जस्टिस मार्कंडेय काटजू के नाम एक खुला पत्र...

जस्टिस मार्कंडेय काटजू के नाम एक खुला पत्र...

जस्टिस मार्कंडेय काटजू की फाइल तस्वीर

आदरणीय काटजू जी,
शायर और सपूत दोनों होने के कारण आप लीक छोड़कर चलना पसंद करते हैं, शायद इसीलिए विवादों से आपका गहरा नाता रहा है। पिछले हफ्ते भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने आपको सलाहकार नियुक्त किया जिसके बाद खेल और विधिक जगत में तूफान तो खड़ा होना ही थी। आपने सलाह दी कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश गैर-कानूनी है जिसका बीसीसीआई द्वारा पालन नहीं होना चाहिए। आप अपने फेसबुक पेज पर जजों की अयोग्यता पर सार्वजनिक टिप्पणी करते रहे हैं, पर कीर्ति आजाद ने जब आपको मानसिक रुग्णता का शिकार बताया, तो इसके प्रतिकार में मुझे यह पत्र लिखने के लिए बाध्य होना पड़ा।

आपने सही कहा कि सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस कानून और संविधान से परे नहीं हैं, लेकिन क्या आपके द्वारा बीसीसीआई को दी गई सलाह विधि-सम्मत है? चारा घोटाला मामले में आपने ही तो 8 मई, 2007 को सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर कहा था कि 'कानून अगर इजाजत देता तो आप भ्रष्ट लोगों को फांसी पर चढ़ा देते।' आप तो हमेशा सच का साथ देते हैं, तो फिर बीसीसीआई को दंडित करने की बजाय भ्रष्टाचार के संगठित गिरोह का आप सलाहकार क्यों बन गए? कानून को आप मुझसे बेहतर जानते हैं, लेकिन भ्रष्ट लोगों की मदद करना क्या आईपीसी के तहत अपराध नहीं है?

आपने अपनी सलाह में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट को बीसीसीआई के विरूद्ध निर्णय देने का क्षेत्राधिकार नहीं है। बीसीसीआई, तमिलनाडु में रजिस्टर्ड एक सोसाइटी है, जिसे छह साल में रुपर्ट मर्डोक से 3851 करोड़ रुपये की आय हुई थी। बीसीसीआई स्टेडियम के रखरखाव पर सालाना 1600 करोड़ खर्च करने के बावजूद सरकार को 416 करोड़ का टैक्स देने में गुरेज करती है! 1 करोड़ की सरकारी मदद पाने वाले एनजीओ अब आरटीआई और प्रस्तावित लोकपाल के दायरे में हैं जहां परिजनों के संपत्ति की घोषणा भी करनी पड़ेगी, फिर बीसीसीआई को आरटीआई के दायरे से बाहर रखने का क्या तुक है?

आपने सुप्रीम कोर्ट में फरवरी, 2011 में पंचायती जमीन पर कब्जों को गलत ठहराया था फिर बीसीसीआई सोसाइटी को खरबों रुपये की सरकारी जमीन और स्टेडियम पर कब्जे को कैसे सही ठहरा रहे हैं? कानून के अनुसार आत्महत्या गुनाह है और इस पर बदलाव संसद ही ला सकती है। इसके बावजूद आपने सुप्रीम कोर्ट जज के बतौर मार्च, 2011 में आदेश पारित कर इच्छा मृत्यु (यूथनेसिया) को कानूनी मान्यता दे दी थी, फिर बीसीसीआई के मामले में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप पर सवाल क्यों?

लोढ़ा समिति ने बीसीसीआई को सुनवाई का पूरा मौका देने के बाद अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने 18 जुलाई को अपना निर्णय दिया जो संविधान के अनुच्छेद-141 के तहत अब देश का कानून है। बीसीसीआई को अनुच्छेद-137 के तहत सुप्रीम कोर्ट के सम्मुख पुनर्विचार याचिका दायर की सलाह बेबुनियाद है पर लोढ़ा समिति के सम्मुख पेश न होने की बात करना तो अदालत के आदेश की अवमानना ही मानी जाएगी। (शायद इसी डर से आपकी राय के बावजूद बीसीसीआई के सचिव लोढ़ा समिति के सामने मंगलवार को पेश हुए) बीसीसीआई के पास आप जैसे सलाहकार के अलावा बड़े वकीलों के लिए बड़ा बजट है जिनके सूक्ष्म कानूनी विश्लेषण से अदालतों में लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी जा सकती है। मगर इसका खामियाजा तो आम जनता को ही भुगतना पड़ता है, जिसके चलते सिर्फ सुप्रीम कोर्ट में ही 60,000 मुकदमे लंबित हैं। पिछले दिनों अप्रैल, 2016 के निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने रसूखदारों द्वारा कोर्ट के दुरुपयोग के मामले पर 25 लाख का अर्थदंड लगाया था। पुनर्विचार याचिका यदि खारिज हुई तो क्या आप बीसीसीआई को अर्थदंड जमा करने की भी सलाह देंगे?

काटजू जी, आपके अनुसार देश की 90 फीसदी जनता मूर्ख है, इसीलिए आप कैटरीना कैफ को भारतीय नागरिक न होने के बावजूद राष्ट्रपति पद के लिए उपयुक्त पाते हैं। आप संजय दत्त की रिहाई के लिए महाराष्ट्र के राज्यपाल से पैरवी करने के बावजूद सम्मान और प्रोटोकॉल के अधिकारी बने रहते हैं। सुभाषचंद्र बोस और रवींद्रनाथ टैगोर पर आपकी अपमानजनक टिप्पणी वैचारिक बहस में सिमट जाती है पर आपके गृहनगर इलाहाबाद में राष्ट्रगान को लागू न करने की वजह से स्कूल मालिक गिरफ्तार हो जाता है? आपने सलाह देने से पहले निश्चित ही लोढ़ा समिति की सभी सिफारिशों का अध्ययन किया होगा। बीसीसीआई में चुनावी-संवैधानिक सुधार, वित्तीय पारदर्शिता तथा आपराधिकता रोकने के लिए कठोर नियमों तथा समयबद्ध पालन की बात कैसे गैर-कानूनी हो सकती है?

संविधान के अनुच्छेद 124(7) के तहत सुप्रीम कोर्ट जज रिटायरमेंट के बाद भारत की किसी भी अदालत के सम्मुख मुकदमे की पैरवी नहीं कर सकते जिसके एवज में ही उन्हें पेंशन एवं अन्य निशुल्क सुविधाएं मिलती हैं। बीसीसीआई को कानूनी सलाह देने से पहले सरकारी पेंशन और सुविधाएं सरेंडर करने का साहस दिखाकर क्‍या आप एक और मिसाल बनाएंगे?  
सादर
विराग गुप्ता

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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