लोगों को अपने फैसलों से हैरान करना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पुरानी आदत है. 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने का उनका फैसला भी लोगों को इसी तरह हैरान कर गया. विपक्षी पार्टियां स्तब्ध हैं. कांग्रेस पार्टी की किंतु-परंतु वाली प्रतिक्रिया आई. ममता बनर्जी ने खुलकर विरोध कर दिया. नीतीश कुमार ने समर्थन कर दिया. अरविंद केजरीवाल की खामोशी ही उनकी प्रतिक्रिया बता रही है. आम लोग दिक्कतों को गिना रहे हैं, मगर मोटे तौर पर सरकार के फैसले का समर्थन इस उम्मीद में कर रहे हैं कि इससे काले धन पर अंकुश लगेगा. आतंकवाद को मिल रहे काले धन पर रोक लगेगी. नकली नोटों के ज़रिये भारतीय अर्थव्यवस्था को खोखला करने की पाकिस्तान की कोशिशें नाकाम होंगी.
2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव के समय मैं गांधीनगर में था. मुख्यमंत्री निवास के बाहर रिपोर्टिंग के सिलसिले में खड़ा था. एक व्यक्ति मेरे पास आया. उसके हाथ में एक सिक्का था. रहस्यमय अंदाज में उसने मुझे वह सिक्का दिखाया और कानों में फुसफुसाया - देखिए, इसके पीछे क्या बना है. मैंने गौर से देखा. सिक्के के पीछे प्लस का निशान बना हुआ था, जिस पर चार बिंदु थे. उसने कहा कि यह दरअसल क्रॉस है, जो देशभर में ईसाई धर्म का प्रचार करने की यूपीए की रणनीति का हिस्सा है. फिर दावा किया कि पूरे देश में ये सिक्के फैलाए गए हैं और इनके जवाब में प्रचार अभियान चलाया जा रहा है, ताकि लोगों को सतर्क किया जा सके कि उन्हें ये सिक्के इस्तेमाल नहीं करने हैं. मैंने उसकी बातों पर तवज्जो नहीं दी. बाद में पता चला कि ऐसे सिक्के सब जगह दिखाए जा रहे हैं. आरबीआई ने इन्हें 2004 से 2006 के बीच जारी किया था और विरोध के बाद 2007 में वापस ले लिया था.
इस घटना का जिक्र इसलिए किया, क्योंकि मुद्रा हर व्यक्ति तक अपनी बात पहुंचाने का सबसे आसान तरीका है. मुद्रा के ज़रिये भी बात पहुंचती है और मुद्रा के बारे में बात करके भी. चुनाव की रैलियों में मुद्रा बांटकर भी लोग लाए जाते हैं और मतदान केंद्रों तक भी. वैसे तो आरबीआई की ओर से नोटों पर कुछ भी लिखने की मनाही है, लेकिन हाथों में अक्सर ऐसे नोट आते हैं, जिन पर कुछ संदेश लिखा होता है. नोट ऐसी चीज़ है, जो हर शख्स के लिए बेहद कीमती होती है. इसे संभालकर रखा जाता है. जब लोगों से कहा जाए कि जो नोट उन्होंने बहुत शिद्दत के साथ संभालकर रखा है, उसकी कोई कीमत नहीं रह गई है, तो वे इसे भी याद रखते हैं.
देशभर में लोगों को चंद घंटे में ही पता चल गया कि प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम अपने संदेश में 500 और 1000 रुपये के नोटों को बंद कर दिया है. यह बात आग की तरह पूरे देश में फैल गई. एटीएम पर भीड़ लग गई. लोग 100-100 रुपये के नोट निकालना चाहते थे. पेट्रोल पंप पर वाहनों की कतार, रेलवे स्टेशनों पर लोगों की भीड़ जमा हो गई. रात 12 बजे तक स्वर्णकारों की दुकानें खुली रहीं. लोग झोले भर-भरकर नोट लाए और सोना खरीदकर ले गए. सोने के दामों में बढ़ोतरी भी हो गई. आज सुबह से देशभर से खबरें आ रही हैं कि लोग किस कदर परेशान हैं. किसी को दूध नहीं मिला तो किसी को सब्जी. किसी के पास बैंक में लाखों रुपये हैं, मगर हाथ में इतनी नकदी नहीं कि खाना खा सके. दूसरे शहरों में घूमने गए लोग तो खासतौर से परेशान हैं. निजी अस्पतालों में लोग इधर-उधर भाग रहे हैं, क्योंकि वहां 500-1000 के नोट लिए नहीं जा रहे. अगले हफ्ते से शुरू होने वाली शादियों की बात की जा रही है कि लोगों की तैयारियां कैसे धरी की धरी रह गईं. रीयल एस्टेट क्षेत्र को हो रही तकलीफ की बात की जा रही है कि इससे मंदी आने से रोजगार पर बहुत बुरा असर पड़ेगा.
