पासवान के तीखे तेवर बीजेपी के लिए परेशानी का सबब

एससी एसटी अत्याचार निरोधक कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की पार्टी ने सरकार को चेतावनी जारी कर दी

पासवान के तीखे तेवर बीजेपी के लिए परेशानी का सबब

पहले टीडीपी अलग हुई, फिर शिवसेना ने अविश्वास प्रस्ताव पर साथ छोड़ा, जेडीयू ने सीटों के बंटवारे पर आंखें दिखाईं और अब बीजेपी का एक और सहयोगी दल सरकार के फैसले के खिलाफ खुलकर सामने आ गया है. एससी एसटी अत्याचार निरोधक कानून पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने सरकार को चेतावनी जारी कर दी है.
 
पीएम मोदी को लिखे पत्र में पार्टी नेता चिराग पासवान ने कहा है कि यह फैसला देने वाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस एके गोयल नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के चेयरमैन पद से तुरंत हटा दिया जाए. एससीएसीटी एक्ट को नर्म बनाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बदलने के लिए मौजूदा सत्र में विधेयक लाया जाए. अगर ऐसा न हो सके, तो सत्र दो दिन पहले खत्म कर अध्यादेश लाया जाए ताकि 9 तारीख को होने वाले आंदोलन को थामा जा सके. ऐसा ही एक पत्र राम विलास पासवान ने गृह मंत्री राजनाथ सिंह को भी लिखा है.

दरअसल, इस साल 20 मार्च को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ देश भर में दलित आंदोलन हुए थे.
दो अप्रैल को बुलाए गए भारत बंद के दौरान कई शहरों में हिंसा भी हुई थी. पासवान का कहना है कि वैसा दोबारा न हो, इसलिए यह कदम उठाए जाएं.

हालांकि सरकार ने कहा है कि उसने पुनर्विचार याचिका दायर की हुई है. चूंकि जस्टिस गोयल रिटायर हो गए लिहाजा अब यह याचिका किसी दूसरी पीठ को जाएगी. सरकार आग्रह करेगी कि इस पर जल्द फैसला हो. सरकार के सूत्रों का कहना है कि जब तक सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका पर फैसला नहीं हो जाता, तब तक संसद में बिल या फिर अध्यादेश जारी करने के बारे में कोई फैसला कर पाना मुश्किल होगा. जस्टिस गोयल को एनजीटी से हटाने की मांग भी खारिज कर दी गई है क्योंकि यह नियुक्ति मुख्य न्यायाधीश की सिफारिश से होती है. उधर, बीजेपी नेताओं का कहना है कि अपनी पार्टी के जनाधार को ध्यान में रखते हुए ही पासवान यह मुद्दा उठा रहे हैं.

लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार दलितों के मुद्दे पर पासवान की चेतावनी को नजरअंदाज नहीं कर सकती. दो अप्रैल की हिंसा के बाद बीजेपी के कई दलित सांसदों ने ही सरकार के फैसले पर सवाल उठाने शुरू कर दिए थे. छोटेलाल, सावित्री फुले, उदितराज, अशोक दोहरे, जसवंत सिंह आदि दलित सांसदों ने कई आरोप लगाए थे उनमें से एक यह भी था कि आंदोलन के आरोप में दलित युवाओं को परेशान किया जा रहा है. विपक्ष ने इसे एक बड़ा मुद्दा बनाया था और बीजेपी को इस अंदरूनी आग पर काबू पाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी थी. हालांकि उसके बाद प्रमोशन में आरक्षण की अनुमति देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सरकार को राहत मिली है.

सरकार ने लंबे समय से लटके इस मसले के निपटने के बाद राहत की सांस ली थी. लेकिन क्या अब पासवान के तेवरों से सरकार की परेशानी बढ़ नहीं जाएगी? क्या दलितों के मुद्दे पर बीजेपी एक बार फिर घिर गई है? यह सवाल इसलिए क्योंकि अब तक हाशिए पर रहे बीजेपी के सहयोगी दल चुनावी साल में एक-एक कर अपनी ताकत दिखाने में जुट गए हैं. एक तरफ, विपक्ष महागठबंधन बनाने में जुटा है तो वहीं बीजेपी के सहयोगी दलों का यह रुख पार्टी को परेशान कर सकता है.


(अखिलेश शर्मा इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

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