदम आगे बढ़ाया गया और पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश के बाद फैसला किया गया, जिसने 20 जन सुनवाइयों, करीब दो लाख याचिकाओं और 36 जिलों में सर्वे करने के बाद आंकड़े जुटाए. यह बीजेपी का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है. पार्टी को भरोसा है कि इससे मराठवाड़ा और मराठा बहुल अन्य इलाकों में उसे फायदा मिलेगा. बीजेपी नेताओं के मुताबिक मराठा आरक्षण एक ब्राह्मण नेता ने दिया, जबकि मराठा वर्ग के विपक्षी नेता सिर्फ जुबानी जमाखर्च करते रहे हैं. 

देवेंद्र फणडवीस के सामने चुनौती यह भी थी कि पिछड़ा वर्ग नाराज न हों और उनका हिस्सा न कटे. साथ ही बीजेपी के वोट बैंक माने जाने वाले अगड़े वर्ग को भी साथ रखने की चुनौती है. तो मराठाओं को आरक्षण देने का बीजेपी का दांव सियासी तौर पर कितना कामयाब होगा? क्या यह अदालत की अग्निपरीक्षा पार कर पाएगा? जाहिर है कि इन सवालों के जवाब जब भी मिलें, लेकिन अगले छह महीने में होने वाले आम चुनावों में बीजेपी ने निश्चित रूप से अपने लिए एक बड़ा वोट बैंक तैयार कर लिया है. 

(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

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