अभी एक महीना ही हुआ जब धूमधाम से पंद्रह साल बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी. एमपी कमल के हाथ से निकलकर कमलनाथ के हाथों में चला गया. लेकिन सिर्फ एक महीने में ही वहां से ऐसी गजब-गजब खबरें सामने आ रही हैं कि सब पूछने लगे हैं कि आखिर एमपी में हो क्या रहा है?
सोमवार को बीजेपी के एक कार्यकर्ता छतरपाल सिंह रावत का शव ग्वालियर में मिला. छतरपाल बस कंडक्टर थे और रविवार को काम से गए थे. जब वे वापस नहीं आए तो उनके परिवार वालों ने पुलिस में शिकायत की. उनके रिश्ते के भाई बीजेपी के जिला सचिव हैं. उन्हें छतरपाल के मरने की खबर तभी मिली जब वे बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या के विरोध में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के पुतलों के दहन की तैयारियां कर रहे थे. रविवार को बलवाड़ी में बीजेपी कार्यकर्ता मनोज ठाकरे की उनके खेत में हत्या कर दी गई. इससे पहले मंदसौर में बीजेपी नेता प्रह्लाद बंधवार को सरेआम मार डाला गया. रविवार को ही बड़वानी जिले के बीजेपी कार्यकर्ता जितेंद्र सोनी, उनके बेटे और दो अन्य रिश्तेदारों को पीटा गया. एक हफ्ते के भीतर ही मध्यप्रदेश में तीन बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या कर दी गई. बीजेपी के एक अन्य कार्यकर्ता मगन सिद्धीकी रविवार को जबलपुर में उस वक्त घायल हो गए जब उन पर हमला किया गया. वैसे पुलिस का कहना है कि इन हत्याओं के पीछे राजनीतिक दुश्मनी नहीं है.
हिंसा और मारपीट के कुछ अन्य मामले भी सामने आ रहे हैं. इनमें कांग्रेस के कार्यकर्ताओं पर आरोप है. जबलपुर में नगरपालिका दफ्तर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने हंगामा कर दिया. उन्होंने सुरक्षाकर्मी से मारपीट की. वहीं शहडोल में प्रभारी मंत्री ओंकार सिंह मरकाम के सामने कांग्रेस कार्यकर्ता आपस में भिड़ गए. आज खबर मिली कि देवास में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने कुछ लोगों को पीट डाला. वे किसानों की कर्जमाफी के बारे में किसानों की दिक्कत बताने आए थे. आरोप है कि पीटने वाला शख्स उच्च शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी का रिश्तेदार है. हालाकि मंत्री ने ऐसी किसी बात से इनकार किया है. उधर, कमलनाथ सरकार के किसानों की कर्ज माफी पर भी सवाल उठने लगे हैं. किसी किसान का 30 रुपये का कर्ज माफ हुआ तो किसा का सवा सौ रुपये का. निपानिया के दो किसानों से हमारे सहयोगी अनुराग द्वारी मिले. वे अपनी बैंक पासबुक के साथ सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगा रहे हैं. दोनों पर बीस हजार रुपये से ज्यादा का कर्ज है, लेकिन माफी मिली 13 रुपये की. वे कहते हैं कि इतने की तो वो हर रोज बीड़ी पी जाते हैं.
कमलनाथ सरकार पुरानी शिवराज सिंह चौहान सरकार के फैसले भी लगातार पलट रही है. आपातकाल के दौरान मीसा के तहत बंद राजनीतिक कार्यकर्ताओं को मिलने वाली पेंशन की छानबीन हो रही है. शिवराज सरकार की भावांतर भुगतान योजना पर भी तलवार चल गई है जिसमें किसानों को फसल के उपज और बाजार मूल्य का अंतर सरकार चुकाती थी.
पुरानी सरकार के फैसलों और योजनाओं की समीक्षा नई सरकार का हक है. इनमें बदलाव या फिर इन्हें बंद करना भी बहस का विषय है. लेकिन कानून व्यवस्था का बिगड़ा हाल नई सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर रहा है. राजनीतिक विरोधियों को चुन चुनकर निशाना बनाना मध्यप्रदेश की राजनीतिक संस्कृति में आई विकृति की ओर इशारा कर रहा है. इसी तरह कांग्रेस के कार्यकर्ता जिस तरह कानून को अपने हाथ में ले रहे हैं वह भी यह दिखा रहा है कि पंद्रह साल बाद मिली सत्ता ने उन्हें कैसे मदहोश कर दिया है.
कानून व्यवस्था पर सवाल उठने के बाद मंत्री आरएसएस पर जिम्मा डाल रहे हैं. कैबिनेट मंत्री गोविंद सिंह का आरोप है कि आरएसएस हथियार, बम, ग्रैनेड यहां तक कि परमाणु बम बनाने की ट्रेनिंग दे रहा है. तो सवाल है कि क्या बिगड़ी कानून व्यवस्था कमलनाथ सरकार पर भारी पड़ेगी? कांग्रेसी कार्यकर्ताओं पर लगाम कौन कसेगा?
(अखिलेश शर्मा NDTV इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)
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