लेकिन क्या सरकार को यह अंदाजा नहीं था कि लोगों को इस फैसले से कितनी तकलीफ होगी. सरकार का कहना है कि उसने तमाम सावधानियां बरती हैं. लोगों को आगाह किया गया है. जो पेट्रोल पंप परेशान कर रहे हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई हो रही है. मेट्रो पर टिकट नहीं मिल रहा था तो सरकार ने स्पष्टीकरण दिया कि रेलवे के साथ मेट्रो को भी 11 नवंबर तक छूट मिली है. टोल टैक्स लेने वालों से भी कहा गया है कि वे लोगों से 500-1000 के नोट लेते रहें. ग्रामीण इलाकों में इस फैसले के असर के बारे में अभी जानकारी नहीं है. मगर कहा जा रहा है कि हाहाकार मचा है. वहां की पूरी अर्थव्यवस्था नकदी पर चलती है. गांव के लोग नोट बदलवाने कहां जाएंगे. बैंकों में खातों की बात ज़रूर है, मगर कई खातों के सिर्फ कागजों पर ही होने की बात भी कही जाती है. किसान फसल बेचने मंडियों में जाएंगे तो बदले में उन्हें कौन-सा नोट मिलेगा. मिलेगा भी या नहीं मिलेगा. इन सारे सवालों के बावजूद बड़ी संख्या में लोगों का समर्थन सरकार के फैसले के साथ है.
माना जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह फैसला यूपी के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कम और 2019 के लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखकर ज्यादा किया गया है. सरकार को यह एहसास हो रहा है कि लोग 2014 के चुनावों में बढ़-चढ़कर किए गए वादों को लेकर अब अधीर होने लगे हैं. सरकार के लिए ज़रूरी है कि काला धन हो या रोजगार पैदा करने के वादे, इन पर वह काम करती हुई दिखाई दे.
विदेशों में जमा काले धन को भारत वापस लाने के सरकार के दावों पर सवाल हैं. देश में जमा काले धन को बाहर लाने के लिए लाई गई सरकार की योजना में एक लाख करोड़ रुपये से ऊपर की रकम की घोषणा की बात कही गई है, लेकिन सवाल यह भी है कि क्या यह रकम इससे ज्यादा भी हो सकती थी. प्रधानमंत्री का पहली बार देश के नाम संदेश देना और खुद आकर मोर्चा संभालना, इस पूरे फैसले की जिम्मेदारी शीर्ष स्तर पर लेने का संदेश देना है. लोगों की अपेक्षा है कि अपने बूते बहुमत में आई सरकार फैसले ले और पिछली सरकार की तरह पॉलिसी-पैरेलिसिस न हो. मोदी ने इसी को ध्यान में रखकर फैसला किया है. कहा जा रहा है कि बीजेपी के परंपरागत समर्थक कारोबारी वर्ग में इस फैसले का बहुत उल्टा असर होगा. बजट के कई प्रावधानों से रीयल ऐस्टेट, आभूषण विक्रेता और दूसरे छोटे व्यापारी पहले से ही नाराज हैं.
यह फैसला सही है या गलत, जनता ही तय करेगी. लेकिन नोटों को लेकर हुए इस फैसले का असर देश के हर नागरिक पर पड़ेगा. यानी फैसले की जानकारी भी सबको हो जाएगी. मास्टर कम्युनिकेटर के रूप में मशहूर नरेंद्र मोदी ने इस बार संवाद के लिए नोट का सहारा लिया है और संदेश है काले धन और आतंकवाद से लड़ाई का. इसी के साथ उन्होंने अगले लोकसभा चुनाव की तैयारियों की नींव रख दी है. जब भी 500 का नया या 2000 का बिल्कुल नोट हाथ में आएगा तो सरकार के फैसले की याद आएगी या याद दिलाई जाएगी. कुछ वैसे ही, जैसे गांधीनगर में सीएम हाउस के बाहर उस व्यक्ति ने सिक्का दिखाकर किया था.
(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं.)
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