अलग देश बन गए हैं अमित शाह, उन पर लागू नहीं होते भारत के कानून

चुनाव आयोग हर दिन अपनी विश्वसनीयता को गंवा रहा है, ताकि उसकी छवि खत्म हो जाए और वह भी गोदी मीडिया के एंकरों की तरह डमरू बजाने के लिए आज़ाद हो जाए. हर तरह के संकोच से मुक्त हो जाए.

क्या अमित शाह पर कार्रवाई कर सकता है चुनाव आयोग...? इस सवाल को पूछकर देखिए. आपको महसूस होगा कि आप खुद से कितना संघर्ष कर रहे हैं. खुद को दांव पर लगा रहे हैं. अमित शाह पर कार्रवाई की बात आप कल्पना में भी नहीं सोच सकते और यह तो बिल्कुल नहीं कि चुनाव आयोग कार्रवाई करने का साहस दिखाएगा, क्योंकि अब आप यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि चुनाव आयोग की वैसी हैसियत नहीं रही. आप जानते हैं कि कोई हिम्मत नहीं कर पाएगा.

चुनाव आयोग ने ही नियम बनाया है कि कोरोना के काल में रोड शो किस तरह होगा. उन नियमों का गृहमंत्री के रोड शो में पालन नहीं होता है. रोड शो में अमित शाह मास्क नहीं लगाते हैं. बुधवार को दिनभर बिना मास्क के रोड शो करते रहे. जब आयोग गृहमंत्री पर ही एक्शन नहीं ले सकता, तो वह विपक्षी नेताओं के रोड शो पर कैसे एक्शन लेगा...? लेकिन अमित शाह आयोग के नियमों का पालन करते, तो आयोग विपक्षी दलों की रैलियों में ज़रूर एक्शन लेता कि कोविड के नियमों का पालन नहीं हो रहा है.

चुनाव आयोग हर दिन अपनी विश्वसनीयता को गंवा रहा है, ताकि उसकी छवि खत्म हो जाए और वह भी गोदी मीडिया के एंकरों की तरह डमरू बजाने के लिए आज़ाद हो जाए. हर तरह के संकोच से मुक्त हो जाए.

तालाबंदी और कर्फ्यू की विश्वसनीयता खत्म हो चुकी है. पहली बार जनता को लगा था कि अगर बचने के लिए यही कड़ा फ़ैसला है, तो सहयोग करते हैं. इस मामले में जनता के सहयोग करने का प्रदर्शन शानदार रहा. हालांकि उसे पता नहीं था कि तालाबंदी का ही फैसला क्यों किया गया...? क्या यही एकमात्र विकल्प था...? हम आज तक नहीं जानते कि वे कौन सी प्रक्रियाएं थीं...? अधिकारियों और विशेषज्ञों ने क्या कहा था...? कितने लोग पक्ष में थे...? कड़े निर्णय लेने की एक सनक होती है. इससे छवि तो बन जाती है, लेकिन लोगों का जीवन तबाह हो जाता है. वही हुआ. लोग सड़क पर आ गए. व्यापार चौपट हो गया.

फिर जनता ने देखा कि नेता किस तरह लापरवाह हैं. चुनावों में मौज ले रहे हैं. बेशुमार पैसे खर्च हो रहे हैं. लगता ही नहीं कि इस देश की अर्थव्यवस्था टूट गई है. रैलियों में लाखों लोग आ रहे हैं. रोड शो हो रहा है. यहां कोरोना की बंदिश नहीं है. लेकिन स्कूल नहीं खुलेगा, कॉलेज नहीं खुलेगा, दुकानें बंद रहेंगी. लोगों का जीवन बर्बाद होने लगा और नेता भीड़ का प्रदर्शन करने लगे. यही कारण है कि जनता अब और कालाबाज़ारी झेलने के लिए तैयार नहीं है. पिछली बार जब केस बढ़ने लगे, तो प्रधानमंत्री TV पर आए, गंभीरता का लबादा ओढ़े हुए. आज हालत पहले से ख़राब हैं, वे चुनाव में हैं. उनके गृहमंत्री बिना मास्क के प्रचार कर रहे हैं. उनके रोड शो में कोई नियम-कानून नहीं है. वहीं जनता पर कोरोना के नियम-कानून थोपे जा रहे हैं. अमित शाह अपने आप में एक अलग देश बन गए हैं, जिन पर भारत के कोरोना के कानून लागू नहीं होते हैं.

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